विश्व की जनसंख्या जून 2010 के अंत तक अनुमानत: 6.8 अरब हो चुकी है जबकि जुलाई 1987 में यह 5 अरब थी। विश्लेषकों के अनुसार जनसंख्या वृद्धि की मौजूदा दर से अक्टूबर, 2012 तक विश्व की जनसंख्या 7 अरब तक पहुंच जाएगी। भारत की जनसंख्या देश की आजादी के समय की 35 करोड़ से तीन गुणा से भी ज्यादा बढक़र 1.15 करोड़ हो गयी है। जनसंख्या स्थिरीकरण पर कार्यबल- ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय जनसंख्या 2030 तक चीन की जनंसख्या को पार कर जाएगी और भारत 1.53 अरब आबादी के साथ विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारतीय महापंजीयक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 1981-1991 के दशक की 2.14 से घटकर 1991-2001 के दशक में 1.93 रह गयी है। (सन् 2026 तक जनसंख्या का अनुमान राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के तकनीकी दल ने जारी किया है और इन अनुमानों के मुताबिक 2026 तक भारत की जनसंख्या 1.40 अरब हो जाएगी।)
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000
सरकार ने फरवरी, 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति अपनाई थी। इसमें जनसंख्या को स्थिर करने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया गया है। इसके तहत सरकार परिवार नियोजन सेवाओं में लक्ष्य तय किये बिना लोगों को परिवार नियोजन के प्रति जागरूक कर इसके और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल के संबंध में अपनी इच्छा से फैसला लेने देने की छूट देने के प्रति कटिबद्ध है।
जनसंख्या वृद्धि को थामने के लिए पहल
राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की दिशा में आगे बढत़े हुए सरकार ने जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और जनसंख्या स्थिरता कोष (जेएसके) का गठन किया है। इनका लक्ष्य और उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य केद्रों और स्वास्थ्य मिशन के तहत अन्य केंद्रों पर एक निश्चित दिन परिवार नियोजन सेवाएं चलाना, कार्यक्रम में व्यवस्थित और सावधानीपूर्वक गर्भनिरोधक उपायों को लोगों के सम्मुख पेशकर उन्हें चुनने का अवसर प्रदान करना, बंध्याकरण के लिए क्षतिपूर्ति पैकेज में वृद्धि करना है। इसकी मदद के लिए नवंबर, 2005 में राष्ट्रीय परिवार नियोजन बीमा योजना भी शुरू की गयी ताकि नसबंदी करने वाले की नसबंदी विफल रहने, कोई स्वास्थ्य संबंधी गड़बड़ी पैदा होने या मौत हो जाने पर क्षतिपूर्ति दी जा सके। लोगों खासकर गरीबों और पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए अच्छी सेहत सुनिश्चित कराने के लिए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में मातृत्व मृत्यु दर को घटाकर प्रति हजार जन्म पर एक करना, शिशु मृत्युदर घटाकर प्रति हजार पर 28 करना और पूर्ण प्रजनन दर 2.1 करना है।
शिशु मृत्युदर
भारत की मृत्युदर सन् 2009 में प्रति हजार 53 थी जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह 46 थी। उसी वर्ष पूर्ण प्रजनन दर 2.68 थी जबकि वैश्विक स्तर पर यह 2.54 थी। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में जनस्वास्थ्य पर व्यय जीडीपी के 1.45 फीसदी (3009-2010 बजट अनुमानों) से बढा़कर कम से कम दो प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है। इस दिशा में ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एवं अन्य कई कार्यक्रमों पर आवंटन इस योजना अवधि के पहले चार वर्षों में काफी बढा़ दिया गया है। गृहमंत्रालय के भारतीय महापंजीयक की नमूना पंजीयण प्रणाली के अनुसार शिशु मृत्युदर वर्ष 2008 में प्रतिहजार पर 53 रहने का अनुमान है। यूनीसेफ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक शिशु मृत्युदर में 143 देशों की सूची में भारत