तसलीमा महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ शुरू से ही आवाज उठाती रही हैं। अपनी निजी जिंदगी में भी उन्होंने महिलाओं के खिलाफ अत्याचार करने वालों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और अपने साहित्य से भी उसका विरोध किया है। एक बंगाली टीवी चैनल के द्वारा अपने उसी विरोध को वह आवाज देने वाली थी। उस सीरियल का स्लॉट भी तय हो गया था, लेकिन एकाएक ऐसा माहौल बना कि उस सीरियल के प्रसारण को ही अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया।

आखिर ऐसा क्यों हुआ? सच तो यह है कि आज भी नसरीन का नाम बंगालियों के बीच एक विशेष किस्म का भाव पैदा करता है। मुस्लिम कठमुल्ले उनके नाम से ही चिढ़ते हैं और अन्याय का विरोध करने वाले लोग तसलीमा के साथ दिखाई पड़ते हैं। इसलिए जब उनके द्वारा लिखे गए सीरियल को दिखाए जाने की चर्चा शुरू हुई, तो मुस्लिम कठमुल्ले उस सीरियल के खिलाफ ही उठ खड़े हुए और उसे शुरू न होने देने की मांग करने लगे।

उन कठमुल्लों ने यह जानने की कोशिश भी नहीं कि उस सीरियल में क्या है? उस सीरियल में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसका कोई विरोध करे। उसमें न तो मुसलमानों की कथित धार्मिक भावनाओं के बारे मे कुछ कहा जा रहा था ओर न ही उसका किसी संप्रदाय विशेष से कोई संबंध था। पर फिर भी चूंकि तसलीमा नसरीन उस की कथा लिख रही थी, इसलिए ही उसके खिलाफ विरोध भड़कने लगा।

और इसमे सबसे खराब रही तृणमूल कांग्रेस की सरकार की भूमिका। उसने न आव देखा न ताव, सीरियल पर रोक लगाने का काम शुरू कर दिया। ऐसा वह पहले भी कर चुकी है। सलमान रूश्दी कोलकाता जाने वाले थे। मुस्लिम कठमुल्लों ने उनकी कोलकाता यात्रा का विरोध किया और उन्हें तृणमूल सरकार ने कोलकाता आने से ही रोक दिया। हालांकि वहां की सरकार अब कह रही है कि तसलीमा के उस सीरियल को रुकवाने मे उसकी कोई भूमिका नहीं है, लेकिन हम सब जानते हैं कि सरकार हर काम लिखित आदेश देकर ही नहीं करवाती। किसी भी काम को रुकवाने के बहुत तरीके होते हैं। कुछ काम एक फोन काॅल से ही हो जाते हैं, तो कुछ काम इशारों से ही निबट जाते हैं।

नसरीन 2007 से ही दिल्ली में रह रही हैं। उसके पहले वह कोलकाता मे रह रही थी, लेकिन मुस्लिम कठमुल्लों के दबाव में वहां की तब की वाम मोर्चा की सरकार ने वहां से उन्हें निकाल दिया। धार्मिक कारणों से महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को अपने साहित्य से लोगों के सामने लाना तसलीमा की पहचान रही है। वह बांग्लादेश की हैं और वह मुस्लिम बहुल देश है। तसलीमा खुद भी मुस्लिम परिवार में ही पैदा हुई हैं। इसलिए उन्होंने मुस्लिम समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और उन पर लगाई जा रही बंदिशों पर हमला बोला। तब कठमुल्ले उन्हें इस्लाम विरोधी बताने लगे और उनके खिलाफ फतबे निकालने लगे। इसके कारण ही उन्हें अपना देश यानी बांग्लादेश छोड़ना पड़ा और वे भारत मे हैं। लेकिन यहां भी कठमुल्ले उनके पीछे पड़े हुए हैं। तसलीमा सिर्फ मुस्लिम महिलाओं के ही नहीं, बल्कि हिंदू महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ भी लिखती हैं, फिर भी मुस्लिम कठमुल्ले उन्हें इस्लाम विरोधी होने का सर्टिफिकेट देते फिरते हैं। (संवाद)