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आन्तरिक आलोचना प्रणाली

आन्तरिक आलोचना प्रणाली साहित्य और कला की एक आलोचना प्रणाली है जिसका मुख्य ध्येय कृति की आत्मा की पहचान करना है।

इस प्रणाली के आलोचक किसी भी कृति को बाह्य शरीर मानते हैं तथा उसे उसकी आत्मा का प्रकटीकरण मात्र बतलाते हैं। इसलिए वे उसी आत्मा की खोज करते हैं तथा कृति की गहरायी में जाते हैं। वे जानने का प्रयत्न करते हैं कि कृति का मूल भाव क्या है। शैली और अन्य बाह्य संरचना के सौन्दर्य के स्थान पर वे भाव सौंदर्य को ही सत्य मानते हैं। इस प्रकार आत्मानुभूति ही उनके लिए महत्वपूर्ण है।

कृति के इसी आन्तरिक सत्य को यूनान के प्लेटो और अरस्तु जैसे दार्शनिकों से लेकर आज के आलोचकों तक ने महत्व दिया है। संस्कृत में रस अर्थात् भाव को ही अधिक महत्व देने की परम्परा रही है। इसी रस निष्पत्ति के सिद्धान्तों पर काव्य की आत्मा की खोज की जाती रही।

निकटवर्ती पृष्ठ
आन्ध्र प्रदेश, आप्त पुरुष, आमेर का किला, आम्नाय, आयाम

Page last modified on Monday May 26, 2025 01:06:54 GMT-0000