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वस्तुओं के जलने से जो गर्मी उत्पन्न होती है वह अग्नि कहलाती है। इसमें लौ तथा लाल तप्त ठोस पदार्थ भी शामिल हैं। यह एक प्रकार की ऊर्जा का स्वरुप है। यह तेज या ऊर्जा का ही गोचर रुप है।
भारतीय आध्यात्मिक चिंतन परम्परा में यह शरीर के पांच तत्वों में से एक है जिसे पावक के नाम से भी जाना जाता है।
अग्नि अनेक प्रकार के हैं जिनमें से तीन महत्वपूर्ण हैं - जठरानल, दावानल और बड़वानल।
यज्ञ में अग्नि का पड़ा महत्व है तथा उस अग्नि को सनातन धर्म में देवाता माना जाता है। यज्ञ की अग्नि में हवन किया जाता है और माना जाता है कि अग्नि देव यज्ञकर्ता के अभिप्राय को परम पिता परमेश्वर तक पहुंचाते हैं।
योगी जन योग की अग्नि में तप करने की बात करते हैं जबकि श्रीमद् भगवद गीता में ज्ञान की अग्नि की चर्चा है जिसमें कर्म को तपाकर शुद्ध किया जाता है।
भारतीच चिंतन परम्परा में अग्नि को ही योग, भोग तथा सभी रोगों का नाश करने वाला माना जाता है।
साहित्य में विरह की अग्नि की भी चर्चा की जाती है।
योगियों के लिए अग्निचक्र का विशेष महत्व है।

Page last modified on Friday December 14, 2012 06:32:44 GMT-0000