पाकिस्तान की इस मानसिकता ने भारत के लिए अजीबो गरीब स्थिति पैदा कर दी है। भारत पाकिस्तान के अस्तित्व को स्वीकार चुका है, लेकिन पाकिस्तान को लगता है कि भारत उसके वजूद के लिए खतरा है और यही कारण है कि वह लगातार भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त रहता है। अपनी इस मानसिकता की वह भारी कीमत चुकाता रहा है। इस मानसिकता के कारण ही उसका 1971 में बंटवारा हो गया, हालांकि वह इसका दोष भारत पर मढ़ता है।
अपने गठन के बाद पाकिस्तान ने दो भारी गलतियां की। पहली गलती तो उसने कश्मीर में उलझकर की है। कबायलियों की सहायता से वह कश्मीर पर कब्जा करने लगा, लेकिन वैसा कर नहीं सका। परिणाम यह हुआ कि आज कश्मीर के दो टुकड़े हो गए हैं। उसपर छिड़े विवाद के कारण ही पाकिस्तान और भारत के रिश्ते कभी सामान्य नहीं बन सके। इसका ज्यादा नुकसान पाकिस्तान को हुआ है। ईरान और खाड़ी के देशों के पड़ोसी होने के नाते ऊर्जा के स्रोत के नजदीक होने और आजादी के पहले से ही सिंचाई के बेहतर साधनों से युक्त होने के बावजूद आज उसकी स्थिति एक अंतरराष्ट्रीय भीखारी देश की हो गई है। यदि उसने भारत से अपने रिश्ते सामान्य रखे होते, तो वह आज भारत से भी ज्यादा संपन्न देश होता। इस्लाम के नाम पर बना पाकिस्तान आज इस्लामी देशों का बेताज बादशाह होता। खाड़ी और मध्य एशिया के लैंड लाॅक्ड देशों का नजदीकी होने के कारण वह अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक बड़ा खिलाड़ी होता, लेकिन उसने कश्मीर समस्या खड़ी कर भारत के साथ एक ऐसी लड़ाई में अपने आपको फंसा गया, जहां उसके नसीब मे तबाही के अलावा और कुछ नहीं है। उसने भारत में उग्रवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जो चाल चली, उसके कारण उसने अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से को ही उग्रवादी बना दिया और उसका खुद भी शिकार हो गया। आज दुनिया में उसकी छवि एक ऐसे देश की बनी है, जो अन्य देशों में आतंकवाद निर्यात करता है।
पाकिस्तान ने दूसरी गलती अपने पूर्वी हिस्से में की। उसने पश्चिमी संस्कृति को पूरब पर थोपना चाहा। पश्चिम की भाषा को जबर्दस्ती ऐसे लोगों पर थोपना चाहा जिनकी अपनी भाषा काफी उन्नत थी। इसका परिणाम पाकिस्तान के दो टुकड़े के रूप में हुआ। पूर्वी पाकिस्तान का वजूद ही समाप्त हो गया। उसकी जगह बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया। अस्तित्व में आने के 25वां साल मनाने के पहले ही वह दो हिस्से में बंट गया। उसका दोष वह भारत पर देता है, लेकिन यदि भारत उस बंटवारे का सूत्रधार होता, तो वह बांग्लादेश को अस्तित्व में आने की क्यो देता? वह पूर्वी पाकिस्तान को अपने देश का ही हिस्सा बना लेता। और यदि भारत ने उसके विभाजन में अपनी कोई भूमिका निभाई भी तो उसके लिए पाकिस्तान भी जिम्मेदार है। उसने कभी भी भारत से अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश नहीं की। कश्मीर के नाम पर उसने भारत के साथ पंगा ले लिया और 1965 में भारत पर हमला भी कर डाला। यदि वह भारत के साथ अपना रिश्ता बेहतर बनाकर रखता, तो फिर बांग्लादेश के मुक्ति आंदोलन से भी वह बेहतर ढंग से निबट सकता था और वहां शांति स्थापित कर स्थिति को विभाजन की हद तक जाने से रोक सकता था।
पर भारत विरोधी मानसिकता के कारण उसने अपना विभाजन करवा डाला और उसके बाद उस मानसिकता से दुगना ग्रसित हो गया है। इसके कारण वह भारत मे उग्रवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। उस उग्रवाद के द्वारा वह जब तब भारत को चोट तो दे सकता है, लेकिन इससे ज्यादा वह कुछ भी नहीं कर सकता, लेकिन वहां ऐसे तत्वों की संख्या बहुत है, जो मुंगेरी लाल के हसीन सपने पाल रहे हैं और वे भारत में बिखराव पैदा करना चाह रहे हैं। कम से कम पाकिस्तान का सत्तारूढ़ तबका ऐसा ही सोचता है।
