कजरी
कजरी एक प्रकार का लोक गीत है। इसे कजली के नाम से भी जाना जाता है। यह गीत पारम्परिक रूप से सावन के महीने में ही गाया जाने वाला गीत है। यह गीत औरतों द्वारा गाया जाने वाला गीत है। परन्तु पुरूष भी इसे गाते रहे हैं। उदाहरण के लिए भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मीरजापुर की कजली विख्यात है जहां इसके गायन के लिए दंगल या प्रतियोगिताएं होती रही हैं जिनमें पुरुष और स्त्री दोनों भाग लेते थे। एक कहावत भी प्रचलित हो गया था - लीला रामनगर की भारी, कजली मिर्जापुर सरनाम।ध्यान रहे कि सावन का महीना वर्षा ऋतु का महीना है। आसमान में बादल छाये रहते हैं और रिमझिम वर्षा होते रहती है। इस समय बादलों का रंग काजल के समान होता है। कजली शब्द इसी काजल के रंग से निकला और इस विशेष शैली में गाये जाने वाले गीत के लिए प्रयुक्त हुआ। आम जनों की भाषा में इसी कजली को कजरी कहा गया।
इस गीत के लिए कजली शब्द के प्रयोग का एक दूसरा कारण भी बताया जाता है, वह है श्रावण या सावन महीने में होने वाला स्त्रियों का एक त्यौहार जिसका नाम है शुक्ला तीज, जो कजली तीज के नाम से विख्यात है। इस अवसर पर स्त्रियां विशेष रूप से कजली गाती हैं।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का नाम लेकर अनेक विद्वानों ने कहा है कि उनके मत से मध्यभारत के एक महान परोपकारी राजा दांदूराय के निधन पर वहां की स्त्रियों ने अपने दुःख प्रकट करने के लिए एक विशेष तर्ज पर गीत गाये थे जिसे वाद में कजरी नाम दिया गया।
कुछ लोग कजरी लेखन का प्रारम्भ 18वीं शताब्दी से और कहते हैं कि भोजपुरी संत कवियों ने सर्वप्रथम कजरी लिखे। इस संदर्भ में लक्ष्मी सखी की रचनाओं का उल्लेख किया जाता है। परन्तु लोक परम्परा में कजरी गायन कब से चल रहा है इसकी सही-सही जानकारी का अभाव है।
कजली में श्रृंगार रस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, सम्भोग तथा विप्रलम्भ का भी चित्रण होता है, तथा समाज के कुछ अन्य पहलुओं को भी श्रृंगार प्रसंग में उठाया जाता है।
मनमोहक तथा सुन्दर लय वाली कजली का गायन एक पुरुष या स्त्री या उनका अलग-अलग या मिलाजुला समूह करता तो है परन्तु इसकी पारम्परिक शैली भिन्न है। कम से कम दो व्यक्ति या फिर दो गायक या गायिका दल का होना आवश्यक माना जाता है। इसकी शैली प्रश्नोत्तर की होती है जिसमें एक प्रश्न करता है तथा दूसरा उत्तर देता है।
प्रश्न - अरे रामा केई बने मनिहारी पहिनके सारी ए हरि
उत्तर - अरे रामा कृष्ण बने मनिहारी पहिनके सारी ए हरि।
भाभी और ननद प्रकरण पर भी कजरी के गीत मिलते हैं जिसमे दोनों एक दूसरे से रसीले प्रश्नोत्तर करते हैं।
कजरी के और भी रूप हैं जिनमें समाज की विषमताओं तक का चित्रण मिलता है। देखिये भाभी किस प्रकार ननद को गुंडा तत्वों के प्रति सचेत करती है -
तू त चललू अकेली, साथे संगी न सहेली, गुण्डा घेरि लीहैं तोहरी डगरिया,
बदरिया घिरि आइल ननदी।