ओबामा प्रशासन का ताजा निर्णय उसकी उस नीति के खिलाफ है, जिसके तहत उसने घोषणा की थी कि वह सीरिया की जमीन पर अपने सैनिको की तैनाती नहीं करेगा। अमेरिका आईएसआईएस के लड़ाकों के साथ अपने सैनिकों पर जमीनी लड़ाई के लिए उतारने के पक्ष में नहीं था और सिर्फ हवाई हमलों के द्वारा ही अपना अभियान चला रहा था।

ओबामा ने सितंबर 2013 में राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था कि मेरा जवाब बहुत सीधा है और वह यह है कि मैं यह नहीं चाहूंगा कि अमेरिकी सैनिको के पैर सीरिया की जमीन पर पड़े। उन्होंने साफ साफ लहजों में कहा था कि अमेरिका सीरिया में वह काम नहीं करेगा, जो उसने इराक और अफगानिस्तान में किया।

अब सीरिया की जमीन पर अपने सैनिकों के उतारने का अमेरिका का फैसला यह बताता है कि वहां उसकी स्थिति खराब हो गई है और उसके हितों का नुकसान होने वाला है। ओबामा ने अभी तक यह भी नहीं बताया है कि इराकी विद्रोहियों की सहायता वे आईएसआईएस लड़ाको से लड़ने के लिए कैसे करेंगे। इसके लिए उनके पास क्या योजना है।

ओबामा अमेरिका का राष्ट्रपति इस वायदे के साथ बने थे कि मध्यपूर्व से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाएंगे। लेकिन अन्य अनेक वायदों की तरह यहां भी मुकर गए हैं। हालांकि ओबामा अभी भी कह रहे हैं कि अमेरिकी सैनिकों का काम आईएसआईएस के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही संगठनों की सहायता करना होगा न कि खुद आईएसआईएस के साथ मुठभेड़ करना। ओबामा प्रशासन ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि सीरिया के राष्ट्रपति असद के खिलाफ लड़ रहे विद्रोही संगठनों के साथ उनकी सेना का तालमेल कैसा होगा।

पिछले 5 सालों से अमेरिका असद के खिलाफ विद्रोहियों को सहायता कर रहा है। लेकिन इस बीच उसने आईएसआईएस के खिलाफ लड़ने में अपनी दिलचस्पी कभी नहीं दिखाई। इसी बीच आईएसआईएस वहां एक बड़ी ताकत बनकर उभर आया है।

सीरिया में सेना भेजने का अमेरिका का ताजा निर्णय दुनिया में अमेरिका की विश्वसनीयता को गिराने वाला कदम है। इससे इस संदेह को बढ़ावा मिलता है कि उसका असली उद्देश्य अमेरिका द्वारा आईएसआईएस के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान को कमजोर करना है।

यह आश्चर्यजनक है कि रूस के साथ मिलकर आईएसआईएस के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने के बाद अमेरिका वहां अपनी चाल अकेला चल रहा है और अब उसने वहां सीधा हस्तक्षेप करने का फैसला कर लिया है।

यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका द्वारा सीरिया में अपने सैनिकों की तैनाती कुछ समय के लिए है या ऐसा स्थायी रूप से किया जा रहा है। यह फैसला एक ऐसा नेता ने किया है, जो कह रहा है कि वह अफगानिस्तान और इराक से अपने सैनिकों की वापसी करेगा। इसके कारण यह और भी रहस्यात्मक हो जाता है।

अमेरिका द्वारा मध्यपूर्व में अपनी सैनिक उपस्थिति बढ़ाने की नीति भय पैदा करने वाला भी है। मध्यपूर्व में अपने वर्चस्व की समाप्ति और वहां अपने घटते महत्व के कारण अमेरिका को यह कदम उठाना पड़ रहा है।

गौरतलब हो कि 2003 में बुश प्रशासन ने इराक में बड़े पैमाने पर सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी थी। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ओबामा प्रशासन सीरिया में उसी तरह की कार्रवाई करना चाहता है। हालांकि अमरिका के विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने कहा है कि उसकी सेना सीरिया में जमीनी लड़ाई लड़ने नहीं जा रहा है। पर प्रवक्ता की उस बात से शायद ही कोई आश्वस्त हो। जब सेना को वहां लड़ाई करनी ही नहीं है, तो फिर उसकी वहां जरूरत ही क्या है? (संवाद)