पाकिस्तान के साथ भारत ने बातवचीत शुरू कर दी है। बातचीत शुरू करने की भारतीय पहल के समय से ही पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आग उगलना शुरू कर दिया है। बातचीत के पहले दौर की समाप्ति के बाद पाकिस्तान के विदेश सचिव ने जो कहा, वह सिर्फ पाकिस्तान के लोगों को खुश करने के लिउ नहीं था, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत द्वारा आतंकवाद पर पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा करने के प्रयास के जवाब में दिया गया बयान था।

पाकिस्तान कह रहा है कि भारत में हो रही आतंकवादी गतिविधियों में उसका कोई हाथ नहीं है। वह अपने देश की आतंकवादी गतिविधियों का हवाला देते हुए कहता है कि वह तो खुद इस समस्या से जूझ रहा है। बल्कि वह अपने आपको भारत से बड़ा शिकार करता है। वह दावा करता है कि वह खुद आतंकवाद से लड़ रहा है। उसके ये बयान आतंकवाद पर अपनाये जा रहे उसके दोहरे मानदंड का परिणाम है।

यह सच है कि वह भी आतंकवाद का सामना कर रहा है, लेकिन वह तहरीक ए तालिबान की आतंकवादी गतिविधियों का शिकार है और उसी के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। दूसरी तरफ भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने का काम लश्कर ए तैयबा कर रहा है। पाकिस्तान लश्कर के खिलाफ कोई कार्रवाई करता दिखाई नहीं दे रहा है। लश्कर को पाकिस्तानी आई एस आई की उपज माना जा रहा है और उसके पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ भी है।

इस तरह से आतंकवाद पर उसका मानदंड दोहरा है। उसकी सेना पाकिस्ताी तालिबान के खिलाफ तो कार्रवाई कर रही है, लेकिन वही सेना आई एस आई की संरक्षक भी बनी हुई है। अपने देश में हो रही आतंकवादी गतिविधियों को वह भारत के ख्लिाफ ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। तालिबान के आतंकवाद से पीडित पाकिस्तान उस पीड़ा के पर्दे में भारत के खिलाफ लश्कर ए तैयबा की गतिविधियों को ढकना चाहता है।

यह तो पता चल गया था कि मुंबई में नवंबर 2008 के हमले में लश्कर का हाथ था। काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले को भी भारत लश्कर की करतूत मान रहा था, लेकिन पाकिस्तान उसे तालिबान की कार्रवाई बताकर अपने आपको पाक साफ बता रहा था। लेकिन अब अमेरिकी एजेसियो को भी अपनी जांच पड़ताल से पता चल गया है कि काबुल में उस धमाके के पीछे लश्कर का हाथ था और लश्कर के हाथ के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ होता है।

लश्कर ए तैयबा पर अमेरिकी प्रशासन का रवैया लचीला रहा है। एक अमेरिकी सांसद का कहना है कि लश्कर से भारत को ही नहीं, अन्य देशों को भी खतरा पैदा हो गया है। उस सांसद का कहना हे कि अमेरिकी प्रशासन को लश्कर की खबर लेनी चाहिए और उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आदेश जारी करना चाहिए, लेकिन अमेरिकी प्रशासन पर उस तरह की मांग का कोई असर नहीं पड़ रहा है। हेरिटेज फाउंडेशन की लिस्ट कर्टीज का कहना है कि अमेरिका लश्कर के खिलाफ पाकिस्तान को कार्रवाई करने के लिए इसलिए नहीं कह रहा है, क्योंकि वह पाकिस्तान से अपने हितों की रक्षा करने का संबंध बनाये रखना चाहता है।

इसीसे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी प्रशासन कश्मीर मसले के हल को भारत पाकिस्तान के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए क्यों आवश्यक मानता है। यह सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते अच्छे होने चाहिए और दोनों के बीच सभी विवादास्पद मसलों पर सहमति हो जानी चाहिए। कश्मीर समस्या का हल भी जरूरी है, लेकिन उस समस्या को हल करने के लिए पाकिस्तान गंभीर ही नहीं है। उसे हल करने के लिए मुशर्रफ सरकार ने चार सूत्री फार्मूले पर रजामंदी दी थी, लेकिन अब पाकिस्तान की सरकार उससे पीछे हट रही है। कभी आगे और कभी पीछे के इस रवैये से तो दोनो देशों के बीच की कश्मीर समस्या हल नहीं होगी। (संवाद)