शुक्रवार, 17 नवम्बर 2006
विश्व व्यवसाय, आतंकवाद और लाभुकता
अपेक्षाकृत सुरक्षित भारत में भी खतरे कम नहीं
ज्ञान पाठक
लंदन की एक कंपनी कंट्रोल रिस्क ने हाल ही में प्रकाशित अपनी एक रपट में दुनिया भर में व्यवसाय करने के जोखिमों के मामले में भारत को सबसे कम जोखिमों वाले देशों में एक माना है, चाहे वह राजनीतिक हो या सुरक्षा संबंधी। दुनिया के संदर्भ में उसने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताया है, जबकि अन्य खतरों में राजनीतिक उथल-पुथल, बदलते पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों का घटता चले जाने, महामारियों और आर्थिक झटकों को भी शामिल किया गया है। वर्ष 2007 के लिए संक्रमण काल के खतरों को उसने 2006 की तरह का ही माना है। उसने बताया कि आतंकवाद का खतरे पहले के मुकाबले बढ़ता ही जा रहा है।
उसने अपने निष्कर्ष के समर्थन में अमेरिकी विदेश विभाग की ताजा रपट को सामने रखा जिसमें बताया गया है कि 2003 में 208; 2004 में 3168; तथा 2005 में 11,111 आतंकवदी हमले हुए थे। तुलना फिर भी मुश्किल इसलिए है कि आतंकवाद की परिभाषा लगातार बदली जाती रही है। वैश्वीकरण के दौर में दुनिया भर के बाजार और व्यवसायों को मुक्त अर्थव्यवस्थाओं के तहत बदले का लाभ भी आतंकवाद के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है क्योंकि अपनी गतिविधियों के लिए धन हस्तांतरित करना उनके लिए भी आसान हो गया है। यह दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है।
व्यवसाय को दरपेश खतरों में इंटरनेट के माध्यम से अपराध का विस्तार, तस्करी और नकली माल बनाना, तथा मानवों की तस्करी को गिनाया गया है। एक देश से दूसरे देश में मानवों की तस्करी इस समय 800000 के करीब है और यदि देशों के अंदर होने वाले मानवों की तस्करी इसमें शामिल कर लिया जाये तो इनकी संख्या बढ़कर 20 से 40 लाख के बीच की होगी, जैसा कि अमेरिकी विदेश विभाग का अनुमान है। मानव तस्करी का कारोबार इस समय 9.5 अरब डालर के बराबर है।
लालफीताशाही को इस रपट ने व्यवसाय के विकास में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक माना है। रपट में बताया गया कि इस समय दुनिया में कोई 70,000 अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय करने वाली कंपनियां हैं तथा उनकी अनुषंगी इकाइयों की संख्या कोई 700,000 और साथ में दसियों लाख आपूर्तिकर्ता। सरकारी तंत्र की आपराधिक गतिविधियों के अलावा उन्हें अन्य आपराधिक असुरक्षा के जोखिम भी हैं।
अंतर्राष्ट्रीय निवेश इस समय 60 अरब डालर प्रतिवर्ष है तथा सबसे ज्याद लाभ विकासशील देशों के बाजारों में ही है। पर वहां इन कंपनियों के लिए जोखिम भी ज्यादा हैं। रपट में चीन और भारत का विशेष जिक्र करते हुए कहा गया कि ये विकासशील देशों के व्यवसायों को चुनौती देने की स्थिति में आ रहे हैं और इसलिए विकसित देशों को शीघ्र ही कुछ करना होगा।
2007 में क्या हो सकता है? रपट में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की गयी है। संकेत दिया गया है कि आतंकवादी संगठन सीबीआरएन हैसियत हासिल कर सकते हैं। अर्थात वे केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल और न्यूक्लियर हथियार हासिल कर सकते हैं जिससे खतरे बढ़ जायेंगे।
दूसरा सबसे बड़ा खतरा यह कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी लगभग 3.4 अरब प्राकृतिक विपदाओं वाले क्षेत्रों में रहते हैं और प्रति वर्ष इन विपदाओं से नुकसान बढ़ता गया है। वर्ष 1975 में प्रकृतिक विपदाओं से नुकसान मात्र 10 अरब डालर था जो 2005 में बढ़कर 159 अरब डालर हो गया है।
