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अतिशयोक्ति अर्थालंकार का एक भेद है। यह वैसी उक्ति होती है जो किसी के गुण-दोष को बढ़ा-चढ़ाकर व्यक्त करती है जबकि वास्तव में वे गुण-दोष उतने नहीं होते।
रुप्यक के अनुसार अतिशयोक्ति के पांच भेद हैं - भेद में अभेद, अभेद में भेद, सम्बंध होने पर भी उसका निषेध, सम्बंध न होने पर भी उसका कथन तथा कार्यकारण का विपर्यय।
मम्मट ने सम्बंध होने पर भी उसके निषेध तथा कार्यकरण के विपर्यय को अतिशयोक्ति अलंकार नहीं माना था।
जयदेव के अनुसार अतिशयोक्ति छह प्रकार के हैं - अक्रमातिशयोक्ति, अत्यन्त्यातिशयोक्ति, चपलातिशयोक्ति, सम्बंधातिशयोक्ति, भेदकातिशयोक्ति, तथा रूपकातिशयोक्ति
उनके बाद के एक विद्वान अप्पय दीक्षित ने दो नये भेद - असम्बन्धातिशयोक्ति तथा सापह्नवातिशयोक्ति - जोड़कार इसे आठ तक पहुंचा दिया।

Page last modified on Sunday December 16, 2012 06:20:35 GMT-0000