नौ चुनावी राज्यों में छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और चार पूर्वोत्तर राज्य, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा हैं।चुनाव कार्यक्रम साल भर चलेगा।मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में फरवरी में और कर्नाटक में अप्रैल-मई में चुनाव होंगे।छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में साल के अंत में चुनाव होंगे।2019 में धारा 370 के निरस्त होने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं।
कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय पार्टियां सभी इस चुनावी खेल में भाग ले रहे हैं। वेअपने सभी संसाधनों को व्यवस्थित कर रहे हैं। जिन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस प्रमुख दावेदार हैं, वे हैं- कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे बड़े राज्य।कांग्रेस राजस्थान औरछत्तीसगढ़, तथाभाजपा कर्नाटक और मध्य प्रदेश में शासन कर रही है।दो प्रतिशत स्विंग, किसी भी तरह से, परिणाम बदल देगा।
भाजपा और विस्तार करना चाहती है जबकि कांग्रेस सिर उठाने के लिए संघर्ष कर रही है।वह पहले ही उत्तरपूर्वी राज्यों को खो चुकी है, जो एक समय में कांग्रेस का ही गढ़ था। भाजपा ने हर जगह अपने पैर लगातार बढ़ाये हैं।यहां तक कि वामपंथी पार्टियां भी भाजपा के हाथों त्रिपुरा हार गये हैं।
इस तरह के उच्च दांव के साथ, कांग्रेस के लिए सबसे खराब स्थिति राजस्थान और छत्तीसगढ़ को हारना होगा और अन्य सात राज्यों में से कोई भी नहीं जीतना।सबसे अच्छी स्थिति यह है कि जो कुछ उसके पास है उसे बनाये रखा जाये और अधिक हासिल किया जाये।
भाजपा मिशन मोड पर है।मिशन 350 (लोकसभा में 350 सीटें प्राप्त करना) उसका घोषित लक्ष्य है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हैट्रिक बनाने में सक्षम बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है।भाजपा प्रमुख जे पी नड्डा ने इस महीने चुनावी बिगुल फूंका है, जिसमें कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि "इस साल सभी नौ विधानसभा चुनाव जीतने के लिए तैयार रहें। पार्टी को पिछड़े वर्गों, एससी और एसटी के वोट मिल रहे हैं और उन्हें प्रतिनिधित्व दे रही है। यह हमारे संकल्प "सबका साथ, सबका विकास और सबका प्रयासको दर्शाता है," उन्होंने हाल ही में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित करते हुएकहा।
मोदी के उत्तर पूर्व में प्रचार करने और राहुल की भारत जोड़ो यात्रा पर कांग्रेस का ध्यान केंद्रित करने के साथ दोनों दलों ने अपने चुनावी अभ्यास शुरू कर दिये हैं।हैट्रिक की उम्मीद कर रहे तेलंगाना के महत्वाकांक्षी मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ी भी 2023 की लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं।
भाजपा दक्षिण भारतीय राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है, जहां129 सीटें हैं, और जिनमें से पार्टी के पास केवल 29 सीटें हैं, 25 तो एक ही राज्य कर्नाटक से ही आती हैं।पार्टी कम से कम 50 सीटें जीतना चाहती है।लेकिन क्षेत्रीय क्षत्रपों की दक्षिणी राज्यों में मजबूत पकड़ है, चाहे वह तेलंगाना हो या केरल।
त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब के अनुसार, "आगामी 2023 विधानसभा चुनाव विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी के लिए अंतिम यात्रा होगी। यह पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा और क्षेत्रीय दलों के बीच अग्निपरीक्षा होगी।"ये राज्य 25 सीटों के लिए गिने जाते हैं।
पिछले हफ्ते राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा पूरी करने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साहित हैं।हमें यात्रा के चुनावी असर का इंतजार करना चाहिए, क्योंकि यह फॉलो-अप पर निर्भर करता है।संगठनात्मक एकता एक महत्वपूर्ण चुनौती है, खासकर राजस्थान, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में, जहां परंपरागत रूप से, कांग्रेस ने अतीत में अच्छा प्रदर्शन किया था।पार्टी के आलाकमान को गड़बड़ नहीं करनी चाहिए जैसा कि उसने पंजाब और अन्य जगहों पर किया।उसे अपने सहयोगी दलों को चुनना चाहिए और अपनी ताकत का सही आकलन करना चाहिए।
दूसरे, उसे पुराने नेताओं और युवा नेताओं के बीच संतुलन बनाना होगा।तीसरे, कांग्रेस को एक नया, आकर्षक आख्यान चुनना चाहिए और सही मुद्दों को उठाना चाहिए, विशेष रूप से आम आदमी के लिए रोजी-रोटी के मुद्दों की तरह।भाजपा की तुलना में उसके पास न तो पैसा है और न ही संगठन।इन सबसे ऊपर, मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा मोदी के जादू पर निर्भर है।हालांकि महंगाईऔर नौकरियों को लेकर भगवा पार्टी बचाव की मुद्रा में है।दक्षिण में इसकी हिंदुत्व विचारधारा के ग्रहक नहीं हैं।अगर विपक्ष रोजी-रोटी के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है और मतदाताओं को भाजपा से दूर जाने के लिए राजी करता है, तो यह विपक्ष को लिए लाभदायी होगा।
दक्षिण को जीतने के लिए भाजपा को राजवंशों, कल्याणकारी राजनीति और सोशल इंजीनियरिंग से भी लड़ना होगा।के. चंद्रशेखर राव जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों की अभी भी मतदाताओं पर पकड़ है।प्रत्येक खिलाड़ी को जीतने और उपयुक्त गठबंधन के लिए उन्हें राजी करने के लिए एक अलग चुनावी रणनीति का उपयोग करना होगा।कांग्रेस को एक अलग राजनीतिक आख्यान की जरूरत है, इसके बावजूद कि भाजपा की विचारधारा दक्षिण में लोगों को आकर्षित नहीं करती है।पार्टियों को अपने फायदे का सफलतापूर्वक उपयोग करने के लिए कुछ नुकसानों को दूर करना होगा।आखिरकार, यह सब वोट तथा किस्मत की देवीपर निर्भर करता है।(संवाद)
2023 के चुनावी दंगल के लिए तैयार है भाजपा
लोगों के लामबंद करने में कांग्रेस को तय करनी है बहुत दूरी
कल्याणी शंकर - 2023-02-15 13:44
इस साल अर्थात् 2023 में नौ राज्यों में चुनाव होने के कारण राजनीतिक पार्टियों में म्यूजिकल चेयर का खेल हो सकता है।यह 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक ट्रेलर और सेमीफाइनल होगा।नतीजे बतायेंगे कि क्या भाजपा मतदाताओं को अपनी ओर खींचती है या कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष आगामी चुनावों में भाजपा को हरा देगा।क्षेत्रीय क्षत्रप स्वाभाविक रूप से अपने क्षेत्र की रक्षा करना चाहेंगे।