यदि यूरोप भारत के आई टी सेवा प्रदान करने वाले लोगों को यदि अपने यहां मुक्त रूप से काम करने की इजाजत देने को तैयार भी हो जाय, तब भी उसके साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र की संधि करने का यह सही समय नहीं है। सच कहा जाय तो यह समय इस बात की थाह लगाने का है कि यूरोप के साथ इस तरह की संधि करके हम क्या हासिल करने वाले हैं। हो सकता है कि इसकी थाह लगाने के बाद हम निष्कर्ष पर पहुंचें कि भारत को इस तरह की व्यापार संधि से कोई फायदा ही नहीं होने वाला है और उलटे इसके कारण हमारे उद्योगों को नुकसान ही पहुंच सकता है।
यही कारण है कि संसद की स्थायी समिति, जो वाणिज्य मंत्रालय से जुड़ी हुई है, इसके पक्ष मे ंनहीं है। उसका यही कहना है कि यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र की संधि करने का यह सही समय नहीं है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यही कहा है कि यूरोप के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने की संधि करने के लिए बातचीत की जा रही है, लेकिन उन्होंने इस मसले पर भारत की ओर से किसी प्रकार की प्रतिबद्धता जाहिर करने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ अंजेला मरकेल ने उत्साह दिखाते हुए कहा कि यह संधि होने ही वाली है।
एक समय था जब भारत यूरोपीय संघ के साथ इस तरह की संधि करने के लिए बहुत उत्साहित था, पर तब यूरोप ऐसी संधि करने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। वह कहा करता था कि भारत में बौद्धिक संपत्ति अधिकार के कानून मजबूत नहीं हैं। वह यह भी कहा करता था कि आंकड़ों के लिहाज से भी भारत सुरक्षित नहीं है।
पर उस समय भी यूरोपीय देशों के अनेक उद्योगों के मालिक और प्रबंधक भारत से मांग कर रहे थे कि उनके उत्पादों को भारत अपने देश में बिना शुल्क लिए प्रवेश की इजाजत दे दे। स्काॅच व्हिस्की के निर्माताओं का एक शिष्टमंडल भारत आया था और उसने इसलिए भारत की आलोचना की थी यहां व्हिस्की के सीमा शुल्क बहुत ज्यादा हैं, जिसके कारण उनके उत्पादों के दाम बहुत महंगे हो जाते हैं। उन्हें पता है कि यूरोप का बाजार सिकुड़ रहा है और वैसी हालत में भारत का विस्तार प्राप्त करता बाजार उनके लिए काफी फायदेमंद और भरोसेमंद हो सकता है।
उस समय भारत के वाणिज्य सचिव ने उस शिष्टमंडल के सदस्यों से कहा था उनकी यह मांग पूरी हो जाएगी, पर शर्त यही है कि वह पहले ऐसे ही काम के लिए सउदी अरब की सरकार को तैयार कर लें। उसके बाद उस शिष्टमंडल के साथ भारत के वाणिज्य सचिव की बैठक समाप्त हो गई थी।
भारत के नीति निर्माताआंे को अपने विदेश व्यापार की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए। हमारा आयात बिल बढ़ता जा रहा है और निर्यात की आमदनी उस अनुपात में नहीं बढ़ पा रही है। इसके कारण व्यापार का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। वैसी हालत में कोई ऐसी संधि करना समझदारी की बात नहीं होगी, जिसके कारण हमारा व्यापार घाटा और भी बढ़ जाय। यूरापीय संघ के साथ हमने यदि मुक्त व्यापार क्षेत्र की संधि का समझौता किया तो हमारे भुगतान संतुलन की हालत और भी खराब हो सकती है। हम वहां के बाजार में ज्यादा से ज्यादा गहनों और सिले सिलाए कपड़ों को ही बेच सकते हैं, लेकिन वे हमारे देश में दारू से लेकर गाडि़यां तक बेचना शुरू करेंगे। हम उनसे ज्यादा खरीद रहे होंगे, जब उन्हें कम बेच रहे होंगे। इसके कारण हमारे देश का व्यापार घाटा और बढ़ेगा और भुगतान संतुलन की स्थिति बिगड़ती चली जाएगी। इसलिए यह समय हमारे लिए इस तरह की संधि करने के लिए सही नहीं है। हमें सही समय का इंतजार करना चाहिए। (संवाद)
यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र संधि के लिए समय सही नहीं
भारत को अपने हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए
अंजन राय - 2013-04-21 02:08
पिछले सप्ताह जब भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जर्मनी में थे, तो यूरोपीय संघ की ओर से उनपर लगातार दबाव पड़ रहा था कि भारत उसके साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र संधि पर दस्तखत को जल्द से जल्द अंजाम पर पहुंचाए। यूरोपीय वाइन और स्कॉटिश व्हिस्की के उत्पादक, जर्मनी के मोटर उत्पादक और यूरोप के वित्तीय सेवा प्रदान करने वाले मुक्त व्यापार क्षेत्र संधि को जल्द से जल्द संपन्न करने के लिए खासतौर पर बेकरार दिख रहे थे। वे सभी भारत में अपने उत्पादों के लिए कर मुक्त प्रवेश चाहते हैं। बदले में वे भारत से चाहते हैं कि यहां बौद्धिक संपत्ति अधिकारों के कानून सख्त बनाए जाएं। वे यूरोप के अपने बाजार को भारत के कृषि उत्पादों के लिए खोलना भी नहीं चाहते हैं और आई टी सेवा प्रदान करने वाले भारतीयों के यूरोप में मुक्त विचरण की इजाजत भी नहीं देना चाहते।