सवाल उठता है कि भारत पाकिस्तान की इन हरकतों को कबतक बर्दाश्त करता रहेगा? पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का हल तो उसे निकालना ही होगा। यह सच है कि पाकिस्तान की इन हरकतो से भारत की एकता और अखंडता को कोई खतरा नहीं है, लेकिन देश के अंदर का माहौल तो उन हरकतों से खराब होता ही है। इसलिए भारत को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना चाहिए। आज भारत की सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम अमेरिकापरस्ती का शिकार हो गए हैं। भारत की विदेश नीति पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है और खासकर हमारी पाकिस्तान नीति अमेरिका की विदेश नीति का मुहताज बन गई है। अमेरिका अफगानस्तिान में तालिबानियों के खिलाफ अभियान चला रहा है। तालिबानी तत्व अफगानिस्तान से लगे पाकिस्तान की सीमा के पास भी सक्रिय हैं। अमेरिका पाकिस्तान को कहता है कि वह पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई तेज करे, पर पाकिस्तान कहता है कि उसकी पूर्वी सीमा पर भारत से उसे खतरा है और वह अपनी सेना को वहां से हटाकर पश्चिमी सीमा पर नहीं ला सकता। फिर अमेरिका भारत से कहता है कि वह पाकिस्तान के अपना तनाव कम करे। फिर भारत अमेरिकी दबाव में आकर पाकिस्तान के साथ बातचीत करना शुरू करता है।
यानी पाकिस्तान से तनाव कम करने का जिम्मा भारत का है और पााकिस्तान का काम तनाव को बढ़ाए रखना है, ताकि वह अपनी पश्चिमी सीमा पर अमेरिका को तालिबानियों के खिलाफ सैन्य सहायता देने से आनाकानी करता रहे। इस तरह भारत की पाकिस्तान नीति अफगानिस्तान में अमेरिकी कार्रवाई की गुलाम बन गई है। इसके कारण भारत अपनी प्राथमिकताओं के आधार पर अपनी पाकिस्तान नीति का निर्धारण कर ही नहीं पा रहा है। अफगानिस्तान की घटनाएं उसकी इस नीति को प्रभावित कर रही हैं।
अब भारत क्या करे? पाकिस्तान के साथ युद्ध समस्या का समाधान नहीं हो सकता, क्योंकि आज दोनों देशों के पास परमाणु बम हैं। परंपरात लड़ाई में तो भारत पाकिस्तान को पराजित कर सकता है, पर जब दो परमाणु बम संपन्न देश आपस में लड़े तो विजेता कोई नहीं होता है। हो सकता है हमारे पास ज्यादा बम हो और वे बम ज्यादा सौफिसकेटेड भी हों, लेकिन बमों की संख्या से हारजीत का फैसला नहीं होता। इसलिए आज जरूरत ऐसी कूटनीति अपनाने की है, जिसके कारण पाकिस्तान अपने ही बनाए गड्ढे में खुद गिर जाए। (संवाद)
        
            
    
    
    
    
            
    पाकिस्तानी मर्ज का आखिर इलाज क्या है?
इसका स्थाई हल ढूंढ़ना ही होगा
        
        
              उपेन्द्र प्रसाद                 -                          2013-08-13 03:47
                                                
            
                                            पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। आने वाले समय में वह अपनी भारत नीति में कोई बदलाव लाएगा, इसकी भी कोई संभावना नहीं दिखाई पड़ रही है। वहां सरकार सेना की हो या लोकतांत्रिक, लोकतांत्रिक सरकार भी चाहे जिसकी हो, सबकी भारत नीति एक समान रही है। वह नीति नफरत पर आधारित है, जिसका उद्देश्य है भारत के खिलाफ एक अघोषित युद्ध को जारी रखना। पाकिस्तान राष्ट्र को कुछ लोगों द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने के कारण ही अस्तित्व में आया था। आज भी पाकिस्तान अपने अस्तित्व का अहसास भारत विरोध में ही करता है, मानों उसने भारत विरोध करना बंद किया नहीं कि उसका वजूद ही समाप्त हो जाएगा।