सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद ने अमेरिका से सहायता की गुहार लगाई थी। असद अपने देश मे इस्लामिक स्टेट, अल-नूसरा मोर्चा और आर्मी आॅफ कन्क्वेस्ट से सशस्त्र टकराव में उलझे हुए हैं। इनमें से कुछ को अमेरिका का समर्थन हासिल है।
सीरिया रूस का पुराना दोस्त रहा है। वहां की असद हुकूमत से उसकी दोस्ती रही है। वहां के ईसाई आबादी रूस पर भरोसा करती है। वहां चल रहा युद्ध रूस की सीमा से ज्यादा दूर नहीं है। जाहिर है, उस युद्ध से उसकी सीमा भी प्रभावित हो रही थी। लेकिन रूस को सबसे ज्यादा गुस्सा अमेरिका की दादागीरी को लेकर था। रूस के हस्तक्षेप का मतलब यह भी है कि वह दुनिया में अमेरिकी वर्चस्व को पसंद नहीं करता।
यदि अमेरिका अपनी कार्रवाइयों में ईमानदारी बरतता, तो सीरिया रूस से सहायता की गुहार नहीं लगाता। अमेरिका वहां बहुत दिनों से आईएस के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है, लेकिन वह आतंकवादी समूह अभी भी वहां से हटाया नहीं जा सका है। अमेरिका द्वारा हमले शुरू होने के बाद आईएस की ताकत वहां और भी बढ़ती जा रही है। सितंबर महीने के अंत में ईरान, इराक, सीरिया और रूस से बगदाद में एक संयुक्त नियंत्रण केन्द्र स्थापित किया ताकि आईएस के खिलाफ चल रही कार्रवाइयांे का समन्वय किया जा सके।
अमेरिका का वर्चस्व जर्मनी में समाप्त होता दिखाई दे रहा है। अमेरिका ने एक पुतिन विरोधी गटबंधन बना रखा था। उस गठबंधन से जर्मनी अब अलग हो गया है। जर्मनी ने रूस द्वारा सीरिया में चलाए जा रहे अभियान का समर्थन किया है।
इसके अलावा एक और घटना घटी है, जिससे अमेरिका की पकड़ ढीली होने का संकेत मिलता है। वह घटना है ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टाॅनी ब्लेयर का वह बयान जिसमे उन्होंने इस्लामिक स्टेट के उभार के लिए अमेरिका द्वारा सद्दाम हुकूमत के खिलाफ की गई कार्रवाई को जिम्मेदार ठहराया है। उस कार्रवाई में ब्रिटेन भी अमेरिका का सहयोगी था और उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कोई और नहीं, बल्कि खुद टाॅनी ब्लेयर ही थे।
रूस के विदेश मंत्री का कहना है कि बगदाद स्थित नियंत्रण केन्द्र में अपनी उपस्थिति साझा करने के लिए रूस ने अमेरिका को भी आमंत्रित किया था, लेकिन अमेरिका ने उसमे शामिल होने से इनकार कर दिया। सीरिया में आपसी सहयोग करने पर किसी उच्च स्तरीय बातचीत करने से भी अमेरिका ने रूस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
शुरू से ही पश्चिमी देशों की एक ही इच्छा रही है और वह इच्छा है कि असद को सीरिया की सत्ता से बाहर कर दिया जाय। इस्लामिक स्टेट और अन्य आतंकवादी गुटों से उसका संघर्ष सिर्फ दिखावे के लिए है। उनका उद्देश्य उन गुटों को संरक्षण देना है, जो अमेरिका के पिट्ठु हैं।
अमेरिका का आरोप है कि रूस उसके द्वारा समर्थित गुटों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। दूसरी तरह रूस अमेरिका से उसके समर्थित गुटों का ठिकाना जानना चाह रहा है, ताकि उन पर आईएस पर हमले के दौरान रूसी बमबारी न हो सके, लेकिन अमेरिका इस मामले में भी सहयोग नहीं कर रहा है और अपने समर्थित विद्रोहियों के ठिकाने की जानकारी भी उसे उपलब्ध नहीं करा रहा है। उलटे वह रूस को विश्व शांति के लिए खतरा बता रहा है। (संवाद)
मध्यपूर्व में एक बड़ा खिलाड़ी बन गया है रूस
ईरान, इराक और सीरिया के साथ उसकी दोस्ती अमेरिका को खटकी
अरुण श्रीवास्तव - 2015-10-28 11:52
अमेरिका की दादागीरी समाप्त हो गई है। किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा कि विश्व पर अमेरिका का वर्चस्व इस तरह समाप्त हो जाएगा। रूस ने 30 सितंबर को सीरिया मे सशस्त्र हस्तक्षेप किया। वैसा वहां की सरकार के अनुरोध पर किया गया। उस हस्तक्षेप के साथ ही वहां अमेरिका की दादागीरी समाप्त हो गई।