असद को वह सफलता रूस के सक्रिय सहयोग के कारण मिल रहा है। अपने एक विमान के आईएसआईएस द्वारा गिरा दिए जाने के बाद रूस ने वहां आक्रामक कार्रवाई तेज कर दी और उसके कारण असद विरोधियों के पांव उखड़ने लगे। फ्रांस में हुए आतंकी हमले के बाद उसने भी वहां कार्रवाई की। उसके कारण भी आईएस व अन्य असद विरोधियों के पांव उखड़ने लगे।

इसके कारण असद सरकार वहां मजबूती हासिल कर रही है और ऐसा होना अमेरिकी रणनीति की पराजय है। इसके कारण अमेरिका ने मानवीय मूल्यों का हवाला देकर वहां की समस्या का जल्द से जल्द समाधान निकालने का प्रस्ताव रखा और इसके लिए बातचीत के लिए तैयार हो गया। यह सीरिया में अमेरिकी रणनीति की पराजय थी, क्योंकि असद से किसी भी प्रकार की बातचीत के लिए अमेरिका तैयार नहीं होता था। वह हमेशा एक शर्त रखता था कि बातचीत में असद प्रशासन शामिल नहीं होगा।

लेकिन रूस असद को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। सच तो यह है कि सीरिया का यह संकट ही असद को हटाने के प्रयासों के कारण शुरू हुआ। कुछ अरब और पड़ोसी देशों मंे हुए क्रांतियों के बाद असद के खिलाफ भी लोग आंदोलित हुए थे और उसका लाभ उठाते हुए अमेरिका ने उस प्रशासन को हटाने के लिए शतरंज की बाजी बिछा दी थी। आईएस उसी शतरंज का एक मोहरा था और आईएस के अलावे भी उसके कई मोहरे थे।

पर रूस ने अमेरिका की चाल को नाकाम कर दिया। उसका कारण यह था रूस अपने भरोसे और पुराने सहयोगी असद को अमेरिका के रहमो करम पर नहीं छोड़ सकता था। लेकिन रूस के समर्थन के बावजूद कुछ तो वहां के लोकप्रिय आंदोलन के कारण और कुछ विदेशी ताकतों द्वारा उस आंदोलन का दी जा रही सहायता के कारण सीरिया के एक बड़े इलाके से असद का कब्जा समाप्त हो गया था। आईएस के अलावा अनेक विद्रोही गुट असद के खिलाफ खड़े थे और उसका फायदा उठाकर ही आईएस ने सीरिया के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया।

लेकिन रूस द्वारा अपनी आक्रामकता बढ़ाने के साथ ही वहां स्थिति बदलने लगी है। रूस लगातार हवाई हमले कर रहा है और असद के सभी विरोधियों के ठिकाने को एक के बाद एक ध्वस्त करता जा रहा है। ईरान के साथ सीरिया की बनी धुरी खोए हुए सीरियाई इलाके को रूस के संरक्षण मंे हासिल करती जा रही है। इसके कारण अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की बौखलाहट बहुत ज्यादा बढ़ गई है।ष्

उसके कारण उन देशों ने बातचीत कर शांति लाने की बात की। बातचीत हुई भी है और शांति लाने के संकल्प भी व्यक्त किए गए है। पर बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका और उसके सहयोगी देश वास्तव में शांति चाहते हैं या अपने को नई स्थितियों का सामना करने के लिए कुछ समय खरीदने की कोशिश कर रहे हैं?

असद के बढ़ते प्रभाव के बाद सऊदी अरब ने सीरिया में सैनिक हस्तक्षेप का इरादा जाहिर कर दिया था। उस पर रूस ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि यदि सऊदी ने वैसा किया तो स्थिति और भी बिगड़ेगी और फिर तीसरा विश्व युद्ध शुरू हो जाएगा। रूस का वह कहना गलत भी नहीं था, क्योंकि सऊदी के उस युद्ध में शामिल होने का मतलब अमेरिका और उसके अन्य सहयोगी देशों द्वारा उसमें शामिल हो जाना था।

अब उम्मीद की जानी चाहिए कि यदि बातचीत हुई है, तो उससे शांति प्रक्रिया को बढ़ावा भी मिलना चाहिए। (संवाद)