ये सवाल भारत के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी द्वारा लोकसभा में अपने रवैये मे किए गए बदलाव के संदर्भ में महत्वपूर्ण हो जाते हैं। गौरतलब है कि पहले भारत के रक्षा मंत्री ने पांच भारतीय जवानों की मौत के लिए पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी आतंकवादियों की करतूत बताई थी। पर बाद में उन्होंने उसे पाकिस्तानी सेना की कारस्तानी बताई।
इन सवालों का जवाब आजादी के बाद पाकिस्तानी की विभिन्न हुकूमतों द्वारा जम्मू और कश्मीर को हथियाने की पृष्ठभूमि में ही ढूंढ़ा जाना चाहिए। पाकिस्तानी शासकों ने कभी प्रत्यक्ष रूप से तो कभी परोक्ष रूप से ऐसा करने की कोशिश की है। उन्होंने सेना का भी इस्तेमाल किया, तो मुजाहीदिनों का भी। अपने उद्देश्य को हासिल करने के लिए उन्होंने आतंकवादियों के गुटों का भी सहारा लिया। लेकिन वे हमेशा ही विफल रहे।
बाद में अपने आंतरिका हालातों के बिगड़ने और कभी अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर रहने के फायदे को भांपते हुए और कुछ विदेशी दबाव के तहत भी पाकिस्तानी शासकों ने दो बार शांति के भारतीय प्रयासों के प्रति अपना लचीला रवैया दिखाया।
पहला प्रयास अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने में किया गया था। उस समय पाकिस्तान में नवाज शरीफ की सरकार थी। दूसरा प्रयास मनमोहन सिंह ने उस समय किया था, जब पाकिस्तान में जनरल मुशर्रफ की सरकार थी। पहला प्रयास तो जनरल मुशर्रफ के कारण विफल हुआ। उस समय मुशर्रफ ने भारत के करगिल में अपने सेना की धुसपैठ करवा दी और भारत को उन घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए सैनिक कार्रवाई करनी पड़ी। दूसरा प्रयास आतंकवादियों द्वारा भारत के खिलाफ किए गए उत्पातों के कारण विफल हो गया। फिर मुर्शरफ की सरकार ही बदल गई।
2003 में भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम की संधि हुई। 2004 में नवाज शरीफ ने वादा किया कि पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा। बाद में युद्धविराम की संधि का उल्लंघन किया जाने लगा। पुृछ में 5 सेना जिस उल्लंघन में मारे गए वह इस साल का 53वां उल्लंघन था।
पाकिस्तान अपने उस दूसरे वायदे को पूरा करने में भी विफल रहा, जिसमें उसने कहा था कि पाकिस्तान का इस्तेमाल आतंकवादियो द्वारा अन्य देश पर हमले के लिए नहीं किया जाएगा। इसने आतंकियों के इन्फ्रास्ट्रक्चर को घ्वस्त करने के अपने वायदे को भी नहीं निभाया। आइएसआइ के संरक्षण में भारत विरोधी आतंकवादियो का कैंप पहले की तरह काम करता रहा। भारत के विभिन्न इलाकों में जो आतंकवादी सक्रिय हैं, उन सबका प्रशिक्षण उन्हीें कैंपों में होता रहा है।
पिछले कुछ सालों से जम्मू और कश्मीर में अपेक्षाकृत हिंसा की कम घटनाएं घट रही हैं। 2008 औ 2010 के बीच बहुत हिंसा हुई थी, लेकिन उसके बाद शांति का माहौल बन रहा था। इस बीच पाकिस्तानी सेना का एक बड़ा भाग तालिबान के खिलाफ आपरेशन से भारतीय सीमा से हटकर अफगानिस्तान की सीमा पर लगा दी गई थी। पाकिस्तान के अंदर भी आतंकवाद की घटनाएं बढ़ी थीं और पाक सेना उन आतंकवादियों से निबटने में लगी हुई थी। इधर भार की सेना भी जम्मू और कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ अपनी कार्रवाई चला रही थी।
हाल ही के दिनों में पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ उठाए जा रहे कदम से पता चलता है कि वहां का सैन्य प्रतिश्ठान शांत कश्मीर को फिर से अशांत करना चाहता है और खुद आतंकवाद से ग्रस्त पाकिस्तान का ध्यान अपने देश के आतंकवाद से हटाना चाहता है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन इतना तो साफ है पाकिस्तान की सेना और नागरिक सरकार के बीच जो बेहतर रिश्ते की बात की जा रही थी, वह गलत साबित हुई। सेना अध्यक्ष जनरल कयानी अपनी श्रेष्ठता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। गौर करने लायक बात यह भी है कि कयानी के सेनाध्यक्ष के रूप में अब कुछ साल ही शेष रह गए हैं। (संवाद)
भारतीय सीमा पर पाकिस्तानी उत्पात कयानी की अंतिम करतूत तो नहीं?
बी के चम - 2013-08-14 18:04
चंडीगढ़ः सीमा पर पाक सैनिको द्वारा भारतीय जवानों पर हमले, घुसपैठ की घटनाओं में वृद्धि और जम्मू और कश्मीर के अंदर सेना और पुलिस जवानों पर बढ़ हमले तीन सवाल खड़ कर रहे हैं। पहला सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान की सेना ने जम्मू और कश्मीर के मसले पर एक बार फिर अपने आपको उन्मादी बना लिया है? दूसरा क्या पाकिस्तान स्थित भारत विरोधी आतंकी समूहों ने अपनी रणनीति बदल ली है? और तीसरा क्या पाकिस्तान की सेना के साथ नवाज शरीफ का समीकरण बदल गया है?