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अहेरी

भारतीय दर्शन परम्परा में अहेरी साधक को कहते हैं। यह साधक विषयासक्त मन रूपी मृग का शिकार करता है।

सिद्ध परम्परा में कहा गया कि यह मृग ही स्वयं का वैरी है। कबीरदास ने कहा कि यह मृग तो पूरा खेत ही चर रहा है इसलिए एक अहेरी लाओ जो इसे समाप्त कर दे।

परन्तु अहेरी तो स्वयं साधक है। वह इस विषयवासना रूपी मृग का वध कैसे करेगा? कबीर कहते हैं कि गुरु के वचन रूपी वाण का प्रयोग कर इसे समाप्त करना होगा।

सिद्ध परम्परा के चर्यापद में तो यहां तक कहा गया कि इस विषयवासना से युक्त मन रूपी मृग का मांस तो ज्ञान है और सिद्धि के लिए इसी मांस का भक्षण अत्यावश्यक है।

कबीर कहते हैं कि सभी उसी मृग का मांस खाते हैं।

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आकाश, आकाश द्रव्य, आकाशभाषित, आक्षेप, आख्यान

Page last modified on Saturday May 24, 2025 10:50:40 GMT-0000