यानी अनेक ऐसे कारण थे, जिसके कारण दुनिया के ज्यादातर लोग यही चाहते थे कि ट्रंप चुनाव हार जाएं। वे उन्हें हारते हुए देखना चाहते थे, इसलिए उनके हारने की संभावना भी देख रहे थे। यह तो दुनिया की बात हुई। खुद अमेरिका के सारे सर्वे उनको हारता दिखा रहे थे। शायद ही कोई सर्वे होगा, जिसने कभी उनके जीतता हुई दिखाया होगा। एक बार तो उन्हें हिलेरी से 14 फीसदी पीछे दिखा दिया गया। उनकी हवा खराब करने के लिए अमेरिकी मीडिया ने अपनी सारी ताकत झोंक दी। उनका बड़े पैमाने पर चरित्र हनन किया गया। महिलाएं आती थीं और उनके खिलाफ कुछ न कुछ कह जाती थीं। कोई उनपर छेड़छाड़ का आरोप लगाती थी, तो कोई उनपर यौन दुष्कर्म तक का आरोप लगा देती थी। अपने बड़बोलेपन के द्वारा ट्रंप मीडिया और अपने विरोधियों को खूब मसाला दे दिया करते थे।

लेकिन उनकी हार की भविष्यवाणियों के बीच उनकी जीत हुई। यह सच है कि मुकाबला कांटे का था और लोकप्रिय मतों के मामले में तो हिलेरी उनपर भारी पड़ती दिखाई दे रही है, लेकिन सच यह भी है कि लोगों के बीच उनको जबर्दस्त समर्थन हासिल हुए। चरित्रहनन के उतने बड़े स्तर पर किए गए दुष्प्रचारों और पूरे मीडिया व काॅर्पोरेट जगत के विरोध के बावजूद वे विजयी हुए। यह बहुत बड़ी बात है। सच कहा जाय, तो अमेरिका का लगभग सभी प्रकार का सत्ता प्रतिष्ठान उनके खिलाफ था, लेकिन व्यवस्था विरोध की लहर पर सवार होकर वे जीत गए।

यदि उनकी जीत का श्रेय किसी को दिया जा सकता है, तो वह खुद हिलेरी को ही दिया जा सकता है। एक उम्मीदवार के रूप में हिलेरी अमेरिकी लोगों की बहुत बड़ी पसंद नहीं हो सकती थीं। उनकी छवि प्राइमरी चुनाव के समय से ही खराब होने लगी थी। प्राइमरी चुनाव वह अपनी पार्टी की उम्मीदवारी हासिल करने के लिए बर्नी सैंडर्स के खिलाफ लड़ रही थीं। बर्नी वामपंथी रुझान के नेता हैं और वे राष्ट्रपति बनने के बाद ऐसे ऐसे कार्यक्रम लागू करने की बात कर रहे थे, जिसके कारण वहां का काॅर्पोरेट जगत और मीडिया उनके खिलाफ था और उन्हें प्राइमरी मे मात देने के लिए वे हिलेरी का साथ दे रहे थे। व्यवस्था विरोधियों की पसंद बर्नी ही थे, लेकिन उन्हें पराजित करने के लिए हिलेरी और उनके समर्थको ने फ्राॅड किया। डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रमुख ने भी गलत तरीके से हिलेरी का साथ दिया और हिलेरी गलत तरीके से बर्नी को मामूली मतों से पराजित कर डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार बन गईं।

वे उम्मीदवार तो बन गईं, लेकिन बर्नी समर्थकों को वे खटकने भी लगीं। बर्नी तो अपनी पार्टी की होने कारण दुखी होकर भी हिलेरी के लिए काम कर रहे थे और उन्हें जिताने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे थे, लेकिन बर्नी के समर्थकों का एक हिस्सा हिलेरी को हराने के लिए कटिबद्ध था। वह नकारात्मक कारणों से ट्रंप का समर्थक बन गया और उनके खिलाफ चलाए गए दुष्प्रचार अभियान का उनपर कोई असर नहीं पड़ा।

हिलेरी को सत्ता प्रतिष्ठान और व्यवस्था का पूरा पूरा साथ मिल रहा था और दूसरी तरफ ट्रंप व्यवस्था विरोधी लोगों को अपने साथ लेने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने श्वेत लोगों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। श्वेत लोगों में भी नवयुवकों और बेरोजगार लोगों पर वे फोकस कर रहे थे। हिलेरी काॅर्पोरेट जगत के पैसे के बूते चुनाव लड़ रही थीं, जबकि ट्रंप चुनाव में अपने पैसे खर्च कर रहे थे। वे बार बार कह रहे थे कि वे जीतने के लिए किसी और द्वारा दिए गए धन का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, इसलिए वे जीतकर वैसे लोगों के लिए काम नहीं करेंगे, जबकि हिलेरी को वैसे लोगों को खुश करना होगा, जिनके पैसे से वह चुनाव लड़ रही हैं। इसके कारण उनका समर्थन मजबूत होता चला गया।

चुनाव अभियान के दौरान ही हिलेरी क्लिंटन का काला पक्ष लगातार सामने आ रहा था। विकीलिक्स उनके ईमेल को लीक कर रहा था और उससे पता चल रहा था कि प्राइमरी चुनाव जीतने के लिए उन्होंने किस तरह से फाॅड किया। अपने निजी सर्वर के इस्तेमाल का भी उनपर आरोप लग रहा था, हालांकि बाद में वहां की जांच एजेंसी एफबीआई ने उनको क्लीन चिट दे दिया, लेकिन तबतक उनका नुकसान हो चुका था। इसके कारण हिलेरी विरोधी मतदाताओं के मत ट्रंप को अपने आप मिल गए और तमाम सर्वेक्षणों को धता बताते हुए ट्रंप जीत गए। लेकिन ट्रंप की जीत नहीं, वास्तव में वह हिलेरी की हार था। (संवाद)