पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर की अपने सुरक्षाकर्मी द्वारा ही की गई हत्या उसके संकट के एक पक्ष का दिखाता है। हत्या तो बेनजीर भुट्टो की भी हुई थी, लेकिन उस हत्या का चरित्र अलग था। वह पूर्णतः एक राजनैतिक हत्या थी, जिसका उद्देश्य बेनजीर भुट्टों को सत्ता में आने से रोकना था। आतंकवादी तत्व उस हत्या के पीछे भी थे, लेकिन उस हत्या का तर्क अलग था। पर पंजाब के गर्वनर की हत्या के पीछे का तर्क विशुद्ध सांप्रदायिक अथवा धार्मिक था। हत्यारे घार्मिक कारणो से उनसे आहत थे औेर उनकी हत्या कर इस्लाम के प्रति अपने कथित कर्तव्य को पूरा कर रहे थे।

गवर्नर की हत्या के बाद पाकिस्तान में लोगों की जो प्रतिक्रियाएं आईं, वे भी पाकिस्तान के लिए घातक हैं। प्रतिक्रियाओं से पता चलता है कि उन ताकतों को पाकिस्तान के लोगांे के एक बड़े वर्ग का समर्थन हासिल है। यानी वे कठमुल्लावादी ताकतें न सिर्फ सत्ता प्रतिष्ठान को ताकत से चुनौती देने की हिम्मत जुटा रहे हैं, बल्कि देश के लोगों के बीच अपनी कार्रवाइयों के लिए समर्थन भी पा रहे हैं।

पाकिस्तान का सैनिक प्रतिष्ठान आतंकवाद का समर्थन करता रहा है। मुंबई के 26 नवंबर के हमले की पीछे सत्ता प्रतिष्ठान का आतंकवादियों से सांठगांठ की कहानी अब घीरे घीरे सार्वजनिक होती जा रही है। पहले भारत इस तरह का आरोप लगा रहा था और पाकिस्तान की सरकार इसका खंडन कर रही थी, लेकिन अब इन दोनों पक्षांे संे अलग के लोग भी यह कहने लगे हैं कि आइएसआई के प्रमुख की मुंबई हमले में भूमिका थी। उनकी उस भूमिका को लेकर उनके खिलाफ अमेरिका में एक मामला भी लंबित है और पाकिस्तान की कोशिशों के बावजूद आइएसआई के प्रमुख पाशा के खिलाफ मामला बंद नहीं हो रहा है।

अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद पाकिस्तान की सेना भारत के खिलाफ आतंकवादी ताकतों के साथ अपना गठजोड़ तोड़ने के लिए तैयार नहीं है। उसकी सह रणनीति यथावत है। लेकिन जो घटनाएं आज पाकिस्तान में घट रही हैं, उनसे साफ पता चलता है कि यदि पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान और खासकर सैनिक प्रतिष्ठान ने भारत के खिलाफ काम कर रहे आतंकवादियों से संबंधित अपनी नीति में बदलाव नहीं किया तो वह अपना भयंकर नुकसान करने जा रही है। उस नीति के कारण वह अपने विनाश को निमंत्रण देती दिखाई पड़ रही है।

पाकिस्तान में आतंकवादी संगठनों के साथ सैनिक प्रतिष्ठान की सांठगांठ की बातंे खुलकर सामने आने के बाद कश्मीर मसले पर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उसकी स्थिति कमजोर हुई है। कश्मीर का वह अंतरराष्ट्रीयकरण ही इसीलिए करना चाहता था क्योंकि उसे लगता था कि उसके पास कश्मीर पर अन्य देशों का समर्थन हासिल करने के लिए बेहतर तर्क है। वह कश्मीर में भारतीय सेनाओं की भारी संख्या मं मौजूदगी को मुद्दा बनाकर कहता था कि वहां के लोगों की इच्छा का दमन किया जा रहा है। भारत कहता रहा है कि कश्मीर के लोग भी अन्य राज्यों की तरह अपनी सरकार चुनते हैं और इस तरह उन्हें वे सारे लोकतांत्रिक अधिकार प्राप्त हैं, जो भारत के अन्य राज्यों के नगारिको को प्राप्त हैं। लेकिन वहां भारी संख्या में सैनिको की मौजूदगी के तथ्य को भारत भी नकार नहीं सकता था।

अब जिस तरह से पाकिस्तान के प्रतिष्ठान को आतंकवादी चुनौती दे रहे हैं, उसे देखते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय कश्मीर में आतंकवादी तत्वों के खिलाफ भारत द्वारा सेना के इस्तेमाल के तर्क को समझ सकता है। जाहिर है अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी नहीं चाहेगा कि कश्मीर में आतंकवादी ताकतों के मंसूबे पूरे हों। इस तरह अंतरराष्ट्रीय बनाकर भी पाकिस्तान कश्मीर के मसले पर कुछ खास हासिल नहीं कर पाएगा। (संवाद)