अयूब खान और जियाउल हक के साथ मुशर्रफ ने पाकिस्तान की मौजूदा शिथिलता के प्रतीक का प्रतिनिधित्व करने वाली एक कुख्यात तिकड़ी की स्थापना की। निश्चित रूप से, वे प्रमुख शरारत करने वालों में से हैं, जिनकी हरकतें भारत के साथ उनके देश के खराब संबंधों की जड़ में हैं।
इसकी एक लंबी कहानी है जिसे छोटा करने के लिए इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि यह सब नागरिक-सैन्य असंतुलन के साथ-साथ राजनीति पर सेना की पकड़ के कारण हुआ है।तीनों पुरुषों ने, वर्दी में रहनेवाले पुरुषों के चरित्र के विपरीत कभी अपना चरित्र पाक-साफ नहीं रखा।वे खूब बोलने वालों में थे परन्तु उनकी बातें छिछली और बेईमानी से भरे होते थे।चौथे स्तंभ मीडिया की उपस्थिति में असहज, और जब जांच के घेरे में आये तो उनकी भाषा बाचाल सी हो गयी जिसमें न तो गंभीरता थी और न किसी के प्रति सम्मान।
शायद यह एक मानसिकता थी जो किसी भी स्थिति में स्वयं पर नकेल नहीं कसने देना चाहती थी।वे कभी भी खुद को बैठे हुए बत्तख की कल्पना नहीं कर सकते थे क्योंकि जब अयूब खान के बेटे की वित्तीय धोखाधड़ी उनके देश, जहां उनके बोले गये शब्द की कानून हुआ करते थे, के बाहर समाचार माध्यमों में छपी, तो उन्होंने कहा कि उन्हें कभी नहीं पता था कि उनके बेटे के पास व्यापार के लिए ऐसा दिमाग है।
भले ही उन्होंने बातचीत पर विवादों को दफनाने के अपने इरादे को कभी साझा नहीं किया, जियउल हक कभी भी भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी को एक स्मार्ट सलामी देने में नाकाम रहे, जब भी वे मिले।जहां तक करगिल संघर्ष के सूत्रधार मुशर्रफ की बात है, तो उनकी आगरा यात्रा और भारतीय दिग्गज क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी से बाल नहीं कटवाने के लिए कहने का ब्योरा अभी भी लोगों की याददाश्त से जल्दबाजी में ओझल नहीं हुआ है।
इन तीनों का करियर ग्राफ भी अलग नहीं है।क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान को अराजकता और भ्रष्टाचार से मुक्त करने के लिए बैरकों को छोड़ दिया था और एक सार्वजनिक मंच पर मार्च किया था।लेकिनपद संभालने के बाद उनके विचारों और कार्यों में इस वायदे की कोई झलक न थी।यह विडम्बना ही है कि उन्होंने बड़ी अनिच्छा से ही अपनेपदों को त्यागा।
जिस तरह याह्या खान के दूर चले जाने के बाद लरकाना से नेता के रिक्त स्थान को पूरा करने के लिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने जियाउल हक को एक सुरक्षित दांव माना, उसी तरह मुशर्रफ को भी तत्कालीन प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने सत्ता के उच्च पटल पर पहुँचाया। उन्होंने पाकसेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल जहांगीर करामात को पद छोड़ने के लिए मजबूर किया और मुशर्रफ को उनके पद पर नियुक्त किया।
पाकिस्तान की राजनीति में कृतज्ञता एक दुर्लभ मुद्रा है।हक और मुशर्रफ दोनों इसके जीते-जागते उदाहरण थे।मुशर्रफ ने 1999 में एक तख्तापलट में शरीफ को हटा दिया और सीओएएस के पद पर खुद को मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में स्थापित किया।कुख्यात "आवश्यकता के सिद्धांत" के अनुरूप पूर्व कमांडो सत्ता में बने रहे और जून 2001 में खुद को राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया और अगले साल अप्रैल में एक जनमत संग्रह में 98 प्रतिशत वोट हासिल किये।
