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एकांकी

वैसे नाटक जिनमें एक ही अंक होते हैं उन्हें एकांकी कहा जाता है।

पश्चिमी देशों में एकांकी का प्ररम्भ दसवीं शताब्दी के आस-पास हुआ, जब एक किसी एक प्रकरण या विषय को चुनकर मिरेकल्स और मोरलिटी प्ले लिखे और अभिनीत किये जाते थे। ये इंटरल्यूड के रूप में भी मंचित किये जाते हैं।

उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में पेरीस, बर्लिन, लन्दन, डबलिन, शिकागो आदि नगरों में लघुमंचीय आन्दोलनों के चलने के बाद एकांकी नाटकों का अत्यधिक विकास हुआ।

अब सभी देशों में एकांकी का प्रचलन पाया जाता है।

आधुनिक एकांकी में मानव जीवन के किसी एक पक्ष, एक चरित्र, एक कार्य, एक परिपार्श्व, एक भाव आदि की कलात्मक और नाटकीय अभिव्यक्ति सशक्त ढंग से की जा रही है।

एकांकी में पहले एक ही दृश्य होता था परन्तु अब अनेक दृश्यों वाले एकांकी नाटक भी मंचित किये जाते हैं और लिखे भी जाते हैं।


Page last modified on Sunday August 3, 2014 09:42:31 GMT-0000