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जन्‍माष्‍टमी

जन्‍माष्‍टमी के त्‍यौहार में भगवान विष्‍णु की, श्री कृष्‍ण के रूप में, उनकी जयन्‍ती के अवसर पर प्रार्थना की जाती है। हिन्‍दुओं का यह त्‍यौहार श्रावण (जुलाई-अगस्‍त) के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी के दिन भारत में मनाया जाता है। हिन्‍दु पौराणिक कथा के अनुसार कृष्‍ण का जन्‍म, मथुरा के असुर राजा कंस, जो उसकी सदाचारी माता का भाई था, का अंत करने के लिए हुआ था।

जन्‍माष्‍टमी के अवसर पर पुरूष व औरतें उपवास व प्रार्थना करते हैं। मन्दिरों व घरों को सुन्‍दर ढंग से सजाया जाता है व प्रकाशित किया जाता है। उत्‍तर प्रदेश के वृन्‍दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर खर्चीले व रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं। कृष्‍ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्‍मरण करने के लिए रास लीला की जाती है। इस त्‍यौहार को कृष्‍णाष्‍टमी अथवा गोकुलाष्‍टमी के नाम से भी जाना जाता है।

बाल कृष्‍ण की मूर्ति को आधी रात के समय स्‍नान कराया जाता है तथा इसे हिन्‍डौले में रखा जाता है। पूरे उत्‍तर भारत में इस त्‍यौहार के उत्‍सव के दौरान भजन गाए जाते हैं व नृत्‍य किया जाता है।

महाराष्‍ट्र में जन्‍माष्‍टमी के दौरान, कृष्‍ण के द्वारा बचपन में लटके हुए छींकों (मिट्टी की मटकियों), जो कि उसकी पहुंच से दूर होती थीं, से दही व मक्‍खन चुराने की कोशिशों करने का उल्‍लासपूर्ण अभिनय किया जाता है। इन वस्‍तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्‍तत: इसे फोड़ डालते हैं।

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जल, जल द्रव्य, जलहरण, जामा मसजिद दिल्‍ली, जालन्धर पीठ, जिंक

Page last modified on Tuesday June 27, 2023 13:23:32 GMT-0000