सबसे पहले उसका तर्क है कि सीमा पर सैनिक बढ़ाना संवेदनशील मुद्दा होता है जो सीमा विवादित है वहां अगर आप सैनिकों की संख्या बढ़ाते हैं तो तनाव बढ़ना स्वाभाविक है। दूसरे, उसने इसे भारत के हितों के विरुद्ध भी माना है। उसका तर्क है कि भारत की आर्थिक विकास दर में गिरावट है और सैनिक खर्च बढ़ाने से गिरती आर्थिक दशा पर और बुरा असर पड़ेगा। तीसरे, उसने पड़ोसियों के साथ सैन्य अभ्यास को भी चीन को घेरने वाला कदम बताया। यह भी कहा गया कि चूंकि चीन को रोकने के लिए अमेरिका भारत पर निर्भर है, इसलिए उसे अपना महत्व दिखाने के लिए भारत चीन को आंखे दिखा रहा है। पीपुल्स डेली का यह भी कहना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कद बढ़ाने के लिए भी चीन के प्रति कड़ा रुख अपना रहा है।

पीपुल्स डेली चीन की कम्युनिस्ट सरकार का अखबार है, इसलिए इसकी बातें सरकार की मंशा के ही द्योतक हैं। जब आप कहते हैं कि चीन को खतरा बताने, सीमा पर सैनिक तैनाती तथा चीन के प्रति कड़ा रुख एक रणनीति है सैन्य खर्च बढ़ाने एवं अमेरिका से सैन्य एवं वित्तीय मदद लेने की तो आप भारत पर अपना विरोधी होने का आरोप भी लगाते हैं। आपका भारत के साथ व्यवहार भी एक विरोधी देश के समान ही होगा। चीन की यह सोच दुर्भाग्यपूर्ण है, पर इसमें आश्चर्य का कोई कारण नहीं है। चीन भारत के साथ दोस्ती एवं सहकार के द्वारा 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाने का आह्वान करते हुए भी भारत को मनोवैज्ञानिक दबाव में लाने के लिए यत्न करता रहता है। हमें इससे इतनी चिंता अवश्य होनी चाहिए कि संबंधों को सामान्य बनाने के सतत् प्रयासों तथा आपसी व्यापार 60 अरब डाॅलर तक चले जाने के बावजूद इतने महत्वपूर्ण पड़ोसी के अंतर्मन में अविश्वास एवं संदेह की खाई अभी भी गहरे पैठी हुई है किंतु इस कटु सच को स्वीकर करके भारत को अपनी योजना पर आगे बढ़ना चाहिए। भारत धौंस या सैन्य टकराव में विश्वास नहीं रखता, वह कभी किसी देश के लिए खतरा नहीं, पर अपनी सुरक्षा को चाक चैबंद करना और नौबत आने पर किसी हमले का प्रत्युत्तर देने की तैयारी इसका राष्ट्रीय दायित्व है।

ठीक है कि पिछले तीस वर्षों से भारत एवं चीन की सीमा सबसे ज्यादा शांत है। लेकिन जब तक करीब 40 हजार कि. मी. सीमा विवादित है, जब तक वह अरुणाचल प्रदेश को अपना क्षेत्र बताता रहेगा, भारत निश्चिंत होकर कैेसे बैठ सकता है! इसलिए सीमा पर टकराव भले नहीं हुआ , विश्वास का संबंध कायम नहीं हो पाया है। चीन ने हमारे पूर्व एवं उत्तरी सेक्टर में सीमा पर पहुंचने के लिए सड़कों, हेलिपैडोें, पुलों का जाल बिछा दिया है। भारत ने लंबा समय हिचकिचाहट में बिता दिया और काफी देर से अपनी सीमा को सुरक्षित करने एवं भविष्य की किसी उल्टी संभावना का जवाब देने के लिए काम करना आरंभ किया। अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में पहली बार जार्ज फर्नांडीस के रूप में किसी रक्षा मंत्री ने यह बयान देने का साहस किया कि हमें सबसे ज्यादा खतरा चीन से है। क्षेत्र की भू-सामरिक स्थिति तथा चीन के राष्ट्रीय लक्ष्य एवं उसके नेतृत्व के उसे सक्रिय करने के प्रयासों को देखते हुए वह बिल्कुल सच्चा वक्तव्य था। उसके बाद पूर्वी सेक्टर में अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने तथा सड़क, हैलिपैड... आदि द्वारा सैन्य आधारभूत ढांचा मजबूत करने पर गहराई से काम आरंभ हुआ। पूर्वोत्तर में सीमा के करीब वायु ठिकाने को आॅपरेशन लायक तैयार किया जा चुका है और वहां लड़ाकू विमान सुखोई 30 और एमकेआई तैनात किया है। दो पर्वतीय डिविजन भी बनाई गई है, हल्की होवित्जर तोपें और टैंक भी लगाने की योजना है।