“मिस्टरजेकिल और मिस्टर हाइड” की याद दिलाने वाले मुशर्रफ के व्यक्तित्व के और पहलू वर्षों में प्रकाश में आये।स्वयं को कमाल अतातुर्क केस्टाइल में पेश करते हुए उन्होंने "प्रबुद्ध संयम" का प्रचार किया, फिर भी विदेश नीति के लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए चरमपंथियों के उपयोग को जारी रखते हुए धार्मिक अतिवाद पर अंकुश लगाने में उनकी विफलता ही उजागर हुई।
यकीनन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद का उपयोग करने की उनकी नीति को विनिर्दिष्ट करता है 9/11 के बाद अमेरिका की चेतावनी कि यदि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में सहयोग नहीं किया तो वह पाकिस्तान पर बमबारी करेगा। इन स्थितियों ने पाकिस्तान के पाषाण काल मे धकेल दिया। फिर उदार अमेरिकी सहायता के कारण पाकिस्तान ने 2003-06 के बीच 6 प्रतिशत की विकास दर हासिल की।
लेकिन पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की ढांचागत कमियां बनी रहीं।जनता के गुस्से को मोड़ने की कोशिश करते हुए, मुशर्रफ ने भारत के प्रति पाकिस्तानी सेना की दुश्मनी को हवा दी, जो वास्तव में 1971 के भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के जन्म में पाकिस्तान की शर्मनाक हार के कारण गहरी हो गयी।कारगिल में घुसपैठ, इंडियन एयरलाइंस के विमानों का अपहरण, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले और भारतीय संसद पर हमला इस नीति का परिणाम था।
बाद की अवधि ने राजनयिक मोर्चे पर उनके पीछे हटने को रेखांकित किया, जो उनके शासन को लम्बा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अनुमोदनप्राप्त करने की आवश्यकता से उत्पन्न अंतर्राष्ट्रीय दबाव से उत्पन्न हुआ था।मुशर्रफ ने सबसे बड़ी चाल खेली तथा अमेरिका को ओसामा बिन लादेन के ठिकाने के बारे में अनुमान लगाते रहने के लिए छोड़ दिया जबकि वह पाकिस्तान में ही था।फिर भी वह इसे गुप्त नहीं रख सका।
मुशर्रफ ने आतंकवाद पर दोहरा खेल खेला।इससे पाकिस्तान की नाक में दम हो गया जबकि वह झटका लगने से झुलस गया।2004 से 2007 के बीच व्यावहारिक समझ शांतिपूर्ण समाधान की ओर अग्रसर हुई।2008 में मुशर्रफ को सत्ता से बेदखल किये जाने के कारण इसे उसके तार्किक निष्कर्ष तक नहीं पहुंचाया जा सका।
सेना की वर्दी उतारने वाले जनरल ने राजनीतिक करियर बनाने के लिए 2013 में लंदन के लिए प्रस्थान किया।यह उड़ान नहीं भरी।मुशर्रफ जब दुबई में गुजरे तो एक दुर्लभ बीमारी एमाइलोडिसिस का इलाज कराते हुए अपनी अंतिम यात्रा के अंत में थे।उन्होंने एक साहसिक सैनिक के रूप में शुरुआत की थी और अपने निधन पर पाकिस्तान के लिए एक परेशान विरासत छोड़कर एक अशोभनीय और भूले-बिसरे राजनेता के रूप में इसे समाप्त किया।(संवाद)
बड़ी महत्वाकांक्षा की जिंदगी जीने वाले परवेज़ मुशर्रफ अकेलेपन में मरे
भारत के साथ आतंकवाद पर दोहरा खेल खेला था पाक राष्ट्रपति ने
तीर्थंकर मित्र - 2023-02-08 10:39
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन उनकी जन्मभूमिभारत और उनके देशपाकिस्तान से बहुत दूर हुआ, जहां से वे वहां गए थे।बिना छिपाव-दुराव के यह स्वीकार करना ही होगा कि दोनों देशों में से किसी में भी उनका शोक नहीं मनाया जायेगा।