नदी
नदी एक जलस्रोत है जो किसी एक स्थान से प्रारम्भ होकर किसी दूसरे स्थान तक गमन करता है। यह प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। कुछ नदियों में वर्ष भर पानी बहता रहता है परन्तु कुछ नदियों में केवल वर्षा के दिनों में ही पानी बहता है।साहित्य में नदी, सरिता, दरिया, सलिता आदि शब्दों का प्रयोग अनेक अन्य अर्थों में भी मिलता है।
संतों ने कहीं-कहीं इसे प्राणधारा या श्वास के अर्थ में लिया है तो कहीं-कहीं सुषुम्ना नाड़ी या नाड़ी मात्र के अर्थ में। कुंडलिनी तथा सांसारिक सुख के अर्थ में भी संतों ने इसकी चर्चा की है।
कबीर की एक रचना में इस प्रकार कहा गया है -
मैं अपने साहब संग चली।
नदी किनारे सतगुरू भेटे तुरत जनम सुधरी।
कहै कबीर सुनो भाई साधो दुहुंकूल तारि चली।
यहां नदी किनारे का अर्थ है सांसारिक विषय प्रवाह।
सुषुम्ना नाड़ी (सरस्वती नदी) के अर्थ में उनकी एक अन्य रचना देखें -
जहां धरनि बरसै गगन भीजै, चन्द सूरज मेल।
दोइ मिलि तहां जुड़न लागे, करत हंसा केलि।
एक बिरष भीतरि नदी चाली कनककलस समाइ।
पंच सुअटा आइ बैठे इदै भई बन राइ।
विषयलिप्सा के अर्थ में उनकी एक रचना देखें -
समुन्दर लागि आगि, नदिया जलि कोइला भई।
देखि कबीरा जागि, मंछी रूखां चढ़ि गई।
माया प्रवाह के अर्थ में उनकी एक अन्य रचना देखें -
गहरी नदिया अगम बहै धरवा खेवनहार पड़िगा फंदा।
घर की वस्तु निकट नहिं पावत दियना बारि के खोजत अन्धा।
प्राणधारा के अर्थ में एक रचना देखें जिसमें सलिता शब्द का प्रयोग है-
पानी माहीं परजली, भई अपरबल आगि।
बहती सलिता रहि गई मच्छ रहे जल त्यागि।