डाॅक्टर भौमिक एक प्रख्यात श्रम समाजशास्त्री हैं जिन्होंने असंगठिन क्षेत्रों के उन श्रमिकों की दयनीय दशा को रेखांकित करते रहने का काम किया है, जो कुल 47 करोड़ श्रमिकों के 93 फीसदी हैं। पिछले 1991 के बाद असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या काफी बढ़ी है और यह लगातार बढ़ती जा रही है। अनौपचारिक क्षेत्र के ये मजदूर असंगठित हैं और मजदूर संगठन इन्हें सगठित करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रखते। उनकी दिलचस्पी सिर्फ संगठित क्षेत्र के मजदूरों को ही संगठित करने की रही है।

असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के एक संगठन ने सिर्फ काम किया है। वह है सेल्फ इंप्लायड वीमेन एसोसिएशन (सेवा)। इसकी सदस्य संख्या के आधार पर देश के अनेक राज्यों ने इसे श्रमिक संगठन केन्द्र के रूप मंे मान्यता प्रदान कर की है। अब अन्य श्रमिक संगठन भी धीरे धीरे असंगिठत क्षेत्र के मजदूरों पर ध्यान देने लगे हैं और उनको भी अपने संगठन के दायरे में लाने के बारे में सोचने लगे हैं।

सभी केन्द्रीय श्रमिक संगठनों के बीच आ रही एकता एक नई प्रवृति है। खासकर देश के दो सबसे बड़े केन्द्रीय श्रमिक संगठन इंटक और भारतीय मजदूर संघ का एक साथ आना बड़ी बात है। जब 1991 में आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की शुरूआत हुई थी, तो उस समय देश का सबसे बड़ा केन्द्रीय श्रमिक संगठन था इंटक। उस समय जब ढांचागत सुधार की नीतियों को लागू किया जा रहा था, तो इंटक ने मौन साध लिया था।

उसी तरह जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो उस समय देश का सबसे बड़ा केन्द्रीय श्रम संगठन के रूप में उभरने वाला भारतीय मजदूर संघ चुपचाप केन्द्र सरकार को नई नीतियों की घोषणा करता देखता रहा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में काफी बदलाव आया है और अब दोनों प्रमुख संगठनों ने आपस में हाथ मिलाने का निर्णय कर लिया है।

अपने नोट में प्रोफेसर भौमिक ने अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूरों को केन्द्रित करते हुए श्रम संगठनों के मोर्चे पर देश में आ रहे बदलाव पर टिप्पणी की है। आर्थिक नीतियों के माहौल उभरे रहे नये श्रम परिदृश्य की चर्चा करते हुए प्रोफेसर भौमिक कहते हैं कि संगठित कंपनियों में भी अनौपचारिक क्षेत्र पैदा हो गए हैं। कंपनियों में दो तरह स्टाॅफ देखे जा सकते हैं। एक तरह के स्टाॅफ तो वे हैं जो कंपनी के स्थाई कर्मचारी हैं। दूसरे स्टाॅफ वे हैं जो सीधे तौर पर वे कंपनी के कर्मचारी नहीं होते। उन्हें मजदूरों के ठेकेदार अपनी सेवा में रखते हैं। कंपनियो उन ठेकेदारों के साथ अपना अनुबंध करती है और उन्हें ही भुगतान करती है।

ठेकेदारों के वे मजदूर उन ठेकेदारों से भुगतान पाते हैं, जबकि वे कंपनी के लिए काम करते हैं। वे उतना ही काम करते हैं, जितना कंपनी का स्थाई कर्मचारी। शायद उनसे भी ज्यादा काम करते हैं, लेकिन उन कामों के लिए उन्हें स्थाई कर्मचारियों का एक तिहाई भुगतान ही मिलता है। उनके अलावा सुरक्षा गार्ड जैसे कर्मचारी को कंपनी ठेकेदारों को बिचैलिया बनाकर ही रखती है। यही कारण है कि अब केन्द्रीय मजदूर संगठन मांग कर रहे हैं कि किसी कंपनी में काम करने की न्यूनतम सैलरी तय कर दी जाय और यह सैलरी हो 10 हजार रुपये प्रति महीने।(संवाद)