ओसामा की समाप्ति के बाद ओबामा और अमेरिका जश्न मना रहे हैं और इस बात पर इतरा रहे हैं कि वे अपने ऊपर हमला करने वाले को सजा देने में सफल रहे हैं। उन्हें लग रहा कि इसके बाद अमेरिका पर हमला करने वालों को 10 बार सोचना पड़ेगा।
ओबामा के कार्यकाल का तीसरा साल चल रहा है। वह अगले साल फिर राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ेंगे, ताकि दूसरी बार वहां की सत्ता के शिखर पर रह सकें। ओसामा की समाप्ति को वह उस चुनाव में भुनाने की काशिश करेंगे और इसमें उनके सफल होने की काफी संभावना है। माना जा रहा है कि अब उन्हें हराना आसान नहीं होगा।
ओसामा देश की राजधानी इस्लामाबाद से 60 किलामीटर दूर एबटाबाद में रह रहा था। एबटाबाद में सेना का कैंट है और वह कैंट इलाके में ही रह रहा था। जहां वह रह रहा था, उसके आसपास पाकिस्तानी सेना के रिटायर अफसरों की कोठियां है और उच्च सुरक्षा वाला ़क्षेत्र है। इसलिए यह मानना कठिन है कि पाकिस्तान सरकार की नजरों से ओझिल होकर वह वहां रह रहा था। इसलिए इस पर विवाद है कि ओसामा के पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसियों के साथ कितने संबंध थे।
क्या ओसामा के खात्मे से भारत भी कोई सबक ले सकता है? यदि अमेरिका को 11 सितंबर का गम है तो भारत को 26 नवंबर के आक्रमण का। अमेरिका दूसरे देश में जाकर अपने एक विरोधी को मार सकता है, तो भारत 26 नवंबर के लिए जिम्मेदार कसाब को अभी तक सजा देने में सफल क्यों नहीं हुआ है? उसे अदालत ने सजा सुना भी दी है फिर भी वह अभी तक जिंदा है। यही हाल संसद पर हुए हमले के दोषी अफजन गुरू का है। उसे तो सुप्रीम कोर्ट तक ने सजा सुना रखी है और उसके खिलाफ फैसले के काफी दिन भी हो चुके है, फिर भी वह अभी तक जिंदा है, जबकि उसे फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए था। उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दे रखी है, लेकिन वह याचिका अभी तक लंबित पड़ी है। सवाल उठता है कि केन्द्र सरकार उस याचिका का जल्दी निबटारा क्यों नहीं करती?
1993 में मुंबई बम धमाकों का दोषी दाउद इब्राहिम भी पाकिस्तान में खुले आम घुम रहा है। उसके अलाव भारत में अपराध करने के अन्य आरोपी पाकिस्तान में हैं, लेकिन उन्हें भी भारत अपने न्याय की गिरफ्त में नहीं ला रहा है। ओसामा बिन लादेन तो पाकिस्तान में छुपकर रह रहा था, लेकिन भारत के अपराधी तो वहां खुले आम रह रहे हैं। क्या भारत को भी उन्हें सजा देने या दिलाने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?
ओसामा के खात्मे के बाद मनमोहन सिंह की सरकार को अपनी पाकिस्तान और अफगानिस्तान नीति में बदनाव करने के लिए सोचना पड़ेगा। पाकिस्तान और अमेरिका एक दूसरे के सहयोगी बने हुए हैं और ओसामा से जुड़ी इस घटना के बावजूद दोनों एक दूसरे के साथ बने रहेंगे। अमेरिका को अपनी अफगानिस्तान नीति की सफलता के लिए पाकिस्तान का साथ चाहिए। अफगानिस्तान के अमेरिकी सैनिकों के लिए दाना पानी पाकिस्तान के रास्ते से ही जाता है और पाकिस्तान में तालिबान को कमजोर करने के लिए अमेरिका की वहां उपस्थिति जरूरी है। दूसरी तरफ पाकिस्तान को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए अमेरिकी धन चाहिए। अमेरिका द्वारा आर्थिक सहायता बंद करने के बाद पाकिस्तान दीवालिया हो जाएगा। यही कारण है कि ओसामा के खात्मे के लिए पाकिस्तान की संप्रभुता को अपने जूते की नोक पर रखने के बावजूद भारत का वह पड़ोसी देश अमेरिका का साथ नहीं छोड़ेगा।
ओसामा की समाप्ति के बाद भले ही अमेरिका खुशी मन ले, लेकिन भारत के लिए इसमें खुश होने के लिए कुछ भी नहीं है। इसका कारण यह है कि भारत में इसके बाद आतंकवादी गतिविधियों के बढ़ जाने का खतरा है। भारत विरोधी आतंकवादी संगठन अभी भी पाकिस्तान में पनाह पा रहे हैं और उनका ओसामा क अल कायदा के साथ गहरा रिश्ता रहा है। ओसामा के मरने के बाद भारत विरोधी संगठनों का अलकायदा के साथ गठजोड़ और भी मजबूत हो सकता है, क्योंकि अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए वह लश्कर ए तैयब और जैश जैसे संगठनों पर ज्यादा आश्रित हो जाएगा। बदले मंे इन भारत विरोधी संगठनों को अलकायदा का नेटवर्क प्राप्त हो जाएगा। इस नेटवर्क का इस्तेमाल कर वे आतंकवादी भारत के लिए और भी बड़ा खतरा बन सकते हैं। यही कारण है कि भारत को अब अपने देश के अंदर ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के ठिकानों की सुरक्षा को ज्यादा चुस्त और दुरुस्त करने की जरूरत है। (संवाद)
ओसामा के बाद आतंकवाद
भारत को कोई राहत नहीं
कल्याणी शंकर - 2011-05-07 11:50
ओसामा की मौत की घोषणा करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने कहा कि 11 सिंतबर के शिकार हुए लोगों के साथ न्याय कर दिया गया। ओसामा को समाप्त करने में अमेरिका को 10 साल लग गए।