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खसम

किसी स्त्री के प्रेमी या पति को खसम कहा जाता है। परन्तु योगियों, विशेषकर हठयोगियों के लिए इसका अर्थ भिन्न है। उनके लिए तो ख-सम का अर्थ है ख अथवा आकाश के समान। वे चित्त को आकाश के समान करने पर बल देते हैं जो स्थिर और निर्मल हो। इसी को वह शून्यावस्था कहते हैं जिसमें सर्वधर्म शून्यता की स्थिति आती है। उनके लिए यही मन की शून्यावस्था है। यह सांसारिक धर्मों से स्वयं को मुक्त या निर्लिप्त कर लेने पर ही योगी हासिल कर पाता है।

बौद्ध साधना में सिद्धाचार्य बोधिचित्त की साधना में मन को शून्य-स्वरूप या खसम स्वरूप धारण करने का उपदेश करते हैं।

सन्त मत में खसम को पति के अर्थ मे लेकर कहा गया कि जिसपर परम तिष्ठा हो वही पति है, वही खसम है और वही परमेश्वर है। सम्भवतः इसी अर्थ में मीराबाई कहती हैं - जाके शीश मोर मुकुट मेरो पति सोई। अर्थात् मेरी परम तिष्ठा तो मोर मुकुट वाले भगवान कृष्ण में ही है।

सन्त मत में खसम का अर्थ वह मन भी माना गया है जिसके संकेतों या निर्देशों पर व्यक्ति नाचता रहता है। ऐसे ही कुछ भाव संत पलटू ने व्यक्त किये हैं और ऐसे मन के मर जाने पर प्रसन्नता की बात मानते हैं। कुछ इस खसम का अर्थ मृत्यु से लेते हैं और कहते हैं कि मृत्यु के मर जाने से ही वास्तविक अनन्त जीवन की प्रसन्नता मिलती है। उनकी कुण्डलिया की दो पंक्ति उल्लेखनीय हैं -

पलटू ऐसे पद कहै बूझे सो निरबान,
खसम बिचारा मर गया जोरू गावैं तान।

कबीर पंथ में भी कहीं-कहीं कबीर को खसम कहा गया है।

निकटवर्ती पृष्ठ
खिलजी राजवंश, खेचरी, खेचरीमुद्रा, खेलवना, ख्याल

Page last modified on Monday May 26, 2025 03:16:41 GMT-0000