मंत्रालय के संयुक्त सचिव डाॅ. राकेश कुमार ने भारत की प्रगति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत में साल-दर-साल बाल एवं मातृ मृत्यु में काफी गिरावट आई है और हम ये सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि हमारी प्रगति जारी रहे और बदलाव की गति ज़ोर पकड़े। हम नवाचारों पर फ़ोकस करेंगे जिसे अन्य देशों में दोहराया और विस्तारित किया जा सके। यह सम्मेलन हमें एक दूसरे से सीखने और हमारे उद्देश्यों तथा लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए परस्पर सहयोग का अवसर प्रदान करता है।

उन्होंने बताया कि इस सम्मेलन के सह-आयोेजक इथियोपिया का स्वास्थ्य मंत्रालय है और यह बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द टाटा ट्रस्ट, यूनिसेफ, यूसेड, यूके एड और विश्व स्वास्थ्य संगठन की साझेदारी में आयोजित किया जा रहा है। आमंत्रित किए गए अन्य प्रख्यात अतिथियों में भारत के राज्यों के स्वास्थ्य मंत्री, अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक विशेषज्ञ, स्वास्थ्य विशेषज्ञ और विविध क्षेत्रों के काॅर्पाेरेट, नागरिक समाज और मीडिया से जुड़े विश्व के जानेमाने व्यक्ति शामिल हैं।

संयुक्त सचिव ने बताया कि यह सम्मेलन 24 राष्ट्रों और सम्मेलन के भागीदारों कोे सभी मातृ और बाल निवारक योग्य मृत्यु के कारणों का अंत करने की प्रणालियों, साझेदारियों, नवाचारों, कन्वर्जेन्स, और प्रमाणन के लिए एक मंच प्रदान करेगा। इस विषय के तहत, चर्चा के प्रमुख विषयों में स्वास्थ्य वित्तपोषण, काॅर्पोरेट साझेदारी, परिवर्तनकारी नवाचार, जवाबदेही और पारस्परिक क्षेत्र जैसे कि पानी, स्वच्छता, और पोषण, जो कि प्रोग्राम डिलीवरी और प्रभाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, शामिल हैं।

अपर सचिव सी. के. मिश्रा ने कहा कि सम्मेलन विशेषज्ञों, विकास साझेदारों और नीति निर्माताओं के बीच भागीदारी पैनल चर्चा के लिए एक वैश्विक मंच है। इसके स्वरूप से हमें बाल और मातृ निवारक योग्य मृत्यु का अंत करने के संयुक्त लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक दूसरे के साथ नवाचारों और श्रेष्ठ व्यवहारों को साझा करने और सीखने का अवसर उपलब्ध होता है।
मिशन निदेशक कैथरिन डी स्टीवेन्स, (ए), यूसेड ने स्वास्थ्य में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) पर टिप्पणी करते हुए कहा कि काॅल टू एक्शन समिट भारत में बाल और मातृ निवारक योग्य मृत्यु पर अंकुश की भारत की प्रतिबद्धता और उसके नेतृत्व को दर्शाता है। हम सम्मेलन को प्रापण योग्य लक्ष्य हासिल करने के लिए अद्यतन प्रगति पर विचार करने और वैश्विक प्रयासों को एकजुट करने के लिए एक मूल्यवान अवसर के तौर पर देखते हैं।

उन्होंने बताया कि जहां तक भारत का सवाल है 1990 में भारत में पांच साल से कम उम्र के शिशु की मृत्यु दर 126 थी, जबकि इसका वैश्विक औसत 90 था। 2013 में भारत ने पांच साल से कम उम्र के शिशु की मृत्यु दर में बहुत तेजी से कमी की। भारत के लिए यह दर 49 हो गई जबकि वैश्विक औसत 46 रहा। अर्थात् भारत वैश्विक औसत से केवल 3 अंक पीछे रहा! 2008-13 के दौरान इस कमी की सालाना दर 6.6 प्रतिशत रही जो इस बात का संकेत है कि यदि कथित मृत्यु दर में कमी का मौजूदा रुझान बना रहा तो भारत पांच साल से कम उम्र के शिशु की मृत्यु दर संबंधी अपने एमडीजी लक्ष्य को पूरा करने के करीब होगा। इसी प्रकार भारत में मातृ मृत्यु दर अनुपात में भी कमी आई है। सन् 1990 का 560 का यह आंकड़ा घट कर 2013 में 167 रह गया है। भारत में यह कमी वैश्विक औसत से कहीं तेजी से आई है। 1990 का वैश्विक औसत 310 था जबकि 2013 में यह 210 ही रहा।

टाटा ट्रस्ट्स के कार्यक्रम निदेशक अरूण पांधी ने मूल्यवान परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हुए कहा कि अवधारण और आयु 2 के बीच पहले 1000 दिन वे दिन होते हैं जब हम अपने अधिकतर बच्चों को रूग्णता और मृत्यु का शिकार होने देते हैं। यह अत्यंत आवश्यक है कि हमारे सभी प्रयास इस मुद्दे को हल करने, युवा माताओं में कुपोषण और रक्तहीनता और प्रसूति पूर्व देखभाल की कमी की समस्या से निपटने के प्रति लक्षित हों। काॅल टू एक्शन समिट विभिन्न देशों और स्टेकहोल्डर्स के श्रेष्ठ व्यवहारों को परस्पर बांटने और इन मुद्दों को हल करने में स्थाई समाधानों के सृजन में मदद के लिए कार्यनीतिक साझेदारियों के लिए एक अवसर उपलब्ध करने का विशिष्ट मंच प्रदान करता है।