बहरहाल, वह राजतंत्र की बात है और उसी राजतंत्र के दौरान खूनी माओवादी आंदोलन हुए। कुछ तो माओवादी आंदोलनों के कारण पैदा हुए गृहयुद्ध के कारण और कुछ पूर्व राजा और उनके परिवार की हत्या के बाद उनके वारिसों के प्रति लोगों के मन में संशय के कारण, व्यवस्था बदलाव हो गया। लेकिन बदलाव की वह प्रक्रिया आसान नहीं थी। लोकतांत्रिक चुनाव हुए और चुने हुए प्रतिनिधियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक संविधान तैयार करने की थी। संविधान बनाने की प्रक्रिया लंबी चली और तमाम गतिरोधों और उथल पुथल के बीच आखिरकार नया संविधान बन ही गया। इसके लिए नेपाल के राजनैतिक पार्टियों के नेताओं की प्रशंसा करनी चाहिए कि भारी राजनैतिक अनिश्चितता के बीच उन्होंने अपना एक संविधान तैयार कर लिया और उसे लागू भी कर दिया।
हालांकि संविधान लागू करना भी आसान नहीं था। नेपाल की आबादी के लगभग आधे हिस्से वाले मधेशी नवनिर्मित संविधान से खुश नहीं थे। यह सच है कि नये संविधान के तहत उनके साथ किया जाने वाला पुराना भेदभाव बहुत हद तक समाप्त हो गया था, लेकिन प्रदेश के सीमांकन को लेकर वे नाराज थे और नये संविधान के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन छेड़ दिया। जिस भौगालिक क्षेत्र में मधेशी रहते हैं, वे ऐतिहासिक रूप से भारत के हिस्से रहे हैं, लेकिन आक्रमणों और राज्य विस्तार के तहत वे समय समय पर अलग अलग साम्राज्यों के हिस्से भी रहे। अंग्रेजों ने सिंगाली संधि के तहत वह हिस्सा नेपाल को दे दिया था और उसके कारण वह हिस्सा जहां मधेशी रहते हैं, वह नेपाल का हिस्सा हो गया और मधेशी भी नेपाल की प्रजा हो गए थे। लेकिन नेपाल के अंदर यह माना जाता रहा कि वे लोग भारत से आकर नेपाल में बसे मधेशी हैं, जबकि सच्चाई यह है कि जिस हिस्से में वे बसे हैं, वही उनका पुश्तैनी क्षेत्र रहा है और वे कहीं से आकर वहां नहीं बसे, बल्कि उस क्षेत्र के नेपाल का हिस्सा बनने के साथ ही वे भी नेपाल का हिस्सा बन गए।
यह तो इतिहास की बात हुई। वर्तमान की बात यह है कि नवनिर्मित संविधान के खिलाफ उन्होंने आंदोलन कर दिया और उसके कारण भारत से आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति नेपाल के पहाड़ी इलाको तक बहुत समय तक के लिए रुक गई थी। उसके कारण वहां रह रहे लोगों को भारी नुकसान हुआ। उस आंदोलन में भारत का हाथ नहीं था, लेकिन वे मधेशी भारतीय सीमा के इर्द गिर्द ही नेपाल में रहते हैं, इसलिए भारत पर यह आरोप लगाया जाने लगा कि मधेशी आंदोलन मे इसका ही हाथ है। जो लोग इस तरह का आरोप लगाते थे, वे आज सरकार बना रहे हैं। जाहिर है, नेपाल की नई सरकार के बीच भारत के प्रति पहले वाला सद्भाव नहीं होगा। वे भारत के प्रति आने वाले दिनों में भी शक का भाव रखेंगे और भारत के लिए यह परिस्थिति निश्चय ही बहुत ही चुनौतियों भरी होगी।
