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ध्वनि

सामान्यतः जो कानों को सुनाई पड़ता है उस नाद को ध्वनि कहते हैं। परन्तु इस शब्द का प्रयोग अनेक अन्य अर्थों में भी किया जाता है। सामान्य काव्यशास्त्रीय अर्थ में ध्वनि का प्रयोग व्यंजनार्थ शब्द के लिए होता है, परन्तु अन्य आचार्यों ने उसका उपयोग ध्वनि शब्द, व्यंजक शब्द, व्यंजक अर्थ, व्यंजना-व्यापार, तथा व्यंग्य काव्य के अर्थों में भी किया है।

ध्वनि शब्द का प्रथम प्रयोग ध्वन्यालोक नामक ग्रंथ में मिलता है जिसकी रचना 875 के आसपास हुई थी। इसके रचयिता कौन थे इसके बारे में मतभेद हैं, इसलिए इसे सामान्यतः ध्वनिकार की रचना कह दिया जाता है।

व्याकरण में सुनाई देने वाले वर्णों को ध्वनि कहा जाता है।

आसपास के पृष्ठ
ध्वनिकाव्य, नकारवाद, नक्षत्र, नचारी, नज्म, नटवा

Page last modified on Tuesday June 27, 2023 16:43:29 GMT-0000