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अप्रस्तुतयोजना

साहित्य में अप्रस्तुतयोजना का प्रयोग किया जाता है जिसमें किसी अप्रस्तुत (उपमान) के माध्यम से बातें कही जाती हैं।

काव्य में अप्रस्तुतयोजना को उसका प्राणतत्व माना जाता है। काव्य में रस, उसका आस्वादन, संप्रेषणीयता, मर्मिकता आदि का संचार इसके कारण सुगम हो जाता है। भावप्रवणता में इससे वृद्धि होती है जिससे श्रोता या पाठक को अखंड आनन्द की अनुभूति होती है।

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अभाव, अभाववाद, अभिजात वर्ग, अभिधा शक्ति, अभिनय

Page last modified on Friday May 23, 2025 14:37:30 GMT-0000