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चरितकाव्य

चरितकाव्य एक प्रकार का प्रबंधकाव्य है जिसे चरित, कथा, या पुराण के नाम से भी जाना जाता है और जिसमें प्रबन्धकाव्य, कथाकाव्य तथा पुराण कथा आदि इतिवृत्तात्मक काव्य के लक्षण समाविष्ट हो जाते हैं। जैसे - पउमचरिउ, भवित्त कहा, या हरिवंशपुराण। परन्तु ध्यान देने वाली बात यह है कि चरित, कथा, या पुराण नाम वाले सभी ग्रंथ चरितकाव्य नहीं होते, जैसे बुद्धचरित, बृहत्कथा, या वायुपुराण।

यह वस्तुतः एक प्रबंधकाव्य है। यह महज वैसा कथाकाव्य नहीं है जिसमें ऐतिहासिक चरित्र, पुराणकथा, या साहित्यिक कथा हो।

ध्यान रखना चाहिए कि यह प्रबंधकाव्य के दो मुख्य रूपों में से एक है। दूसरा रूप है शास्त्रीय प्रबंधकाव्य।

प्रबंधकाव्य के इस दूसरे भेद चरितकाव्य के मुख्य लक्षण हैं -
चरितकाव्य की शैली जीवनचरित की शैली होती है। प्रारम्भ में नायक के पूर्वजों, माता-पिता तथा देश, स्थान आदि का वृतांत और नायक के जन्म का कारण वर्णित होता है। उसके बाद नायक के जन्म से लेकर मृत्यु या उसके बाद तक की कथा आती है। कई बार नायक के कई जन्मों की कथा भी मिलती है।

चरितकाव्य में प्रायः वीरता, प्रेम, या धर्म आदि की स्थापना का वर्णन होता है।

चरितकाव्य में कथा प्रारम्भ करने के लिए वक्ता-श्रोता की प्रश्नोत्तर शैली प्राप्त होती है।

चरितकाव्य में अलौकिक परिस्थितियों का वर्णन भी होता है।

चरितकाव्य का कथानक शास्त्रीय प्रबंधकाव्यों जैसा ही होता है।

चरितकाव्य की शैली कथाकाव्य से अधिक उदात्त होती है।

चरितकाव्य उद्देश्यप्रधान होता है। केवल मनोरंजन इसका उद्देश्य नहीं। धर्म या लोककल्याण मूल उद्देश्य होता है।

चरितकाव्य छह प्रकार के हैं - धार्मिक, प्रतीकात्मक, वीरगाथात्मक, प्रेमाख्यानक, प्रशस्तिमूलक तथा लोकगाथात्मक।

धार्मिक पौराणिक चरितकाव्य में रामचरितमानस, प्रतीकात्मक में पद्मावत, वीरगाथात्मक में पृथ्वीराजरासो, विशुद्ध प्रेमाख्यानक में नल दमन, प्रशस्तिमूलक में छत्रप्रकाश, तथा लोकगाथात्मक में आल्हखण्ड चरितकाव्य के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

Page last modified on Friday June 19, 2015 06:11:28 GMT-0000