अमेरिकी सरकार पाकिस्तान को दुनिया भर में दहशतगर्दी और आतंक फैलाने के लिए जिम्मेदार ठहरा चुका है। पाकिस्तान को आतंक की फसल उगाने वाले देशों की सूची में डाल दिया गया है। अमेरिका की इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान अंतरराष्टीय मंच पर बेनकाब हुआ है। अब यह साबित हो गया है कि भारत, अफगानितस्तान और दूसरे देशों में फैला आतंकी जाल उसकी साजिश है। लेकिन पाकिस्तान पर क्या इस कार्रवाई से कोई फर्क पड़ने वाला है। पड़ोसी मुल्कों में आतंक की आपूर्ति नीति पर क्या वह प्रतिबंध लगाएगा, उसके नजरिए में क्या कोई बदलाव आएगा। लेकिन आतंक के खिलाफ लड़ाई में पाकिस्तान और चीन के खिलाफ भारत को एक बड़ा और विश्वसनीय सहयोगी मिला है। कूटनीतिक तौर पर अपने आप में यह बड़ी जीत है। इस प्रतिबंध के बाद हिजबुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठन की सभी परिसंपत्तियां जो अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में आती हैं उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। अमेरिका का कोई भी व्यक्ति या संगठन इस संगठन से कोई ताल्लुक नहीं रख पाएगा। अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों के हाथ अगर कोई आतंकी लगता है तो उसे गिरफतार भी किया जा सकता है। हिजबुल मुजाहिदीन 1989 में अवतरित हुआ। यह कश्मीर मे सक्रिय आतंकी संगठनों में सबसे बड़ा है। इसका मुख्यालय पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफराबाद में हैं। इस संगठन को भारत और दुनिया के कई देशों में आतंकवाद फैलाने के लिए फंडिंग मिलती है।

आतंकवाद पर भारत-अमेरिका की जुगलबंदी से चीन और पाकिस्तान की जमींन हिलने लगी है। क्योंकि चीन आतंकवाद पर दोहरा मापदंड अपना रहा है। वह संयुक्तराष्ट संघ में भारत की तरफ से जैश-ए-मोहम्मद के सरगना अजहर मसूद पर लाग जा रहे प्रतिबंध प्रस्ताव को वीटो के जरिए पास नहीं होने दे रहा है। लेकिन अब अमेरिकी नीति के सामने वह कब तक टिक पाता है यह देखना होगा। अब पाकिस्तान की धरती पर लश्कर, जैश-ए-मोहम्मद और हुक्कानी नेटवर्क के दिन लदने वाले हैं। क्योंकि अमेरिकी सीनेट ने पाकिस्तान को मिलने वाली सैन्य मदद पर जहां शर्तों के साथ पूर्व में ही प्रतिबंध लगा चुका है। जबकि भारत के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए विधेयक भी लाया गया था। यह दोनों देशों के संबंधों के बीच कूटनीतिक जीत है। भारत-अमेरिका के बीच मजबूत होते रिश्तों ने एक मिशाल कायम की है। अमेरिका ने पूर्व पीएम नवाज सरीफ से साफ शब्दों में कहा था कि आतंक पर दोहरी नीति नहीं चलेगी। पाकिस्तान को खुद की धरती से आतंकी शिविरों को हरहाल में नष्ट करना होगा। टंप सरकार ने साफ कहा है कि आतंक के खात्मे के लिए उससे जो उम्मीद की गई थी वह पूरी तरफ उस पर खरा नहीं उतरा। हक्कानी नेटवर्क पर वह प्रतिबंध नहीं लगा पाया।

जबकि जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, तालिबान जैसे आतंकी संगठनों को पाकिस्तान में खुले आम टेनिंग दी जाती है। पड़ोसी मुल्कों में हमले करने के लिए आतंकियों को फंड भी उपलब्ध कराए जाते हैं। अमेरिका ने साफ कहा है कि पाकिस्तान आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाह और स्वर्ग साबित हो रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान अपनी आदतों में सुधार लाएगा। आतंकी घोषित होन के बाद भी सैयद सलाउद्दीन पाकिस्तान टेलीविजन पर खुले आम भारत में आतंकी विस्फोट करने का अल्टीमेटम दिया, जिसके बाद अमरनाथ यात्रियों पर हमला हुआ था। इसके बाद नजरबंध हाफिज सईद के साले एक आतंकी जलसे में बंदूक भेंट में लिया, जिसमें हजारों की संख्या में आतंकी मौजूद थे। यह सब पाकिस्तान में खुले आम प्रसारित हो रहा है। कहने को सईद नजरबंद है लेकिन वह खुले आम राजनीतिक पार्टी बना रहा है और पनामा पेपर कांड के बाद कुर्सी छोड़ने वाले मियां नवाज शरीफ के उत्तराधिकारी के सामने चुनावी जंग फतह करने के लिए अपनी पार्टी मिल्ली से उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। अंधे पाकिस्तान को क्या यह सब नहीं दिखाई दे रहा है। फिर यह कैसे मान लिया जाय कि अमेरिका की तरफ से हिजबुल को अतंरर्राष्टीय आतंकी संगठन घोषित होने के बाद वहां जारी आतंकी गतिविधियों पर विराम लगेगा। हलांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के बाद दोनों महाशक्तियों के बीच कूटनीतिक रिश्तों में अहम बदलाव आए हैं। पाकिस्तान में पनाह लिए सैयद सलाउद्दी को आतंकी घोषित करने के बाद उसके संगठन पर दूसरी धार सबसे बड़ी जीत है। हलांकि इतने जल्दी सब कुछ बदलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। लेकिन आतंकवाद के खात्में के लिए सकारात्मक संदेश आने लगे हैं। इराक के मोसूल से आईएसआई का सफाया इस कड़ी में एक बड़ी उम्मीद जगाता है। वैश्विक आतंकवाद से हम एक साथ एकजुट होकर ही लड़ सकते हैं। आतंकवाद पर चीन की दोगली नीति फेल हो गई है जिसकी वजह है की वह डोकलाम नाटकीय नीति पर काम कर रहा है। लेकिन हमें इन सबसे बेहपरवाह अपनी आतंकरिक सुरक्षा नीति को मजबूत करना होगा। हमारे लिए पाकिस्तान से अधिक बड़ा दुश्मन चीन है। चीन को हरहाल में हमें सबक सीखाना होगा। हलांकि युद्ध किसी समस्या हल नहीं हो सकता। डोकलाम और कमश्मीर पर भारत की नीति बिल्कुल साफ है। चीन और पाकिस्तान अगर इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं तो यह उनकी नाकामी हैं। भारत को कमजोर आंकने की भूल चीन कभी नहीं कर सकता है। हमें पाकिस्तान और चीन को उसकी भाषा में ही जबाब देना चाहिए। जापान भी डोकलाम विवाद पर भारत का समर्थन किया है। मसले को बातचीत के जरिए सुलझाने की पहल की है। भारत की वैश्चिक तागत और कूटनीति की सफलता को देखते हुए चीन युद्ध की गलती कभी नहीं कर सकता। लेेकिन हमें बेहद सतर्क रहना होगा। चीन हमारे लिए बड़ी समस्या है। लेकिन आतंक पर अमेरिकी नीति के कसते सिकंजे से वह घबरा गया है। अब मसूद पर वह कौन सी नीति अपनाता है, यह देखना होगा। (संवाद)