उलटी गंगा
भारतीय योग परम्परा में इड़ा नाड़ी को गंगा माना गया है। हठयोगियों, सिद्धों और संतों ने कहा कि इस गंगा की धारा को उलटकर यमुना (पिगला) में मिलाने पर योगी बिना जल के ही त्रिवेणी संगम में स्नान करता है।कबीर इसी बात को एक दोहे में 'उलटी गंगा जमुन मिलावउ' कहते हैं और एक स्थान पर इसका महत्व बताते हुए कहते हैं कि 'उलटी गंगा समुद्रही सोखै' ।
संत रैदास ने भी उलटी गंगा लाने की बात की है।
योग में प्राणायम द्वारा इड़ा और पिंगला से बाहर की ओर जाते प्राण (वायु) को उलटकर ब्रह्मांड में चढ़ाया जाता है जिससे योगी समाधि में चला जाता है। इस अवस्था में प्राण इंगला-पिंगला से प्रवाहित न होकर सुषुम्ना से प्रवाहित होने लगती है। इस अवस्था में इड़ा पिंगला से मिलकर एकाकार हो जाती है, और इसे ही अवधूती में गंगा को यमुना में मिलाकर एकाकार कर देना कहा गया है। सुषुम्ना को सरस्वती कहा जाता है। इस प्रकार इंगला-पिंगला-सुषुम्ना से गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी बनती है जिसमें स्नान करने की बात संत करते रहे हैं।
उलटी गंगा के अर्थ कई अन्य विद्वानों ने इससे अलग लगाये हैं। महाराज विश्वनाथ सिंह ने इसका अर्थ लगाया 'संसार-सुखी राग रूपी गंगा का उलटकर ब्रह्ममुखी होना' जबकि विचारदास शास्त्री ने इसे 'ब्रह्मांड में चढ़ायी हुई सांस' माना।
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