भारत ने इस निर्णय से पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एक अच्छा संदेश भेजने का काम किया है। आज भारत को इस तरह के संदेश भेजने की सबसे ज्यादा जरूरत है। इसका एक कारण यह है कि विश्व व्यापार संगठन की बैठकों में भारत ने अपने देश के गरीबों के लिए खाद्य सब्सिडी को समाप्त करने या घटाने के अपने निर्णय पर अड़कर अमीर देशों से तकरार मोल ले लिया है और उसे अन्य देशों के समर्थन की आज जरूरत आ पड़ी है, ताकि वह अमीर देशों द्वारा डाले जाने वाले राजकीय दबाव का सामना कर सके।
संयुक्त राष्ट्र संघ के एक कोर्ट ने जल सीमा को लेकर एक आदेश जारी किया। वह आदेश भारत के पक्ष में नहीं था, बल्कि उसके खिलाफ ही था, जिसके तहत विवादित हिस्से का बहुत बड़ा भाग यानी करीब 76 फीसदी बांग्लादेश को दे दिया गया था। इसके कारण बांग्लादेश को काफी फायदा हुआ। गैस और तेल के 18 ज्ञात ब्लाॅक बांग्लादेश के हो गए। भारत चाहता तो संयुक्त राष्ट्र संघ के उस फैसले को मानने से इनकार कर सकता था और विवाद को और भी लंबा खींच सकता था। लेकिन उसे उसने मान लिया। इसके कारण बांग्लादेश के साथ उसके रिश्ते अच्छे हुए। उस फैसले को स्वीकार करते हुए दोनों देशों ने अपने संबंध और भी मजबूत करने के लिए एक दूसरे के साथ मिलकर काम करने का संकल्प किया।
ढाका के लिए यह घटना बहुत ही अच्छी और उत्साह वद्र्धक है। म्यान्मार के साथ भी उसका जल सीमा विवाद चल रहा था। कुछ दिन पहले वह भी हल हो गया। भारत के ओएनजीसी व अन्य संगठनों ने कहा है कि वह ढाका द्वारा तेल खोज और शोधन से संबंधित बिड में हिस्सा लेंगे। अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि अब इस क्षेत्र में भारी निवेश का माहौल बनेगा।
इन घटनाओं पर चीन की प्रतिक्रिया देखने लायक थी, हालांकि मीडिया ने उसकी अनदेखी कर दी। चीन की अपनी समस्या है। बंगाल की खाड़ी को लेकर भारत, बांग्लादेश और म्यान्मार में तनातनी चल रही थी, तो दक्षिण चीन सागर को लेकर चीन के साथ वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों का उसी तरह का विवाद चल रहा है। वे भी चाहते हैं कि चीन तीसरे पक्ष से इस पर पंचायती कराये और पंचों की बात माने। अब वे भारत का उदाहरण दे रहे हैं, जिसने संयुक्त राष्ट्र संध के फैसले को मान लिया। वे भी चीन से उम्मीद रखते हैं कि संयुक्त राष्ट्र या किसी अन्य अंतरराष्ट्रीय पंचाट की सहायता से दक्षिण चीन की जलसीमा का निर्धारण चीन स्वीकार कर ले।
दुर्भाग्य से चीन की रट कुछ और ही है। फिलिपिंस ने चीन के खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की है, लेकिन चीन उस प्रक्रिया को सम्मान देने को तैयार ही नहीं है। वह कह रहा है कि उस प्रक्रिया की वैधता को वह स्वीकार नहीं करता और किसी तीसरे पक्ष द्वारा किए गए किसी निर्णय में उसकी कोई आस्था नहीं है। वह द्विपक्षीय बातचीत द्वारा ही इस मसले का हल निकालने की बात कर रहा है। वियतनाम इस समय अपने पक्ष में सबूत इकट्ठा कर रहा है। उसके बाद ही वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास इस मसले को ले जाएगा।
इसका मतलब है कि आने वाले समय में दक्षिण चीन पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का फोकस रहेगा और वह चीन से उसी तरह के व्यवहार की अपेक्षा करेगा, जैसा व्यवहार भारत ने किया। भारत ने सदाशयता दिखाई। चीन से भी सदाशयता की उम्मीद की जाएगी। जाहिर है भारत ने चीन पर राजनयिक बढ़त ले ली है। (संवाद)
भारत ने चीन के ऊपर राजनयिक बढ़त हासिल की
अब सारा ध्यान दक्षिण चीन सागर पर है
आशीष बिश्वास - 2014-08-05 13:18
कोलकाताः बंगाल की खाड़ी में बांग्लादेश के साथ जल सीमा विवाद में संयुक्त राष्ट्र संघ के फैसले को मानकर भारत ने राजनय में चीन के ऊपर थोड़ी बढ़त प्राप्त कर ली है।