पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था में भारत की केन्द्र सरकार के हस्तक्षेप की बांग्लादेश के सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेताओं द्वारा स्वागत किया जा रहा है। गौरतलब है कि यह हस्तक्षेप केन्द्र सरकार ने बर्दवान में हुए बम धमाकों के बाद किया है। राज्य सरकार इस हस्तक्षेप का विरोध कर रही थी, लेकिन केन्द्र ने उसके विरोध को अनसुना कर दिया।
बांग्लादेश के लोग इस बात को नहीं भूल पाए हैं कि ममता बनर्जी से तिस्ता जल के समझौते को होने नहीं दिया था, जबकि वहां के लोग बहुत दिनों से उस समझौते का इंतजार कर रहे थे। समझौता नहीं हो पाने के कारण बांग्लादेश के उत्तरी जिलों मंे पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
ममता बनर्जी ने न केवल उस समझौते को न होने दिया, बल्कि उस मसले पर किसी तरह की बातचीत करने से भी इनकार कर दिया था। प्रदेश सरकार ने तिस्ता जल के बटवारे के मसले पर एक कमिटी का गठन किया था। उस कमिटी ने अपनी सिफारिश भी दे दी है, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है। इसका अर्थ लगाया जा रहा है कि उस कमिटी ने बांग्लादेश की मांग को जायज ठहराया है।
कमिटी की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होने का बांग्लादेश में राजनैतिक असर हुआ है। उसके कारण वहां की विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ अवामी लीग और उसकी नेता प्रधानमंत्री शेख हसीना जावेद पर लगातार हमले कर रही हैं। ये पार्टियां भारत विरोधी रही हैं, जबकि शेख हसीना की अवामी लीग की छवि भारत की दोस्त नेता की रही है। हसीना वाजेद एक सेकुलर नेता हैं और उन्हें वहां की सांप्रदायिक पार्टियों के आक्रमण का सामना ममता बनर्जी की जिद के कारण करना पड़ता है।
ममता बनर्जी ने तिस्ता जल बंटवारे पर जो कुछ भी किया, उसका फायदा जमात ए इस्लामी ने उठाया, जो बांग्लादेश का एक सांप्रदायिक भारत विरोधी संगठन है। उसे बांग्लादेश सरकार ने प्रतिबंधित भी कर रखा है। अब वह जमाल उल मुजाहिदीन के नाम से फिर अपनी गतिविधियों को चला रहा है।
केन्द्रीय एजेंसी नेशनल इन्वेस्टेगेटिव एजेंसी की जांच से पता चला है कि जमात ने पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमा रखी हैं। उस विस्फोट के पीछे उसी का हाथ था। भारत में बन रहे विस्फोटकों का इस्तेमाल बांग्लादेश में होना था। जमात भारत विरोधी भी है, इसलिए क्या पता वह भारत में भी आतंकवादी तत्वों को बढ़ावा देने में लगा हो।
जमात और तृणमूल कांग्रेस के बीच संबंध के और भी प्रमाण मिल रहे हैं। जमात को भारत में बांग्लादेश सरकार के खिलाफ और 1971 के युद्ध अपराधियों के पक्ष में प्रदर्शन करने की छूट मिली हुई है और इससे पता चलता है कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी के साथ उसके अच्छे तालुकात हैं।
सीमी के एक वरिष्ठ नेता, जिसके बांग्लादेश से भी संबंध के प्रमाण मिल रहे हैं, तृणमूल कांग्रेस के राज्य सभा सदस्य हैं। बांग्लादेश ने उस राज्यसभा सदस्य के जमात के साथ संपर्क के खिलाफ भारत सरकार से शिकायत की है और संबंध के बारे में सबूत भी पेश किए हैं। उसने उस राज्यसभा सदस्य के अपने यहां प्रवेश को भी प्रतिबंधित कर दिया है। जमात के साथ उनके पैसे की लेनदेन के दस्तावेजी सबूत भारत सरकार को दिए गए हैं।
जमात के कुछ नेता बांग्लादेश से भागकर भारत आ गए हैं। वहां उनपर गिरफ्तारी का खतरा है और उस खतरे से बचने के लिए ही वे भारत आ गए हैं। अब उनके दबाव में ही पश्चिम बंगाल की सरकार तस्लीमा नसरीन को कोलकाता नहीं आने दे रही है। उनके दबाव का ही नतीजा है कि सलमान रूश्दी को भी पश्चिम बंगाल नहीं आने दिया जाता।
बर्दवान में हुए धमाकों के बाद बहुत गिर्फतारियां हुई हैं। उन गिरफ्तारियों के बाद ममता बनर्जी ने आश्चर्यजनक बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि केन्द्र सरकार ने उनको दरकिनार करके यह कार्रवाई की है। मामले को सांप्रदायिक रंग देते हुए वे कह रही हैं कि कुछ दुष्ट लोगों के कारनामे के कारण पूरे समुदाय को दोष नहीं दिया जा सकता। लेकिन उन्होंने बम विस्फोट की निंदा में एक शब्द भी नहीं कहा है। विस्फोट से जुड़े लोगों के बारे मे भी उन्होंने कुछ नहीं कहा है।
ममता बनर्जी ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त की कोलकाता में जबर्दस्त अगवानी की और उनके अपने प्रदेश में पाकिस्तानी निवेश करने का आग्रह किया, जबकि बांग्लादेश के उच्चायुक्त दो साल से ममता बनर्जी से मुलाकात करने का इंतजार कर रहे हैं, पर उन्हें समय नहीं दिया गया है।
बांग्लादेश के मीडिया सर्किल में भारत सरकार द्वारा बर्दवान विस्फोट पर दिखाई जा रही तत्परता पर न केवल संतोष जताया जा रहा है, बल्कि उसकी सराहना भी की जा रही है और उम्मीद की जा रही है कि दोनों देशों के संबंध सुधरेंगे। (संवाद)
भारत-बांग्लादेश रिश्ते में सुधार आना निश्चित
तृणमूल कांग्रेस का अवामी लीग विरोध गलत
आशीष बिश्वास - 2014-10-28 12:51
कोलकाताः ढाका से आ रही मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में लगातार सुधार आ रहा है और इसे अभी और भी सुधरना है।