इसमें कोई शक नहीं है कि भारत ओबामा की कमी महसूस करेगा। वे भारत के एक विश्वस्त दोस्त की तरह उभरे थे। 2009 में उन्होंने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ एक संयुक्त प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत और अमेरिका की सहभागिता 21वीं सदी को परिभाषित करने वाली सहभागिता साबित होगी। अमेरिका के भारत में राजदूत रिचर्ड वर्मा ने हाल ही में कहा कि ओबामा के 8 सालों के कार्यकाल मे भारत के साथ अमेरिका के संबंध लगातार मजबूत होते रहे।

बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के अमेरिका से संबध उतार चढ़ाव से गुजर रहे थे। लेकिन क्लिंटन के दूसरे कार्यकाल में संबंधो में मजबूती आनी शुरू हो गई थी। यह मजबूती 1998 में हुए पोखरन के परमाणु परीक्षण के बावजूद आई। उनके कार्यकाल के बाद जाॅर्ज बुश जूनियर राष्ट्रपति बने। वह भी भारत से बेहतर संबंध बनाने की इच्छा रखते थे। भारत के साथ परमाणु करार कर उन्होने दोनों देशों के सबंधों को एक नई उच्चाई प्रदान की थी।

उसके बाद सत्ता में आकर ओबामा ने उस ऊंचाई को बनाए रखा। उसका एक कारण यह भी था कि ओबामा के प्रयासों को वहां उनकी विरोधी पार्टी के वर्चस्व वाली संसद का भी समर्थन मिल रहा था। मनमोहन सिंह के बाद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और दोनों देशों की दोस्ती और भी मजबूत हो गई और दोनों देशों की सरकारों के प्रमुख एक दूसरे का प्रथम नाम लेकर एक दूसरे को संबोधित करने लगे। अमेरिका की संसद को संबोधित करने वाले 5वें भारतीय प्रधानमंत्री बनने का सौभाग्य भी नरेन्द्र मोदी को प्राप्त हुए। संबंधों के बेहतर होने का एक कारण अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की बढ़ती ताकत भी रही।

जब ओबामा ने 2009 में सत्ता संभाली थी, तो भारत को डर लग रहा था कि पाकिस्तान को तरजीह देते हुए कहीं अमेरिका उसकी उपेक्षा न कर दे। चीन के प्रति ओबामा का जो व्यवहार दिखाई पड़ रहा था, उसके कारण भी भारत के मन में शंका पैदा रही थी। लेकिन ओबामा पहली बार 2010 में भारत आए, तो उस तरह की सारी शंकाएं दूर हो गईं। उसके बाद भारत के साथ उनकी मित्रता का वह दौर शुरू हुआ, जो लगातार नई नई ऊंचाइयां छूता रहा। ओबामा अमेरिका के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो दो बार भारत आए। पहली बार वे 2010 में भारत आए थे और दूसरी बार वे 2015 में यहां आए।

ओबामा के कार्यकाल के दौरान दोनों देशों के सामरिक रिश्ते बहुत मजबूत हुए। भारत और अमेरिकी सेना के बीच संयुक्त युद्धाभ्यासों की संख्या बढ़ गई। सच तो यह है कि आज भारत सबसे ज्यादा युद्धाभ्यास अमेरिकी सैनिकों के साथ ही संयुक्त रूप से करता है। अमेरिका से भारत अपने हथियारों का आयात भी पहले से ज्यादा कर रहा है। आज भारत अमेरिकी हथियारों का दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा खरीददार देश है।

अन्य अनेक क्षेत्रों में भारत और अमेरिकी संबंधों में प्रगाढ़ता आई। खुफिया सूचनाओं के आदान प्रदान की रफ्तार बढ़ी। ऊर्जा सेक्टर में भी सहयोग बढ़े। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भी दोनों देश एक दूसरे के काफी नजदीक आए।

अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता का खुलकर समर्थन किया। परमाणु आपूर्ति समूह में भारत के प्रवेश का भी वह समर्थन कर रहा है। दुनिया के अनेक मामलों में भारत और अमेरिका मिलता जुलता विचार रखता है। दोनों अफगानिस्तान सरकार का समर्थन करते हैं और तालिबान के विस्तार का विरोध करते हैं।

अब सबकी आंखें यह देखने को खुली हुई हैं कि नये राष्ट्रपति भारत के साथ अपने देश के संबंधों को लेकर कैसा रुख अपनाते हैं। (संवाद)