का स्थान 49 वां है। इसी वर्ष जारी यूनीसेफ की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक पांच वर्ष तक बच्चों की मृत्युदर के मामले में 193 देशों की सूची में भारत का स्थान 49 वां है। सरकार ने प्रसव के तुरंत बाद होने वाली मौतों को रोकने के वास्ते नवजात शिशुओं को देखभाल प्रदान करने के लिए नवजात शिशु सुरक्षा कार्यक्रम नामक एक नया प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के तहत बेहोश शिशु को होश में लाना, हाइपोथर्मिया, संक्रमण रोकथाम, और यथाशीघ्र स्तनपान जैसे शिशु देखभाल के तत्वों को शामिल किया गया है। नया कार्यक्रम पहले से चल रहे कार्यक्रमों का पूरक होगा और शिशु मृत्युदर घटानें में सहायक होगा।
लिंग अनुपात एवं बालिका
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय लोगों को बालिकाओं को परिवार में उचित स्थान प्रदान करने के वास्ते प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के रूप में प्रयोग के तौर पर धनलक्ष्मी योजना चला रहा है। सरकार ने बालिकाओं के समक्ष आने वाली दिक्कतों की ओर सबका ध्यान आकर्षित करने एवं जनजागरूकता फैलाने के लिए हर वर्ष 24 जनवरी को राष्ट्रीय बाल दिवस मनाने का निर्णय लिया है। सरकार ने देश में लिंगानुपात में सुधार के लिए भी कई कदम उठाए हैं। सन् 1991 की जनगणना के दौरान देश में प्रति हजार पुरूषों पर 927 महिलाएं थी जो 2001 की जनगणना के समय बढक़र प्रतिहजार पुरूषों पर 933 महिलाएं हो गयी। सरकार ने गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व जांच तकनीकी (लिंग चयन रोकथाम ) अधिनियम 1994 भी बनाया है जिसके तहत गर्भ में पल रहे बच्चे का अवैध रूप से लिंग का पता लगाने वाली गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व तकनीकों के इस्तेमाल के खिलाफ कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।
जीवन प्रत्याशा
मानव विकास सूचकांक 2009 की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक जीवन प्रत्याशा 67.5 वर्ष थी जहां भारत में जीवन प्रत्याशा 63.4 वर्ष है।
संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी लक्ष्य (एमडीजी)-5 के तहत 1990 और 2015 के बीच मातृत्व मृत्यु दर में तीन चौथाई की कमी लाना है। भारत ने ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (2005-2012) के तहत जो लक्ष्य निर्धारित किया है और एमडीजी लक्ष्य के अनुरूप है। इसके तहत 2012 तक मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख शिशु के जन्म पर सौ से कम माताओं की मृत्यु के स्तर तक लाना है। भारत महापंजीयक द्वार हाल ही जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार मातृत्व मृत्युदर 2001-03 के प्रति लाख शिशु जन्म पर 301 से घटकर 2004-05 में प्रतिलाख पर 254 हो गयी है। सरकार ने मातृत्व मृत्युदर को घटाने के लिए कई कदम उठाए है। उसने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग की गर्भवर्ती महिलाओं पर विशेष ध्यान देते हुए संस्थानात्मक प्रसव को बढा़वा देने के लिए नकद लाभ योजना जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई ) शुरू की है।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
सरकार ने प्राथिमक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में सुधार तथा लोगों को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए 18 राज्यों पर विशेष ध्यान देते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन नामक एक मिशन चलाया है। अप्रैल 2005 में यह शुरू किया गया। जनसंख्या स्थिरीकरण इसके लक्ष्यों में एक लक्ष्य है। मिशन में बाल एवं मातृत्व मृत्युदर एवं प्रजनन दर घटाने पर विशेष बल दिया गया है। इसका मुख्य लक्ष्य गरीबों और जनसंख्या के एक बहुत बड़े प्रभावित