चीन हमारी सीमा पर तिब्बत के इलाके में अपनी नाभिकीय हथियार वाहक मिसाइलें तक तैनात कर चुका है, लेकिन उससे हमें चिंता नहीं होनी चाहिए! वह! हमारे सैन्य अभ्यास को वह संदेह की नजर से देखता है और स्वयं पाकिस्तान के साथ झेलम नदी के पास सैन्य अभ्यास युई चार कर रहा है। दोनों देश 2004 से ही सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। इसके पहले इनके तीन साझा सैन्य अभ्यास हो चुके है। चीन के साथ हमारा भी सैन्य अभ्यास हो चुका है। जब चीन ने कश्मीर के लिए नत्थी वीजा जारी करना आरंभ किया, हमारे उत्तरी कमान के कमांडर को वीजा नहीं दिया तो भारत ने विरोधस्वरुप रक्षा संबंध स्थगित कर दिए, लेकिन अब यह फिर आरंभ हो रहा है। पिछले जून में मेजर जनरल के नेतृत्व में एक सैन्य प्रतिनिधिमंडल चीन गया और रक्षा संबंध फिर से बहाल हो गया। इसी माह चीन ने भी अपने एक लेटिनेंट जनरल के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल भेजा था, जिसने दिल्ली, कोलकाता और मुंबई का दौरा कर हमारे रक्षा प्रतिश्ठान देखे। दोनों देशों के रक्षा सचिव अगले वर्श बातचीत करेंगे। वार्षिक रक्षा वार्ता भी अगले वर्ष जनवरी में होगी। इसमें अगला साझा रक्षा अभ्यास की तिथि एवं स्थान भी तय हो सकता है। जब आपके साथ सैन्य अभ्यास से आपके विरोधी देशों को आपत्ति नहीं तो पूर्वी एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ हमारे सैन्य अभ्यास पर आपको आपत्ति क्यों होनी चाहिए?

वस्तुतः चीन शांति, सहकार की बात करता है, लेकिन उसका व्यवहार सशंकित राष्ट्र का है। अमेरिका एवं आॅस्टेªलिया के नए सैन्य गठजोड़ पर भी उसने सार्वजनिक चिंता प्रकट किया है। अमेरिका आॅस्ट्रेलिया में सेना की तैनाती कर रहा है। चीन के विदेश विभाग के प्रवक्ता लियु वेइमीन ने 16 नवंबर को पत्रकार वार्ता में कहा कि सैन्य गठजोड़ का विस्तार एवं सशक्तीकरण अंतरराष्ट्रीय समुदाय एवं क्षेत्र के आम हित में है या नहीं इस पर विचार होना चाहिए। भारत के समान उसने इस मामले में भी विश्व के डांवाडोल अर्थव्यवस्था को आधार बनाते हुए पूछा कि जब सभी देश एक दूसरे का सहयोग चाह रहे हैैं उसमें ऐसा करना कितना औचित्यपूर्ण है। बेशक, सैन्य गठजोड़ स्वस्थ विश्व का लक्षण नहीं, लेकिन चीन ने इसके विपरीत कोई आदर्श दुनिया के सामने नहीं रखा है। सम्पूर्ण दक्षिण चीन सागर पर दावा जताना तथा वहां युद्ध की सीमा तक चला जाना आखिर किस चरित्र का परिचायक है? वह वियतनाम, फिलिपीन, ब्रुनेई, ताइवान एवं मलेशिया के दावों को सुनने तक को तैयार नहीं है।

इन परिप्रेक्ष्यों में हमें चीन के वक्तव्यों से मनोवैज्ञानिक दबावों में आने की आवश्यकता नहीं है। यह उत्साह की बात है कि पहले भारत कुछ बोलने में हिचकता था, लेकिन अब हिचक समाप्त हो रही है। रक्षा मंत्री ए. के. एंटनी ने 15 नवंबर को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में साफ कहा कि चीनी सेना के सीमा पर जमावड़े से वह चिंतित हैं। ंिकंतु भारतीय सेना भी कमर कस चुकी है और सीमाई इलाकों में खुद को मजबूत कर रही है। वर्तमान क्षेत्रीय-अंतरराष्ट्रीय सामरिक परिदृश्य में यही आचरण अभिष्ट है। (संवाद)