हालांकि पिछले दिनों सीरिया पर हुए जिनीवा कान्फ्रेंस को झटका लगा है और वहां किसी समाधान पर पहुंचा नहीं जा सका, भारत को लगता है कि वहां सत्ता पक्ष और विपक्ष को एक साथ बैठाकर बात करवाने से शांति की स्थापना की जा सकती है। कम से कम दोनों पक्षों से शांतिपूर्वक बातचीत करने का माहौल तैयार किया जा सकता है। जिनीवा में बातचीत विफल होने के बाद वहां के दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं। इस समय फिलहाल संदेह हो रहा है कि सीरिया की असद सरकार शायद बातचीत के अगले चक्र में हिस्सा ही न ले। बातचीत का वह दौर इसी महीने शुरू होने वाला है।
विपक्ष के नेता अहमद जारबा ने हालांकि कहा कि उनकी टीम बातचीत में हिस्सा लेने को तैयार है। हालांकि उन्होंने शर्त रखते हुए कहा है कि यदि सीरिया में वे अपने लोगों की रक्षा करने में सफल रहे, तभी बातचीत में हिस्सा लेंगे। अपुष्ट सूत्रों से पता चला है कि अमेरिकी कांग्रेस ने गुप्त रूप से सीरियाई विद्राहियों को हथियारों की आपूर्ति करने की योजना बनाई है। अमेरिका की यह योजना भारत, रूस और चीन जैसे देशों के लिए चिंता के कारण हैं। हमें अमेरिका पर दबाव बनाना चाहिए कि वह विद्राहियों को हथियार का आपूर्ति नहीं करें, क्योंकि इससे वहां की समस्या और भी बिगड़ जाएगी।
भारत का कहना है कि वह सीरिया में ताकत के बल पर सत्ता बदले जाने के खिलाफ है। वह अमेरिकी हस्तक्षेप के भी खिलाफ है और चाहता है कि यदि किसी बाहरी हस्तक्षेप की जरूरत पड़ी भी तो संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप का सहारा लिया जाना चाहिए। चूंकि रूस और चीन सुरक्षा परिषद में सीरिया में हथियारबंद कार्रवाई का समर्थन नहीं करेंगे, इसलिए भारत वहां बातचीत के द्वारा समस्या के हल का समर्थन करता है।
भारत की चिंता सीरिया स्थित रासायनिक हथियारों को लेकर भी है। वह चाहता है कि इन हथियारों का पूरी तरह सफाया कर दिया जाना चाहिए। पर जब जब उसका पूरी तरह सफाया नहीं हो जाता है, तबतक वह सुरक्षित हाथों में रहे।
पश्चिम एशिया की शांति के लिए भारत बहुत ही गंभीर है। इसका कारण यह है कि उन देशों में भारत के लोग भारी संख्या में काम करते हैं। भारत में मुसलमानों की संख्या भी बहुत काफी है और भारत की विदेश नीति को अपने देश के मुसलमानों के हितों को सोचते हुए भी निर्धारित करना पड़ता है। यही कारण है कि भारत को बहुत सोच समझकर अपनी नीति तैयार करनी होती है।
जहां तक ईरान की बात है, तो वहां की स्थिति बेहतर होती दिखाई दे रही है। वहां जिनीवा कान्फ्रंेस की सहमति के अनुकूल ही सबकुछ चलता दिखाई पड़ रहा है। वहां की सहमति पर अमल को रोकने के लिए अमेरिका स्थित इजरायल लॉबी अड़ंगा डालने में सफल होती नहीं दिखाई पड़ रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि ईरान पर उनका देश अब नये प्रतिबंध नहीं लगाएगा। यह भारत को एक अच्छा अवसर देता है और वह ईरान के साथ अपने राजनैतिक और आर्थिक संबंधों को और भी मजबूत करने को प्रेरित हो रहा है।
इस साल 2014 में भारत ईरान और इराक से तेल और गैस के आयात संबंधित अनेक समझौतों पर बातचीत कर रहा है। बातचीत बहुत अच्छे माहौल में हो रही है और उसके नतीजे भी अच्छे आ रहे हैं। ईरान चाहता है कि भारत अमेरिकी प्रतिबंध लगाने के पहले के स्तर तक अपने आयात को फिर से बढ़ाए। भारत ईरान के इस प्रस्ताव पर गंभीर विचार कर रहा है।
मिश्र को लेकर भी भारत उत्साहजनक रुख अपना रहा है। वह वहां के राजनैतिक परिदृश्य पर नजर गड़ाए हुए है। वह इस बात को लेकर खुश है कि सैनिक सरकार द्वारा संविधान को लेकर कराए गए जनमत संग्रह में लोगों की भागीदारी का स्तर बहुत ही ऊंची रही। लग रहा है कि वहां कट्टरवादी मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थिति कमजोर हो रही है और वर्तमान सरकार अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। भारत को खुशी होगी, यदि वहां का मुस्लिम ब्रदरहुड भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के दायरे में आ जाए। भारत जनमत संग्रह के बाद वहां के संविधान के निर्माण का स्वागत करता है। (संवाद)
पश्चिम एशिया से भारत के रिश्ते सुधरने के आसार
सीरिया में थोड़ी समस्या आ रही है
नित्य चक्रवर्ती - 2014-02-06 11:47
इस साल हम पश्चिम एशिया के साथ भारत के रिश्तों को गहराते देख सकते हैं। पश्चिम एशिया में धीरे धीरे राजनैतिक स्थिरता बनती दिखाई दे रही हैं। ईरान, इराक और सीरिया में स्थिति बेहतर हो रही है और मिश्र की सीसी सरकार भी वहां अपनी स्थिति मजबूत कर रही है। इसके कारण वहां लोकतांत्रिक बदलाव आ रहे हैं। भारत सहित अन्य देशों के लिए यह एक अच्छा शगुन है। भारत के संबंध उन देशों से हमेशा अच्छे रहे हैं और उम्मीद की जाती है कि वहां की स्थितियां बेहतर होते के साथ हमारे रिश्ते उनसे और भी बेहतर होंगे।