Loading...
 
Skip to main content
(Cached)

अर्थ बोध

अर्थ बोध किसी भी व्यक्ति का वह ज्ञान है जो वह किसी लिखित या सुने हुए वाक्य या शब्द का अर्थ ज्ञान करता है।
अर्थ बोध की एक निश्चित प्रकिया है जिसे अपनाये बिना अर्थ बोध नहीं हो सकता।
वास्तव में किसी ग्रन्थ या उसमें लिखी बातों को सही अर्थों में जानने के लिए चार तत्वों पर ध्यान केन्द्रित करना होता है ताकि सही अर्थ बोध हो।
ये हैं – आकांक्षा, योग्यता, आसत्ति तथा तात्पर्य।
अर्थात् ग्रंथकार, लेखक या वक्ता के इन चारों बातों पर ध्यान देना आवश्यक है अन्यथा सही अर्थ का बोध नहीं होगा। यदि इन चारों बातों से विपरीत मन बनाकर कोई उन्हें जानने का प्रयत्न करेगा तो उसे अर्थ बोध नहीं बल्कि अनर्थ बोध होगा।
आकांक्षा में रचनाकार या वक्ता की आकांक्षा तथा उनके शब्दों में आकांक्षा समान रूप से देखना चाहिए। आकांक्षा विरुद्ध अर्थ निकाल लेना पाठक या श्रोता का दोष है।
एक दूसरे से जुड़ी वस्तुओं का ही अर्थ निकालने को योग्यता कहते हैं जो पाठक या श्रोता में होनी चाहिए। शब्दों के अनेक अर्थों में से सही अर्थ को ही लेना योग्यता है।
आसत्ति को समझना, अर्थात् जिन वाक्यों या शब्दों का सम्बंध जिन अन्य संकल्पनाओं से है उन्हें समझना, न कि किसी असम्बद्ध अर्थ को ढूंढ़ निकालना।
ग्रंथकार या लेखक या वक्ता का तात्पर्य जानकर उसी के अनुरूप अर्थ निकालना न कि उसके तात्पर्य के विरुद्ध अर्थ निकालकर अर्थ का अनर्थ कर देना।
हठी तथा दुराग्रही व्यक्ति लेखक या रचनाकार या वक्ता के अभिप्राय के विरुद्ध अर्थ निकालते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि अंधकार में फंस जाती है। इसके कारण उन्हें अर्थ बोध के बदले अनर्थ बोध होता है।

निकटवर्ती पृष्ठ
अर्थ-दोष, अर्थालंकार, अर्धचेतन, अलंकार, अलंकारवाद

Page last modified on Friday May 23, 2025 14:49:50 GMT-0000