लोक कथाओ के अनुसार भारत और बांग्लादेश के इन्क्लेव कूच बिहार के राजा और रंगपुर के फौजदार के बीच होने वाले शतरंज के खेल का नतीजा थे। ये इन्क्लेव उस शतरंज के खेल के कारण ही बने, जिसके कारण भारत की मुख्य भूमि के बीच बांग्लादेश की जमीन है, तो बांग्लादेश की मुख्य भूमि के बीच भारत की जमीन है। शतरंज के खेल में वे दोनों इन गांवों को वेजर के रूप में इस्तेमाल करते थे। जो गांव महाराजा हार जाते थे, वे फौजदार की मिल्कीयत का हिस्सा बन जाते थे और जो गांव फौजदार हारते थे, वे महाराजा की मिल्कीयत का हिस्सा बन जाते थे। अब चूंकि दोनों के ऊपर अंग्रेजों का हुकूमत चलता था, तो एक दूसरे के इलाके की मिल्कीयत के संचालन में दोनों को दिक्कत नहीं होती थी। दोनों को अपनी अपनी मिल्कीयतों (भले ही वे दूसरे के इलाकों में हों) से राजस्व बसूलने में उन्हें दिक्कत नहीं होती थी।
पर देश के विभाजन के बाद रंगपुर पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बन गया, जबकि कूच बिहार भारत का। अगस्त 1949 में कूच बिहार के महाराजा जितेन्द्र नारायण ने ने अपने राज्य के भारत में विलय की घोषणा कर दी थी। 1971 में पाकिस्तान के विभाजन के बाद बांग्लादेश का गठन हो गया और पूर्वी पाकिस्तान का नाम बदलकर बांग्लादेश कर दिया गया।
1974 में भारत और बांग्लादेश के बीच एक भूमि समझौता हुआ, जिसके तहत भारत की मुख्यभूमि में स्थित बांग्लादेशी इन्क्लेवों को भारत का हो जाना था और बांग्लादेश की मुख्यभूमि में स्थिति भारतीय इन्क्लेवों को बांग्लादेश का हो जाना था। 2011 में भारत और बांग्लादेश ने एक प्रोटोकाॅल पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत 1974 में हुए उस समझौते को मानते हुए जमीन की अदलाबदली होनी थी। इसके लिए 2013 में एक संविधान संशोधन विधेयक भारतीय संसद मे पेश भी किया गया।
इन इन्क्लेवों में 60 हजार लोग रहते हैं और उनके गांवों की विचित्र भौगोलिक राजनैतिक स्थिति होने के कारण उनकी स्थिति ऐसी थी कि न तो वे भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार किए जा रहे थे और न ही बांग्लादेश के नागरिक के रूप में। उन्हें न तो अस्पताल की सुविधा मिल रही थी और न ही स्कूल की और न ही उन्हें बिजली की आपूर्ति हो पा रही थी। प्रकृति आपदा के समय उन्हें किसी तरह की राहत भी नहीं मिल पाती थी।
अब इन्क्लेवों की जो अदला बदली होगी, उसके तहत भारतीय मुख्य भूमि में स्थित 111 इन्क्लेव बांग्लादेश को मिल जाएंगे, जब भारत को बांग्लादेश की मुख्यभूमि के बीच स्थित 51 इन्क्लेव मिलेंगे। इस क्रम में भारत को कुल 700 एकड़ की अतिरिक्त जमीन प्राप्त हो जाएगी।
इस समस्या पर सहमति के लिए चार कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं। पहली बार 1958 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फीरोज नून खान के बीच सहमति की कोशिश हुई। दूसरी बार 1974 में भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और बांग्लादेश के मुजीब रहमान के बीच सहमति हुई। 1986 में भारत के राजीव गांधी और बांग्लादेश के जनरल इरशाद ने भी इसी तरह की कोशिश की। 1992 में भारत के प्रधानमंत्री नरसिंह राव और बांग्लादेश की बेगल खालिदा जिया ने भी एक और कोशिश की।
संसद द्वारा 2011 के प्रोटोकाॅल की पुष्टि के बाद दोनों देशों के बीच के तनाव का एक बड़ा कारण समाप्त हो जाएगा और उन इन्क्लेवों में रह रहे लोगों को भी स्थायी नागरिकता मिल जाएगी। (संवाद)
भारत बांग्लादेश के संबंध बेहतर मोड़ पर
सीमा विवाद पर का हल जरूरी था
कल्याणी शंकर - 2015-05-08 14:51
संसद के चालू सत्र में भारत और बांग्लादेश के बीच लंबे समय से लंबित पड़ी भूमि सीमा सहमति को अनुमोदन प्राप्त हो रहा है। यह एक ऐसा मसला है जो दोनो देशों के संबंधों के लिए कांटा बना हुआ था। जब से बांग्लादेश का गठन हुआ है, तभी से ही यह मसला अपनी जगह पर कायम है। विलंब का एक बड़ा कारण यह था कि भारत की विदेश नीति यहां की घरेलू नीति की गुलाम बनी हुई थी।