इस पुल के बनने के बाद परिवहन व्यवस्था में भारी सुधार होगा और ढाका के साथ बांग्लादेश के पश्चिमी हिस्सों का संपर्क बेहतर हो जाएगा। एशिया विकास बैंक और जे आई सी ए जैसे सहायक वित्तीय संस्थान भी इस परियोजना से अपने को हटा चुके हैं। उसके बाद बांग्लादेश ने भारत, चीन और मलेशिया की सहायता मांगी। उनकी सहायता से ही अब पुल बन रहा है।

विश्व बैंक इस परियोजना के लिए 1 दशमलव 2 अरब डाॅलर की सहायता देने वाला था। एशिय विकास बैंक को 61 करोड़ डातर डाॅलर देना था और जापान के जे आई सी ए को 40 अरब डाॅलर की सहायता करनी थी। लेकिन कनाडा की एक कंपनी द्वारा बांग्लादेश में घूस देने का आरोप लगाकर विश्व बैंक इस परियोजना से बाहर हो गया। बांग्लादेश ने घूसखोरी के आरोप की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन कर डाला। पर उस आयोग पर आरोप लगा कि वह अपना काम सही तरीके से नहीं कर पा रहा है। इन सबके बावजूद कुछ शर्ताें को मानते हुए बांग्लादेश विश्व बैंक की सहायता से इस परियोजना पर आगे काम करने के लिए तैयार था।

पर बाद में बांग्लादेश सरकार ने अपना मन बदल लिया। उसने विश्व बैंक को कह दिया कि उसे वह लोन नहीं दे। इस बीच वह घूसखोरी की जांच को जारी रखे हुए है। ढाका के मीडिया में यह नही बताया गया है कि आखिरकार बांग्लादेश ने विश्व बैंक से सहायता लेने के लिए क्यों मना कर दिया। हालांकि यह माना जा रहा है कि विश्व बैंक की कुछ शर्तें वहां की सरकार को पसंद नहीं थी। उसे यह भी लग रहा था कि विश्व बैंक के हटने के बाद भी एशियाई विकास बैंक जैसे संगठन परियोजना का साथ नहीं छोड़ेंगे। पर बहुत जल्द ही एशिया विकास बैंक ओर जापान के उस संस्थान ने भी बांग्लादेश का साथ छोड़ दिया।

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री और कुछ अन्य मंत्रियों ने भी इस बात का संकेत दिए थे कि उनके देश के पास कुछ और भी विकल्प हैं। इसके लिए बांग्लादेश ने मलेशिया के साथ एक सहमति पत्र पर दस्तखत भी किया था। सुश्री हसीना ने यह भी घोषणा कर रखी थी कि यदि जरूरत पड़ी तो बांग्लादेश अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके ही इस पुल का निर्माण संपन्न कराएगा। संसाधन जुटाने के लिए सरकार ने दो बैंक खाते खोले और अपने नागरिकों को कहा कि वे इस पुल निर्माण के लिए सहायता करें।

अब संचार मंत्री ओबैदूर कादर संकेत दे रहे हैं कि मलेशिया के अलावा भारत और चीन भी पुल निर्माण की इस परियोजना में दिलचस्पी रखता है। इन दोनों देशों के साथ अगले एक महीने के अंदर सहायता के तौर तरीकों के बारें में सहमति हो जाने की संभावना है।

यदि बिना विश्व बैंक के सहयोग के ही पुल का निर्माण संपन्न हो जाता है, तो यह दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ी घटना होगी। बिना पश्चिमी या विश्व बैंक के सहयोग से भी दक्षिण एशिया के देश अपने विकास की गाड़ी को आगे बढ़ा सकते हैं। इस तरह का संदेश दुनिया भर में पहली बार जाएगा।

पर्यवेक्षकों के अनुसार कुछ पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के साथ प्रधानमंत्री हसीना का विवाद माइक्रो फायनांस विशेषज्ञ नोबेल पुरस्कार विजेता डाॅक्टर मोहम्मद युनूस को लेकर है। सुश्री हसीना का उनके साथ ग्रामीण बैंक के नियंत्रण को लेकर विवाद है और इस विवाद में अमेरिका, पश्चिमी यूरोप के देश व अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान डाॅक्टर युनूस का पक्ष ले रहे हैं। उन्होंने उनके समर्थन की खुली घोषणा कर रखी है।

लेकिन हसीना को यह अच्छा नहीं लगा। उन्हें लगता है कि ये विदेशी तत्व उनके देश के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप कर रहे हैं और उन्हें उनके देश के अंदर ही अपमानित करना चाहते हैं। बिना पश्चिमी सहायता के पद्मा नदी पर पुल बनाने के हसीना के संकल्प यही मसला है। (संवाद)