इस मसले को सुलझाने के लिए अनेक प्रयास किए गए। कुछ प्रयास खुलकर किए गए, तो कुछ प्रयास गुपचुप तरीके से भी हुए। 2013 में इसके लिए जिनीवा समझौता तक हुआ। लेकिन बात बन बन कर बिगड़ जाती थी। जब 2013 में परमाणु वार्ता में भाग लेने वाले हसन रौहानी ईरान के राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए, तो उम्मीद बढ़ गई। उसके बाद अमेरिका नये सिरे से ईरान के साथ परमाणु समझौता करने को तैयार होने लगा।
बातचीत की परिणती एक अंतरिम समझौते में हुई है। यह समझौता पिछले 2 अप्रैल को हुआ है और माना जाता है कि एक जुलाई को इस पर अंतिम मुहर लग जाएगी।
लेकिन लुसाने में ईरान के परमाणु कार्यक्रमों के तहत यूरेनियम संवर्धन को समाप्त करने का नहीं, बल्कि उसमें विलंब करने का प्रावधान किया गया है। इस समझौते के तहत ईरान अगले 15 साल तक विध्वंसक परमाणु मसालों को अपने पास नहीं रख पाएगा। यह सुनिश्चित किया जाएगा कि परमाणु कार्यक्रम सिर्फ शांतिपूर्ण कार्यों तक ही सीमित रहे। इंटरनेशनल एटौमिक इनर्जी एसोसिएशन समय समय पर ईरान के परमाणु कार्यक्रमों का निरीक्षण करता रहेगा।
प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था की हालत बेहद खराब हो गई है। इस समझौते के बाद वे प्रतिबंध हट जाएंगे। उससे ईरान को अपनी अर्थव्यवस्था बेहतर करने का मौका तो मिलेगा ही, भारत को भी उससे बहुत फायदा होगा। चीन के बाद भारत ईरान से कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आयातक देश है। अब यह ईरान से अपने मन माफिक जितना चाहे, उतना तेल आयात कर सकता है।
प्रतिबंधों के कारण ईरान और भारत के बीच व्यापार में बहुत परेशानी हुआ करती थी। भारत तेल के बदले रूपये को ईरान के खाते में एक भारतीय बैेक में जमा कर देता था और ईरान उस रूपये के द्वारा भारत से अन्य सामानों का आयात करता था। उसके पहले भारत तुर्की बैंक का इस्तेमाल भुगतान के लिए करता था, लेकिन इसके कारण अमेरिका के गुस्से का वह शिकार हो जाता था। इन सबके कारण भारत और ईरान का व्यापार बहुत प्रभावित हो रहा था।
2014 में भारत का ईरान से तेल आयात उसके पहले वाले साल की अपेक्षा 42 फीसदी ज्यादा था। उसके कारण अमेरिका भारत को आंखें दिखाने लगा था। तमाम प्रतिबंधों के बावजूद ईरान भारत का 7वां सबसे बड़ा तेल आयात स्रोत था। लेकिन 2006 तक ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक था। ईरान में दुनिया का चैथा सबसे बड़ा गैस भंडार है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण भारत की कंपनियां उसका दोहन नहीं कर पा रही थीं। इसके अलावा एक ईरान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन का प्रस्ताव भी बहुत दिनों से है।
पिछले दो सालांे से भारत और ईरान का व्यापार दोगना बढ़ गया है। यह वृद्धि रुपये और रियाल में हो रहे व्यापार के कारण हो रही थी। यानी प्रतिबंध के काल में भी भारत और ईरान के बीच व्यापार बने रहे और पिछले कुछ समय से इसमें तेजी से विस्तार हो रहा था। अब जब प्रतिबंध हट जाएंगे, तो दोनों देशों के बीच व्यापार में और भी तेजी आने की प्रबल संभावना है। प्रतिबंध हटने के बाद ईरान अपने विकास का काम तेजी से आगे बढ़ाएगा और तक ऐसी हालत में भारत के पास उसकी विकास परियोजनाओं मंे हिस्सेदारी करने का विपुल मौका सामने आएगा। इसके लिए भारत में तैयारी भी हो रही है और दोनों देशों के बीच अभी से समझौते होने शुरू हो गए हैं। (संवाद)
भारत-ईरान
लुसाने समझौता से भारत को होगा लाभ
ईरान से साथ आर्थिक संबंध बढ़ेंगे
अशोक बी शर्मा - 2015-04-13 16:59
कुछ दिन पहले ईरान के साथ पश्चिमी ताकतों की एक अंतरिम संधि हुई। इस संधि के बाद ईरान अब विश्व की मुख्यधारा में शामिल हो जाएगा। इसके पहले वह अनेक प्रतिबंधों के कारण मुख्यधारा से अलग थलग पड़ा हुआ था। परमाणु कार्यक्रमों को लेकर पश्चिमी देशों की ईरान से असहमति थी। पश्चिमी देश उसके परमाणु कार्यक्रमों से डरे हुए भी थे। वे चाहते थे कि ईरान अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान करे, पर वह उनकी बात मानने को तैयार नहीं था। वह यह कहता रहा कि उसका परमाणु कार्यक्रम हथियार बनाने के लिए नहीं है, बल्कि वह शांतिपूर्ण कायों के लिए ही इसे आगे बढ़ा रहा है।