नेपाल भौगोलिक रूप से भारत और चीन के बीच में है। वह दोनों देशों के बीच एक बफर स्टेट का काम करता है। उसके कारण चीन से भारत अपने को कुछ सुरक्षित भी पाता है। परंपरागत तौर से नेपाल चीन की अपेक्षा भारत के नजदीक रहा है। दोनों देशों का इतिहास भी मिलता जुलता है और दोनो देश हिमालय द्वारा संरक्षित हैं, जबकि चीन हिमालय की बीहड़ों उत्तर में है। नेपाल और भारत सांस्कृतिक रूप से भी एक दूसरे के बहुत नजदीक है। दोनों हिन्दू बाहुल्य देश है। दोनों की सीमाएं भी खुली हुई और दोनों देशों के नागरिकों के एक दूसरे देश में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसके लिए वीजा और पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती। दोनों देशों के बीच अनेक नदियां साझा हैं और किसी तरह का जल विवाद भी नहीं है।
इतना ही नहीं, भारत में नेपाल की एक बहुत बड़ी आबादी आकर बसी हुई है और नेपाल में भारत के बहुत लोग जाकर काम करते हैं। सीमवर्ती इलाकांे में लोगों के सीमापार वैवाहिक संबंध तक स्थापित होते हैं। एक बड़ी बात यह भी है कि नेपाल एक मात्र ऐसा विदेशी देश है, जिसके नागरिक भारतीय सेना में शामिल होते हैं। नेपालियों के नाम पर ही भारतीय सेना में एक गुरखा रेजिमेंट तक है, जिसने अनेक लड़ाइयों में भारत के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है और गोरखा सैनिकों ने भारत की रक्षा करते हुए अपनी कुर्बानी तक दी है।
इतनी नजदीकियों के बावजूद आज नेपाल भारत के प्रति सशंकित रहता है और उसे लगता है कि भारत पर से वह अपनी निर्भरता समाप्त या कम करे। इसके लिए वह चीन से अपने सबंधों में प्रगाढ़ता लाने की कोशिश कर रहा है। कोई पड़ोसी देश अन्य देशों से अपने संबंध बेहतर करे, इससे भारत को क्या एतराज हो सकता है, लेकिन चीन से हमारे संबंध खराब रहे हैं। कुछ दिन पहले डोकलाम पर दोनों देशों के बीच भारी गतिरोध बना हुआ था। ऐसी स्थिति में भारत नहीं चाहेगा कि नेपाल का इस्तेमाल चीन हमारे खिलाफ करे। इसके लिए नेपाल से रिश्ते और बेहतर करने की जरूरत है। एक ऐसी सरकार बनने के बाद जो भारत के प्रति सशंकित है, भारत की चुनौतियां और भी बढ़ जाती हैं। (संवाद)
नेपाल के चुनावी नतीजे
भारत के सामने नई चुनौती
उपेन्द्र प्रसाद - 2017-12-15 14:16
नेपाल के चुनावी नतीजों के बाद वहां वामपंथी मोर्चा की सरकार बन रही है और के पी ओली वहां के प्रधानमंत्री बन रहे हैं। चूंकि मोर्चे को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ है, इसलिए इसकी पूरी संभावना है कि यह सरकार पूरे 5 सालों तक चलेगी और पिछले 11 सालों से वहां चल रहा अस्थिरता का दौर अब समाप्त हो जाएगा। वहां 2006 से ही राजनैतिक अस्थिरता का दौर चल रहा था। उसी साल नेपाल में राजतंत्र की समाप्ति हुई थी और एक लंबे गृहयुद्ध के बाद राजा ने सत्ता त्याग दी थी। लेकिन उस सत्ता त्याग की पृष्ठभूमि भी खून से रंगी हुई थी। महाराजा बीरेन्द्र की हत्या उसके कुछ साल पहले ही हो गई थी। सिर्फ उनकी ही नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार की ही हत्या कर दी गई थी और हत्यारा और कोई नहीं, बल्कि उनका अपना बेटा ही था। हालांकि कुछ लोग उस हत्याकांड को एक बड़ी साजिश भी बताते हैं, जिसमें राजकुमार को मुखौटा बनाया गया था।