अस्ताना शिखर को सफल बनाने के लिए मेजवान देश कजाखस्तान अच्छी तैयारियों में जुटा है। कजाख राष्ट्रपति एन नजारबायेव ने रेखांकित किया है कि शिखर का एजेंडा, क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग का विकास और परिवहन सुविधा बढ़ाने में साझेदारी के साथ साथ मानवीय और सांस्कृतिक सहयोग होगा। क्षेत्रीय सुरक्षा का मामला ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि अफगानिस्तान के भावी राजनैतिक स्वरूप का निर्धारण होना अभी बाकी है। डाॅनल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद उत्पन्न परिस्थितियों का जायजा लिया जाना भी अभी बाकी है। चूंकि शिखर जून के दूसरे सप्ताह में होगा, इसलिए इसके सदस्य देशों के पास अ्रभी चार महीना है, जिसमें वे ट्रंप की चाल उससे उत्पन्न परिस्थितियों को देखने और समझने की केाशिश कर सकते हैं।
अफगानिस्तान, पाकिस्तान और चीन से संबंधित अमेरिका की नीति क्या होती है- उसे देख और समझकर ही भारत उस शिखर सम्मेलन में अपने कदम को स्पष्ट करना चाहेगा। भारत यह जानने में दिलचस्पी ले रहा है कि क्या आतंकवाद के कारण अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कड़ा रवैया अख्तियार करना चाहता है? इसका कारण यह है कि पाकिस्तान भारत के जम्मू और कश्मीर में अपनी गतिविधियों पर लगाम नहीे दे रहा है और वहा आतंकवाद का लगातार समर्थन कर रहा है। ट्रंप ने कहा है कि रूस और वैसी ही अन्य ताकतों से मिलकर आईएसआईए का खात्मा करेंगे। उनका यह बयान भारत के पक्ष में जाता है। इसका कारण यह है कि आईएसआईएस ने भारत के अनेक शहरों में भी अपना नेटवर्क बना लिया है। भारत आईएसआईएस के खिलाफ एक व्यापक एकता का समर्थन करता है।
शंघाई सहयोग संगठन नया सदस्य बनाने के कड़े नियम रखता है। 2010 में इस संगठन ने नये सदस्य बनाने के नियम और विनियम तैयार किए। उनके अनुसार नया सदस्य देश यूरेशिया का ही कोई देश हो सकता है। इसका अलावा किसी नये सदस्य देश के लिए संगठन के अ्रन्य सभी देशों के साथ राजनयिक संबंध भी होना चाहिए। इसके साथ यह भी शर्त है कि उस देश पर संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से किसी प्रकार का प्रतिबंध लगा नहीं होना चाहिए और उस देश का किसी के साथ सशस्त्र संघर्ष भी नहीं होते रहना चाहिए। यही कारण है कि ईरान को अभी इसका सदस्य बनने में कुछ समय लगेगा।
चीन और रूस को यह बताते हुए परेशानी होती है कि यह संगठन पश्चिमी देशों के ब्लाॅक की प्रतिस्पर्धा में तैयार नहीं किया गया है और इसकी कोई सामरिक महत्वाकांक्षा भी नहीं है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन चाहते हैं कि ईरान को भी इस संगठन की सदस्यता मिले। इसके बाद यह संगठन आर्थिक और सामरिक रूप से काफी ताकतवर हो जाएगा। भारत और पाकिस्तान के इस संगठन में शामिल हो जाने के बाद वैसे भी सत्ता का संतुलन बदलने की संभावना बन गई है, क्योंकि चीन के वर्चस्व वाला यह संगठन माना जाता रहा है। ट्रंप की विदेश नीति चीन और भारत को दोस्ताना संबंध बनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।
भारत को इसकी सदस्यता से अवसर के नये द्वार खुल गए हैं। आतंकवाद के खिलाफ समर्थन हासिल करने के लिए उसे एक अच्छा मंच मिल गया है और इसके अलावा मध्य एशिया के तेल और गैस परियोजनाओं मे भागीदारी का मौका भी उसे मिल गया है। इन देशों के साथ भारत का अच्छा संबंध पहले से ही है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इन देश की यात्राओं ने संबंधों को और भी मजबूत किया है। अब इस संगठन की सदस्यता के कारण मध्य एशिया में वह अपनी उपस्थिति और भी मजबूत कर सकता है। (संवाद)
शंघाई सहयोग संगठन का जून शिखर सम्मेलन
भारत को अपना हक जमाना होगा
नित्य चक्रबर्ती - 2017-03-11 11:29
अगले जून महीने में कजाखस्तान के अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन होने वाला है। इस शिखर में उम्मीद की जा रही है कि भारत अपने ओर से काफी सक्रियता दिखाएगा। पिछले शिखर में भारत और पाकिस्तान को इस सहयोग संगठन का पूर्णकालीन सदस्य बनाया गया था। अब अपनी सदस्यता का पूरा इस्तेमाल करने का समय भारत के लिए आ गया है। उसे क्षेत्रीय सुरक्षा से संबंधित मसलों को उठाना है और इसके साथ ऊर्जा संसाधनो में साझेदारी की बात भी आगे बढ़ानी है। भारत के सबंध इस संगठन के सभी मूल 6 सदस्य देशों के साथ अच्छा है। वे मूल सदस्य देश है- चीन, रूस, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान, और ताजिकिस्तान। इसके कारण भारत को एक अन्य नये सदस्य देश पाकिस्तान के अपने संबंधों के बारे मे स्थिति स्पष्ट करने में भारत को आसानी होगी। भारत आशावान है कि आतंकवाद के खिलाफ उसके स्वर को मूल सदस्य देशों का समर्थन मिलेगा।