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अभाव

अभाव अस्तित्वहीनता को कहते हैं, अर्थात् जिसका अस्तित्व नहीं है या जो विद्यमान नहीं है। यही असत् है। यह भाव के विपरीत अवस्था है।
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है ‘नाभावो विद्यते सतः’, अर्थात् जिसका अस्तित्व नहीं है या जो विद्यमान नहीं है वह असत् है।
अभाव पांच प्रकार के होते हैं – प्राग्भाव, प्रर्ध्वसाभाव, अन्योSन्याभाव, अत्यन्ताभाव तथा संसर्गप्रतिषेधाभाव।
प्राग्भाव – जो पूर्व में अस्तित्व में नहीं था।
प्रर्ध्वसाभाव – जो भविष्य में अस्तित्व में नहीं रहता है।
अन्योSन्याभाव – एक दूसरे में अभाव, जैसे कोई कहे कि घोड़े में गौ नहीं है तथा गौ में घोड़ा नहीं है। परन्तु गाय में गाय का तथा घोड़े में घोड़ा का भाव है।
अत्यन्ताभाव – जिसका अस्तित्व कभी होता ही नहीं हो, जैसे मनुष्य को सिंग, आकाश का फूल आदि। तथा,
संसर्गप्रतिषेधाभाव – जो किसी स्थान में न होकर अन्यत्र हो, जैसे घर में घड़ा नहीं है, अर्थात् उक्त घड़े तथा घर में संसर्ग प्रतिषेध है।


Page last modified on Monday March 17, 2014 07:10:46 GMT-0000