व्यवसाय को एक बड़ा खतरा महामारियों से है, क्योंकि बीमार अपने काम से भी अनुपस्थित रहने लगता है। मानव जीवन के नष्ट होने से श्रम बल का भी नुकसान होता है। आशंका व्यक्त की गयी कि दुनिया का सकल घरेलू उत्पाद इनसे जुड़े खर्चों और नुकसान के कार दो से पांच प्रति शत तक घट सकता है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के क्षेत्रीय विरोध बढ़ने की संभावनाएं भी इस रपट ने व्यक्त की है। शहरी अशांति का एक नया युग जोर पकड़ सकता है, रपट ने आशंका व्यक्त की। कारण बताते हुए कहा गया कि खुदरा और सेवा क्षेत्र में कंपनियों की बढ़ती रुचि शहरों में ही है और इनके कारण गांवों से शहरों को पलायन बढ़ सकता है। बताया गया कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में लोगों की भागीदारी और रुचि घट सकती है क्योंकि लोग ज्यादा से ज्यादा विस्फोटक सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे होंगे।
दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक मैरिया कुसिस्टो ने भारत को राजनीतिक रुप से असुरक्षित की श्रेणी में रखा है। कश्मीर, असम, मणिपुर, त्रिपुरा और नागालैंड का विशेष जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि अवसंरचना विकास भारत की क्षमता की कसौटी होगी। इसी की सफलता पर भारत में निवेश का स्तर निर्धारित होगा, विशेषकर सेवा क्षेत्र और बिजनेस प्रोसेस आऊटसोर्सिंग के मामले में, जौ भारत की अर्थव्यवस्था की सबसे सफल कहानी रही है।
रपट में कहा गया कि भारत अपने ही विकास का शिकार भी हो रहा है। तेजी से विस्तारित हो रहे शहर निवेशकों की जरुरतों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। उनकी जरुरतों में व्यवसाय के लिए समुचित जगह, सस्ते और शिक्षित श्रम बल, परिवहन, विश्वसनीय बिजली आपूर्ति और दूरसंचार, तथा आंतरिक और वाह्य सुरक्षा व्यवस्था शामिल हैं।
भारत ने जो सुविधाएं विकसित भी कीं उनका लाभ वह निवेश के रुप में नहीं ले पा रहा है, जिनके कारणों में अचल संपत्तियों की कीमतें बढ़ना, अवसंरचनात्मक सुविधाओं का ध्वस्त होता चला जाना, सुरक्षाव्यवस्था की कमी और अशांति शामिल हैं।
लंदन की इस कंपनी ने केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में चल रही संप्रग सरकार के बारे में कहा कि वह इन समस्याओं को स्वीकार करते हुए उन्हें दूर करने की कोशिश कर रही है। विशेष आर्थिक क्षेत्रों की हाल की केन्द्र की योजना को भी इसी श्रेणी में रखा गया हो और उम्मीद जतायी गयी कि अब आर्थिक केन्द्रों के रुप में ध्यान एक नंबर वाले शहरों से (दिल्ली, मुंबई और बंगलूर जैसे शहर) खिसककर दो नंबर के शहरों की ओर ( कोलकाता और चेन्नई ) जायेगा। कहा गया कि दो नंबर के इन शहरों वाले राज्यों की राजनीतिक सत्ता बाहरी निवेश के लिए कुछ ज्यादा करने की इच्छा रखते हैं। फिर भी इस कंपनी ने निवेशकों को ज्यादा सतर्कता से काम करने की सलाह दी है, ताकि विपदा की स्थिति में दुष्प्रभाव सीमित किये जा सकें।
रपट में कहा गया कि भारत में व्यवसाय की लागत अवसंरचनात्मक अभावों के कारण बढ़ रही है। उन्हें निजी सुरक्षा, परिवहन सेवा, ऊर्जा उत्पादन, जलापूर्ति, और जल-मल निकासी में भी निवेश करना पड़ता है।
सरकार की ओर से राजनीतिक विलंब और अपर्याप्त धन को भी इन समस्याओं के निराकरण न होने का कारण बताया गया। भारत में बड़ी योजनाएं भी बड़ी समस्याएं लेकर आती हैं। रपट का कहना है कि भारत की अनेक बड़ी परियोजनाएं राजनीतिक अंतर्कलह में फंसी हैं और जब वे पूरा होंगी तब तक परियोजना लागत भी बढ़ जाने और स्वयं परियोजनाओं के तकनीकी रुप से पुराने पड़ जाने के खतरे ज्यादा हैं। अधिकारीतंत्र के लफड़ों को भी प्रमुख समस्याओं में गिनाया गया है।
भारतीय गुप्तचर सूत्रों का हवाला देते हुए रपट में कहा गया कि आतंकवादी संगठन व्यावसायिक जिलों को अपना निशाना बना सकते हैं। उनकी रुचि व्यावसायिक ठिकानों पर हमले करने में बढ़ी हुई है। #
ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से
विश्व व्यवसाय, आतंकवाद
System Administrator - 2007-10-20 06:37
लंदन की एक कंपनी कंट्रोल रिस्क ने हाल ही में प्रकाशित अपनी एक रपट में दुनिया भर में व्यवसाय करने के जोखिमों के मामले में भारत को सबसे कम जोखिमों वाले देशों में एक माना है, चाहे वह राजनीतिक हो या सुरक्षा संबंधी। दुनिया के संदर्भ में उसने आतंकवाद को सबसे बड़ा खतरा बताया है, जबकि