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अहंता-इदन्ता

अहं का अर्थ होता है मैं तथा इदं का अर्थ होता है यह। व्यक्ति के लिए अहं का अर्थ है मैं (चेतन) तथा इदं का अर्थ है यह सब जो चेतन के चारों ओर है। इस प्रकार पुरुष और प्रकृति के भाव को अहंता तथा इदंता कहा गया।

संतों का मानना है कि जबतक मैं रहता है अर्थात् अहंकार रहता है और यह रहता है अर्थात् प्रकृति या माया रहती है तब तक ब्रह्म का साक्षात्मकार नहीं होता है।

इसलिए कबीर कहते हैं -

जब मैं था तब प्रभु नहीं, अब प्रभु हैं मैं नाहिं।

सन्तों की वाणी में मनुष्य अहंता-इदन्ता के घनचक्कर में फंसा रहता है। जबतक प्रभु में इसका विलय नहीं हो जाता तबतक ब्रह्म का साक्षात्कार नहीं होता।

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अहमदपुर मांडवी तट, अहम्, अहिंसा, अहीर, अहेरी

Page last modified on Saturday May 24, 2025 10:48:05 GMT-0000