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कश्मीरी साहित्य

कश्मीरी भाषा में जो साहित्य की रचना हुई उसे कश्मीरी साहित्य कहा जाता है।

कश्मीरी साहित्य का प्रारम्भ 1250 से माना जाता है। सन् 1250 से 1400 तक की अवधि को कश्मीरी साहित्य का आदिकाल कहा जाता है। इस काल में सन्तों की मुक्तक वाणी की प्रमुखता रही। इस काल की प्रमुख रचनाएं हैं - शितिकण्ठ का महानयप्रकाश, ललद्यद का वाख, नुन्दर्योश (नुन्द ऋषि) के श्लोक, तथा रेसों (ऋषियों) के पद। इस अवधि में शैव दर्शन, तसव्वुफ, सहजोपासना, सदाचार, अध्यात्म, पाखण्ड का विरोध, साधना, आडम्बर का विरोध की प्रधानता रही। केवल ललवाखों में ही साहित्य की संवेदनशीलता की झलक मिलती है।

उसके बाद कश्मीरी साहित्य का प्रबन्धकाल (1400-1550) का आगमन हुआ। इस अवधि में कई पौराणिक, लोकिक एवं इतिहास की रचनाएं सामने आयीं। इनमें से अधिकतर वर्णनात्मक काव्य रचनाएं थीं। इनमें से अनेक गेय थे। परन्तु केवल महाभट्टावतार का वाणासुर वध तथा प्रशस्त का सुख-दुख चरित ही आज उपलब्ध हैं।

गीतिकाल 1550 से प्रारम्भ होकर 1750 तक रहा। इस अवधि में लोक जीवन में व्याप्त हर्ष-विषाद, विरह-मिलन, हास-रूदन आदि अनेक पहलुओं पर रचनाएं हुईं। हवाखातून तथा अरणिमाल इस युग के प्रतिनिधि रचनाकार थे। इनकी रचनाओं में करुण मधुर संगीत मिलते हैं। हबीबुल्लाह नौशहरी ने 1600 ईस्वी के आस-पास सूफी रहस्यवाद को नयी ऊंचाइयां दीं। साहिब कौल ने 1650 ईस्वी के आस-पास कृष्णचरित गीति काव्य की रचना की।

उसके बाद कश्मीरी साहित्य में प्रेमाख्यान काल (1750-1900) आया। इस काल में पौराणिक तथा धार्मिक चरित्रों के आख्यानों पर आधारित गीति काव्य रचे गये। इन्हें लीला काव्य भी कहते हैं। प्रेममार्गी सूफी परम्परा में भी रचनाओं की कमी नहीं रही। फारसी मसनवियों का रूपान्तर हुआ तथा पंजाबी, उर्दू और अरबी से भी काफी कुछ कश्मीरी साहित्य में आया। लौकिक तथा अलौकिक प्रेम पर अनेक रचनाएं आयीं जिनमें व्यथित कश्मीरी जन-जीवन की छाप भी मिलती है। प्रकाशराम का रामायण, रमजान बट का अकनन्दुन, महमूद गामी का शीरीं-खुसरो, लैला-मजनू, यूसुफजुलैखा, परमानन्द का यदास्वयंवर, शिवलगन तथा सुदामाटरिथ, वलीउल्लाह का हीमाल, मकबूल का लुलरेज, हक्कामी का मुमताजे बेनजीर, कृष्ण राजदान का हरिहरकल्याण आदि इस काल की प्रतिनिधि रचनाएं हैं, जो उपलब्ध हैं। अनेक अन्य रचनाएं अप्रकाशित ही रहीं।

सन् 1900 से कश्मीरी साहित्य का आधुनिक काल आया। वहाब परे का शाहनामा, कमबूल का ग्रीस्तिनामा और रसुल मीर की गजलों से इसका प्रारम्भ होता है। महजूर और आजाद ने इसे आगे बढ़ाया। इसी काल से कश्मीरी गद्य का प्रारम्भ होता है जिनमें पहले धार्मिक चर्चाएं ही शामिल होती थीं। परन्तु धीरे-धीरे कहानी, नाटक, निबंध आदि भी लिखे जाने लगे। इस काल के साहित्यकारों में मास्टरदी, आरिफ, नादिम, राही, रोशन, कामिल, फाजिल, अलमस्त, अख्तर, उमेश कौल, लोन, पुश्करभान और हाजिनी के नाम उल्लेखनीय हैं। नये कश्मीर के निर्माण सम्बंधी साहित्य भी लिखे गये। कश्मीरी भाषा में अभिव्यक्ति के नये रूप तलाशे जा रहे हैं तथा भाषा और भाव के सभी स्तरों पर नये-नये प्रयोग हो रहे हैं। अलगाववाद के कारण इसपर असर पड़ा है। परन्तु कश्मीरी साहित्य में वर्तमान के स्थान पर भविष्य ही अधिक प्रकट हो रहा है।


Page last modified on Tuesday August 19, 2014 08:16:16 GMT-0000