इस योजना के पूरी तरह से क्रियान्वयन को लेकर कृषि के जानकार आशंकाएं जता रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस योजना का लाभ उठाने से बहुत से किसान वंचित रह जाएंगे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है कि कर्ज माफी का लाभ पूरे किसानों को देने के लिए केरल के तर्ज पर किसान कर्ज राहत आयोग बनाना चाहिए। 70 फीसदी किसानों ने महाजनों से कर्ज लिए हैं, उनके लिए फिलहाल इस योजना में जगह नहीं है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जीरो फीसदी ब्याज पर ऋण देने की घोषणा की थी, जिसकी वजह से बहुत से किसानों को ऋण मिलना बंद हो गया और यहां तक कि काॅपरेटिव में नए सदस्य तक नहीं बनाए गए। ऐसे में किसानों ने महाजनी कर्ज ले लिया। कर्ज माफी के कारण बैंक कर्ज देने में आनाकानी करने लगे हैं। इन सारे मसलों की जांच करने और किसानों को लाभ दिलाने के लिए आयोग बनाना बहुत ही जरूरी है। उनका कहना है कि कांग्रेस के सरकार आने के बाद भी प्रदेश में 4 किसानों ने आत्महत्या की है। आखिर यह क्यों हुआ? माकपा के ही बादल सरोज का कहना है, ‘‘सरकार के इस कदम को अच्छा कहा जा सकता है, लेकिन इसके दायरे में किसानों द्वारा खेती के लिए लिए गए सभी स्रोतों के कर्ज को शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही आगे किसान इस दुश्चक्र में न फंसे, इसके लिए कदम उठाना जरूरी है।’’

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने यह कहा कि महाजनों से लिए गए कर्ज को लेकर भी अध्ययन करवा रहे हैं, और उनकी कोशिश होगी, इस तरह से अनौपचारिक कर्ज पर अंकुश लगाया जाए। उनका कहना है कि किसानों को मजबूत किए बिना मध्यप्रदेश की कृषि आधारित अर्थ-व्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती। कृषि क्षेत्र अर्थ-व्यवस्था की नींव है। ’जय किसान फसल ऋण माफी योजना’’ से प्रदेश के 55 लाख किसानों को 50 हजार करोड़ रुपए के फसल ऋण माफ हो जाएंगे। ऋण मुक्ति के बाद किसानों को प्रमाण-पत्र भी दिए जाएंगे और यह सारी प्रक्रिया फरवरी तक पूरी हो जाएगी। उन्होंने यह कहा कि युवाओं के लिए रोजगार सृजन के लिए प्रदेश में निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा।

किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डाॅ. सुनीलम् का कहना है, ‘‘किसानों का कर्ज माफ करना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन यह संभव हो, यह सुनिश्चित करना भी सरकार की जिम्मेदारी है और इसके लिए बजट प्रावधान करना और लोकसभा के लिए आचार संहिता लगने से पूरा करना महत्वपूर्ण है।’’

मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि मध्यप्रदेश को निवेश के क्षेत्र में प्रतियोगी राज्य बनाना है। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश को भौगोलिक लाभ नहीं मिला है। इसलिए प्रदेश की अपनी नीति बनानी होगी। इस पर डाॅ. सुनीलम् का कहना है कि सरकार को किसानों के हित में यह सुनिश्चित करना होगा कि निवेश लाने के नाम पर किसानों की बहुफसली जमीन का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। किसानों के लिए चिंतित सरकार को पहले से अधिग्रहित जमीन को भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किसानों को लौटाना चाहिए, जिसका उपयोग अबतक नहीं किया गया है।

किसानों को राहत देने की इस योजना के आगे-पीछे बहुत सारे पेंच हैं। बार-बार कर्ज माफी की घोषणा के कारण किसानों को बैंक ऋण देने में आना-कानी कर रहे हैं। किसानों को कर्ज माफी से ज्यादा चिंता अपनी फसलों का लागत निकालने को लेकर है। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी चाहते हैं। किसान पुत्रों की खेती से बेरुखी, भविष्य में कृषि संकट को ज्यादा बढ़ाएगा। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि समग्र नीति बनाए बिना सिर्फ कर्ज माफी फौरी राहत ही दे सकता है, लेकिन जिसकी तत्कालिक जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता।(संवाद)