वर्गों को सस्ता, सुलभ, आसान, प्रभावी और भरोसेमंद प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करना है। इसके तहत सभी स्तरों पर जनस्वास्थ्य सेवाओं में मजबूती लाने पर भी बल दिया गया है। स्वास्थ्य मिशन के तहत शुरू की गयी पहलों का लक्ष्य मृत्युदर और रुग्णता दर में कमी लाना है ताकि लोगों की जीवन प्रत्याशा में सुधार हो। मिशन में प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के दूसरे चरण (आरसीएच-।।) को भी शामिल किया गया है जो पूर्ण प्रजनन दर, मातृत्व एवं बाल रुग्णता दर और मृत्युदर तथा अवांछित गर्भों को कम कर परिवार कल्याण के प्रदर्शन में सुधार पर जोर देता है। मिशन के तहत राज्य सरकारों को जन स्वास्थ्य प्रणाली में मजबूती लाने के लिए मदद भी जाती है ताकि स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार, मानव संसाधन में वृद्धि तथा सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने में समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। मिशन के लक्ष्यों में एक है पूर्ण प्रजनन दर को 2012 तक घटाकर 2.12 फीसदी करना है। यह 2005 में 2.9 फीसदी थी जो 2008 में घटकर 2.6 फीसदी रह गयी। अबतक स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत 7.49 लाख प्रत्यायित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता चयनित किए गए हैं ओर 5.65 लाख को प्रशिक्षित किया गया है। करीब 18,766 डाक्टर और 87,973 अर्धचिकित्साकर्मियों को अनुबंध के आधार पर भर्ती किया गया है।
स्वास्थ्य व्यय
सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में योजनागत लागत दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-03 से 2006-07तक) के 36079 करोड़ रूपए कुल वास्तविक व्यय की तुलना में ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2011) के पहले चार वर्षों के लिए 72,731 करोड़ रूपए कर दिए गए हैं। विश्व बैंक ने अगस्त2006 से सितंबर, 2010 तक की अवधि के दौरान आरसीएच-।। कार्यक्रम के लिए 36 करोड़ अमेरिकी डालर की सहायता का वादा किया है।
महिला सशिक्तरण एवं युवा
सरकार जनसंख्या को थामने के लिए लंबे समय से खुद तथा अन्य कई बाहरी एजेंसियों के साथ मिलकर कई योजनाएं चला रही है। इस बात को एहसास कर कि इसकी सफलता के लिए महिला सशक्तिकरण बहुत जरूरी है, सरकार ने पहले ही लोगों के बीच अच्छी सेहत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और गरीबी घटाओ सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। देश की युवा जनसंख्या पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। देश में 10 से 24 वर्ष की आयुवर्ग के 31 करोड़ 50 लाख लोग हैं जिन्हें यौन और प्रजनन स्वास्थ्य विकल्पों के बारे में जागरूक किये जाने की आवश्यकता है।
विश्व जनसंख्या दिवस 2010- हरेक की गणना आवश्यक
वी मोहन राव - 2010-07-12 08:03
हरेक की गणना आवश्यक है- यह विश्व जनसंख्या दिवस, 2010 का ध्येयवाक्य है जो ग्यारह जुलाई को है। यह एक ऐसा वार्षिक समारोह है जो विश्व जनसंख्या के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष का ध्येयवाक्य लोगों को आधिकारिक जनगणना या जनसंख्या पर आंकड़े जुटाए जाने वाली अन्य प्रकियाओं में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने वाला है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने सन् 1989 में इस दिवस का शुभारंभ किया था जिसका लक्ष्य परिवार नियोजन का महत्व, महिला-पुरूष समानता, गरीबी, मातृत्व स्वास्थ्य, यौन एवं प्रजनन संबंधी स्वास्थ्य और मानवाधिकार जैसे जनसंख्या संबंधी मुद्दों के बारे में लोगों की जागरूकता में वृद्धि करना था। इन सभी तत्वों का विश्व के विकास एवं पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ता है।