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अतिराष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद जब अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है तो उसे अतिराष्ट्रवाद कहा जाता है। इनके अनुसार राष्ट्र से बढ़कार दूसरा उपाय नहीं, तथा राष्ट्र की सेवा से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है।

इस मत के अनुसार राष्ट्र के लिए व्यक्ति को समर्पित होना चाहिए, यही उसका कर्तव्य है तथा यही उसका धर्म। राष्ट्र के लिए जो कुछ भी हितकर है वही शुभ तथा उचित है। इस अर्थ में सभी व्यक्ति राष्ट्र के लिए ही हैं।

अतिराष्ट्रवादियों के लिए अपने राष्ट्र को सर्वेत्म मानाना स्वाभाविक परिणति है तथा इस कारण वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का उनमें अभाव हो जाता है।

फासीवाद तथा नाजीवाद में इसकी पराकाष्ठा और इसका विकृत रुप विश्व देख चुका है। इसमें राष्ट्र के नागरिक भी पिसते हैं तथा अन्य राष्ट्रों के साथ लगातार संघर्ष की स्थितियां बनी रहती हैं। अतिराष्ट्रवादी अंत में स्वयं को सभी नीति-नियमों से ऊपर समझने लगते हैं, तथा उनकी अपने किस्म की राष्ट्रीयता के अलावा किसी भी तरह की राष्ट्रीयता को वे स्वीकार न करते हुए मरने-मारने पर उतारु हो जाते हैं।

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अतिशयोक्ति, अतीन्द्रिय, अतुकान्त, अंक

Page last modified on Monday June 26, 2023 05:33:09 GMT-0000