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कव्वाली

कव्वाली वह सामूहिक गायन है जो कव्वाल गाते हैं। कव्वाल शब्द फारसी के कौल शब्द से निकला है जिसका अर्थ है कुछ कहना या प्रशंसा करना। इस प्रकार कव्वाल वे हुए जो गायन के माध्यम से कुछ कहते हैं या प्रशंसा करते हैं। कव्वाली की गायन पद्धति फारस (आधुनिक ईरान) से प्रारम्भ हुई।

यह गायन पद्धति वास्तव में एक विशेष प्रकार की धुन है, जिसमें अनेक तरह के पदों को गाया जाता है। कसीदा गजल अथवा रुबाई आदि कोई भी काव्य इस धुन में गाया जा सकता है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती जब भारत में अजमेर आये तो उनकी कही गजलें भी उपासना सभाओं में समवेत रूप से कव्वाली की धुन पर गायी जाती रही थीं।

सूफियों के आने के बाद कव्वाली का प्रचलन बढ़ा। उनकी धार्मिक सभाओं में भावातिरेक के कारण कई गाना शुरु कर देते थे तथा अन्य लोग उनका अनुसरण करते थे। धीरे-धीरे कव्वाली गाने वालों के दल भी बनने लगे, और दलों के प्रमुख के नाम से दलों के नाम रखे जाने लगे। जैसे हबीव कव्वाल, अर्थात् वह दल जिसके प्रमुख हबीब हैं।

पहले तो सूफी ही कव्वाली गाते थे परन्तु अब कव्लाली गाने वालों के पेशेवर दल होते हैं।

विषय के अनुसार कव्वाली के अनेक भेद हैं। जैसे हम्द, जिसमें परमात्मा सम्बंधी प्रशंसात्मक गीत होते हैं; नात, जिसमें रसूल की शान में कुछ कहा जाता है; मनकबत, जिसमें औलिया के सम्बंध में वर्णन किया जाता है तथा रसूल के वंशजों की प्रशंसा भी की जाती है।

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कश्मीरी, कश्मीरी साहित्य, कसीदा, कंहरऊ, कहरवा ताल, कहानी

Page last modified on Monday June 26, 2023 08:49:56 GMT-0000