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गुणपर्व

गुणपर्व भारतीय योग परम्परा का एक शब्द है। पातंजलि योगसूत्र में गुणपर्व हैं - विशेष, अविशेष, लिंगमात्र, एवं अलिंग।

विशेष वह द्रव्य है जिसमें विशेष गुण होते हैं, जैसे नीला, पीला, कसैला, मीठा कड़वा आदि। यही कारण है कि योग में नाक, कान, आंख, जिह्वा, और त्वचा नामक पांचों ज्ञानेन्द्रियां; मुख, हाथ, पैर, पायु (गुदा), तथा उपस्थ नामक पांचों कर्मेन्द्रियां; ग्यारहवीं इन्द्रिय मन; एवं पांच अस्मिताएं विशेष कहलाती हैं। यह विशेष शान्त और सुखकारी भी है, घोर और दुःखकारी भी है, तथा मूढ़ और मोहकारी भी है। ये सोलह विशेष ही भूतेन्द्रिय विकार हैं।

अविशेष वह है जो विशेष गुणों से रहित है, यहां तक कि शान्त, घोर और मूढ़ से भी, अर्थात् विकार रहित। अविशेष की छह प्रकृतियां हैं। जो वास्तव में भूतेन्द्रिय विकारों की ही प्रकृतियां हैं।

लिंगमात्र महत्तत्व को कहते हैं जिससे यह जगत उद्भूत है तथा अन्त में जिसमें सबकुछ विलीन हो जायेगा।

अलिंग कहते हैं प्रकृति को।

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गुणावतार, गुणीभूत व्यंग्य, गुप्‍त साम्राज्‍य, गुप्ता नायिका, गुरु

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