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अजपाजप वह जप है जिसमें न तो नाम का उच्चारण किया जाता है, न माला फेरा जाता है और न ही किसी अन्य प्रकार के स्थूल साधनों का प्रयोग होता है। नाथ पंथियों के अनुसार रात-दिन में आने जाने वाली मनुष्य की 21,600 सांसें अजपाजप है।
कबीर ने तो एक श्वास को ओहं तथा दूसरे को सोहं कहा। उनके अनुसार ओहं तथा सोहं द्वारा की जाने वाली जप ही अजपाजप है। उन्होंने इसे निःअक्षर का ध्यान कहा।

Page last modified on Saturday December 15, 2012 04:55:35 GMT-0000